दो दशकों बाद सुलह, लेकिन नाकामी हाथ लगी
लगातार 20 सालों की कटुता, सार्वजनिक विवाद और एक-दूसरे पर वार-पलटवार के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने आखिरकार रिश्तों में दरार मिटाने का फैसला किया। दोनों ने मिलकर परिवार की साख बचाने और राजनीतिक ताकत दिखाने की कोशिश की। लेकिन इस बहुचर्चित मिलन का असर पहले ही चुनाव में ध्वस्त हो गया।
BEST समिति चुनाव बना अग्निपरीक्षा
मुंबई के BEST कर्मचारी सहकारी समिति चुनाव को आगामी निकाय चुनाव का वॉर्म-अप माना जा रहा था। हर किसी की नजर ठाकरे बंधुओं की जोड़ी पर थी। लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे। उद्धव और राज द्वारा गठित ‘उत्कर्ष पैनल’ 21 सीटों पर उतरा, जिसमें 18 उम्मीदवार शिवसेना (UBT) से और 2 एमएनएस से थे। बावजूद इसके पैनल एक भी सीट नहीं जीत सका।
शशांक राव का उभार और महायुति की जीत
इस चुनाव में शशांक राव के पैनल ने बाजी मारी और 14 सीटें जीत लीं। महायुति गठबंधन ने शेष 7 सीटों पर कब्जा किया। उल्लेखनीय है कि मई में बीजेपी में शामिल हुए शशांक राव ने स्वतंत्र रणनीति अपनाकर ठाकरे बंधुओं की कमजोरियों को उजागर कर दिया।
ठाकरे राजनीति का बदला परिदृश्य
2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर MNS बनाई थी। तब से ठाकरे परिवार की राजनीतिक विरासत बंटी हुई है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना आज एकनाथ शिंदे के विद्रोह और पार्टी चिन्ह खोने के बाद कमजोर स्थिति में है, वहीं राज ठाकरे की पार्टी बड़े चुनावी परिणाम देने में नाकाम रही है। ऐसे में BEST चुनाव में ठाकरे बंधुओं की हार ने दिखा दिया कि केवल सुलह से राजनीतिक समीकरण नहीं बदलते।
