
नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे का खंडन हो गया है जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी सहायता एजेंसी USAID ने भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए ₹182 करोड़ ($21 मिलियन) दिए। विदेश मंत्रालय (MEA) ने राज्यसभा को बताया कि नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने औपचारिक रूप से स्पष्ट किया है—2014 से 2024 के बीच भारत में वोटर टर्नआउट से जुड़ी कोई फंडिंग न मिली, न दी गई और न ही ऐसे कार्यक्रम चलाए गए।
क्या कहा MEA ने
MEA के लिखित उत्तर के मुताबिक 28 फरवरी 2025 को दूतावास से 10 साल की USAID फंडिंग का पूरा ब्यौरा मांगा गया था। 2 जुलाई 2025 को दूतावास ने डेटा साझा करते हुए साफ लिखा कि $21 मिलियन का कोई “वोटर टर्नआउट” फंड भारत में न आया, न खर्च हुआ। यही जानकारी राज्यसभा में रिकॉर्ड पर रखी गई।
ट्रंप का दावा कहां से आया?
यह विवाद Department of Government Efficiency (DOGE) की 16 फरवरी की उस पोस्ट के बाद शुरू हुआ जिसमें विश्वभर में CEPPS से जुड़े $486 मिलियन के USAID अनुदान रद्द करने की बात कही गई और सूची में “India—$21M for voter turnout” भी लिखा था। ट्रंप ने 18 व 21 फरवरी को इसी दावे को कई मंचों से दोहराया। बाद में स्पष्ट हुआ कि $21 मिलियन का यह ग्रांट भारत का नहीं, बांग्लादेश के “Amar Vote Amar” (My Vote Is Mine) प्रोजेक्ट के लिए 2022 में स्वीकृत था।
तो पैसा गया कहां?
दूतावास द्वारा साझा किए गए USAID-India के 2022–2024 के आंकड़ों में शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा/पर्यावरण और तिब्बती समुदाय से जुड़े कार्यक्रम प्रमुख हैं। आधिकारिक परिशिष्ट के अनुसार, The Tibet Fund सहित तिब्बती समुदायों की शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका को सुदृढ़ करने वाले कार्यक्रमों पर सबसे बड़ा हिस्सा गया। (श्रेणीवार अमेरिकी डॉलर में कुल आवंटन: तिब्बती कार्यक्रम ~$29.36m; बेसिक एजुकेशन ~$11.4m; ऊर्जा/पर्यावरण ~$4.95m; HIV/AIDS ~$20.95m; अन्य ~$2.68m)।
USAID ऑपरेशंस का स्टेटस
MEA के अनुसार अमेरिकी प्रशासन ने 2025 में विदेश सहायता कार्यक्रमों की समीक्षा के बाद USAID के अधिकतर कार्यक्रम बंद करने की प्रक्रिया शुरू की है। दूतावास ने भारत सरकार को सूचित किया कि 15 अगस्त राजनीतिक मायने
ट्रंप के दावे के बाद भारत में विपक्ष–सत्ता के बीच तीखी बयानबाज़ी हुई थी। दूतावास की सफाई और संसद में सरकार के लिखित उत्तर ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत की चुनावी प्रक्रिया में USAID फंड के ज़रिए कोई बाहरी ‘वोटर-टर्नआउट’ हस्तक्षेप नहीं हुआ। अब बहस का केंद्र यह है कि गलत जानकारी का स्रोत बना DOGE का संचार किस तरह सुधारा जाएगा और ऐसे दावों की फैक्ट-चेकिंग संस्थागत रूप से कैसे मज़बूत होगी।
(स्रोत: भारतीय विदेश मंत्रालय का संसद उत्तर/परिशिष्ट, द इंडियन एक्सप्रेस, NDTV, टेलीग्राफ/मनीकंट्रोल रिपोर्ट्स)
डिस्क्लेमर: डॉलर–रुपया रूपांतरण समयानुसार बदलता रहता है; ऊपर दिए गए रकम श्रेणीवार USD में आधिकारिक परिशिष्ट से ली गई हैं।