
पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति
युद्ध और कूटनीति में सच अक्सर छिपा रहता है, लेकिन पाकिस्तान का हालिया कदम उसे उजागर कर गया। ऑपरेशन सिंदूर में शामिल 138 सैनिकों को वीरता पदक देकर पाकिस्तान ने अपने भारी नुकसान को परोक्ष रूप से स्वीकार किया। यह उसी देश की स्वीकारोक्ति है, जिसने कारगिल युद्ध में अपनी भूमिका नकारी थी और आतंकवाद के आरोपों से लगातार बचता रहा है।
असली नुकसान कितना बड़ा?
पदक बिना बलिदान के नहीं मिलते। पाकिस्तान द्वारा 138 सैनिकों को सम्मानित करना बताता है कि वास्तविक हताहतों की संख्या कहीं अधिक रही होगी। कारगिल में उसने 453 मौतें स्वीकार की थीं, जबकि भारत ने 4,000 का अनुमान लगाया था। उसी तर्क से, 36 घंटों की तीव्र लड़ाई में 500 से 1,000 पाकिस्तानी सैनिकों की जान गई होगी। यह भारत की सामरिक ताकत और निर्णायक नेतृत्व का स्पष्ट प्रमाण है।
राहुल गांधी और सबूत की राजनीति
2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट हमले के बाद राहुल गांधी ने सबूत मांगे थे। उस समय पाकिस्तान के इनकार को भारत के भीतर गूंजने का मौका मिला। अब, जब पाकिस्तान खुद ऑपरेशन सिंदूर में अपने नुकसान को मान रहा है, सवाल उठता है: क्या राहुल गांधी पाकिस्तान से भी सबूत मांगेंगे?
आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक रुख
ऑपरेशन सिंदूर 26/11 और संसद हमले जैसे आतंकी घटनाओं के जवाब का प्रतीक है। यूपीए शासनकाल में भारत की प्रतिक्रिया केवल कूटनीतिक अपीलों तक सीमित थी। इसके विपरीत, मोदी सरकार ने 36 घंटों में पाकिस्तान को करारा जवाब देकर स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद और अलगाववाद को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
मोदी का भारत: नया संदेश
वाजपेयी के कारगिल से लेकर मोदी के ऑपरेशन सिंदूर तक, भारत ने अपनी ताकत और नेतृत्व का परिचय दिया है। पाकिस्तान को एक बार फिर अपने नुकसान की स्वीकारोक्ति करनी पड़ी। यह साबित करता है कि आज का भारत केवल जवाब नहीं देता, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि दुश्मन को उसकी हरकतों की भारी कीमत चुकानी पड़े।