केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का सोमवार शाम तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। 101 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। वी.एस. अच्युतानंदन का निधन केवल एक राजनेता के जाने की खबर नहीं, बल्कि एक राजनीतिक युग के अंत का संकेत है।
20 अक्टूबर 1923 को अलप्पुझा के पुन्नप्रा में जन्मे अच्युतानंदन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कृषि मजदूरों के आंदोलन से की। 1940 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए और 1964 में पार्टी विभाजन के बाद सीपीएम के संस्थापकों में से एक बने।
किसानों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस बात से साफ झलकती है कि 1990 में उन्होंने किसान कल्याण बोर्ड के तहत ‘अंशदायम’ योजना को सिर्फ 2 रुपये मासिक करने की वकालत की थी।
1980 से 1992 तक वे सीपीएम के राज्य सचिव रहे और 1985 में पोलित ब्यूरो में शामिल हुए। छह बार के विधायक रहे अच्युतानंदन ने 2006 में मलम्पुझा से जीतकर मुख्यमंत्री पद संभाला। उनके कार्यकाल में मुनार अतिक्रमण हटाओ अभियान, लॉटरी माफिया पर सख्ती और कोच्चि में विध्वंस अभियान जैसे फैसले हुए।
2001-06 के विपक्ष काल में उन्होंने भ्रष्टाचार, पर्यावरण और यौन शोषण के मुद्दों पर जोरदार आवाज़ उठाई। पार्टी से मतभेद के बावजूद जनता का समर्थन उन्हें बार-बार विजयी बनाता रहा।
टी.पी. चंद्रशेखरन की हत्या के बाद उनकी विधवा से मिलना और 2015 में पार्टी सम्मेलन से बहिर्गमन, उनकी नैतिक दृढ़ता की मिसाल हैं।
अच्युतानंदन की विरासत केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि जनसरोकारों, ईमानदारी और नैतिक साहस की कहानी है। केरल उन्हें हमेशा याद रखेगा – एक सच्चे जननेता के रूप में।
