बिहार मतदाता सूची विवाद: सुप्रीम कोर्ट में EC ने दी दलील
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार, 14 अगस्त को महत्वपूर्ण दलीलें पेश कीं। चुनाव आयोग ने कहा कि वह “राजनीतिक पार्टियों के संघर्ष के बीच फंसा” हुआ है। आयोग के अनुसार, “अगर कोई दल जीतता है तो ईवीएम अच्छी लगती है, लेकिन अगर कोई दल हार जाता है तो ईवीएम खराब नजर आती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से पूछा कि मर चुके, पलायन किए या अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में चले गए लोगों के नाम क्यों नहीं सार्वजनिक किए जा सकते। चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि ये नाम पहले ही राज्य के राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराए जा चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि आयोग इन नामों को डिस्प्ले बोर्ड या वेबसाइट पर डालने पर विचार करे, ताकि प्रभावित लोग 30 दिनों के भीतर सुधारात्मक कार्रवाई कर सकें। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि देश के नागरिकों को केवल राजनीतिक दलों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
सार्वजनिक नोटिस पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह उन वेबसाइटों या स्थानों के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी करने पर विचार करे, जहां मृत, विस्थापित या स्थानांतरित मतदाताओं की जानकारी साझा की जाती है।
विपक्षी दलों का विरोध
राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) सहित विपक्षी दलों ने बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 13 अगस्त को कहा था कि मतदाता सूचियां स्थिर नहीं रह सकतीं और उनमें संशोधन आवश्यक है।
