
दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होने वाली है। मार्च 2025 में उनके सरकारी आवास पर जली हुई नकदी के ढेर मिलने के बाद यह कार्रवाई की जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित यह प्रस्ताव संसद के लोकसभा में पेश किया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला एक जांच समिति गठित करेंगे, जो जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की समीक्षा करेगी। अगर समिति को पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं, तो वह उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश करेगी।
दिलचस्प बात यह है कि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष समर्थित एक महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसे बाद में राज्यसभा में औपचारिक रूप से पेश नहीं किया गया। इस फैसले से सत्तारूढ़ बीजेपी असंतुष्ट हुई और जल्द ही धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
सरकार की रणनीति और राजनीतिक मकसद
बीजेपी इस पूरे घटनाक्रम को न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा संदेश देने के तौर पर पेश कर रही है। बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे चुनावी राज्यों को ध्यान में रखते हुए, सरकार अपनी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है।
सूत्रों ने बताया कि महाभियोग प्रस्ताव मानसून सत्र से पहले ही तैयार कर लिया गया था, और इसके लिए विपक्षी सांसदों से भी सहमति ली गई थी। हालांकि, धनखड़ द्वारा विपक्षी प्रस्ताव का उल्लेख “सर्वदलीय सहमति के उल्लंघन” के रूप में देखा गया, जिससे सरकार को रणनीतिक झटका लगा।
नया उपराष्ट्रपति जल्द
धनखड़ ने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारण बताए, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसका असली कारण विपक्षी प्रस्ताव को मंजूरी देना माना जा रहा है। निर्वाचन आयोग ने नया उपराष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, और संभावना है कि अगस्त के अंत तक भारत को नया उपराष्ट्रपति मिल जाएगा।