
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए हरियाणा सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पुलिस नोटिस वॉट्सऐप या अन्य डिजिटल माध्यम से भेजने की अनुमति मांगी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 35 के तहत नोटिस की सेवा केवल भौतिक रूप से ही वैध है।
कोर्ट का सख्त रुख: डिजिटल नोटिस अमान्य
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि BNSS की धारा 35 में इलेक्ट्रॉनिक सेवा का कोई प्रावधान नहीं है, जिसे जानबूझकर विधायिका ने बाहर रखा है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि धारा 35 के तहत भेजे गए नोटिस की अनदेखी करने पर व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है, इसलिए प्रक्रिया का कड़ाई से पालन जरूरी है।
तुलना को खारिज किया
हरियाणा सरकार ने दलील दी कि धारा 64(2) और 71 में अदालत के समन और गवाहों को डिजिटल माध्यम से बुलाने की छूट है, इसलिए धारा 35 पर भी यही लागू हो। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अदालती समन (धारा 64) पर कोर्ट की मुहर होती है, जबकि पुलिस नोटिस (धारा 35) सीधे निजी स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि धारा 35(6) का उद्देश्य व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना है, और इसे हल्के में लेना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा। इसलिए नोटिस का तरीका वही होना चाहिए, जो कानून में स्पष्ट रूप से तय किया गया है।