
कोलकाता/रायपुर : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज सड़क पर उतरीं और एक पैदल मार्च में हिस्सा लिया। ममता का आरोप है कि केंद्र सरकार बंगाल के साथ भेदभाव बरत रही है। इस मामले को लेकर नई राजनीति सामने आई है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को भांपते हुए ममता बनर्जी ने नए सिरे से अपनी मुहिम शुरू की है। कोलकाता में मुख्यमंत्री के साथ TMC के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने भी प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम समय बचा है, और ऐसे में तृणमूल कांग्रेस ने ऐसे मुद्दों पर अपना विरोध तेज कर दिया है। उसका आरोप है कि बांग्ला भाषी लोगों को एक सुनियोजित ढंग से निशाना बनाया जा रहा है और उनके साथ भाषाई भेदभाव किया जा रहा है, गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया जा रहा है और उन्हें ‘‘अवैध प्रवासी’’ करार देने की साजिश की जा रही है।राज्य सरकार में मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘यह कोई साधारण राजनीतिक घटनाक्रम नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह पश्चिम बंगाल के सम्मान, भाषा और पहचान की रक्षा की लड़ाई है। अगर कोई किसी बंगाली को बांग्लादेशी कहता है तो हम चुप नहीं बैठेंगे।’’तृणमूल कांग्रेस अमूमन 21 जुलाई को हर साल आयोजित की जाने वाली अपनी शहीद दिवस रैली से पहले बड़े कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखती है। लेकिन ओडिशा में प्रवासी कामगारों की हिरासत, दिल्ली में अतिक्रमण रोधी अभियान और असम में एक विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा कूच बिहार के एक किसान को नोटिस जारी करने जैसी हालिया घटनाओं ने पार्टी को अपना रुख बदलने पर मजबूर कर दिया है।
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इन मुद्दों को लेकर हो रहे प्रदर्शन यह भी दिखाते हैं कि अगले साल के मध्य में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के लिए तृणमूल का चुनावी अभियान किस दिशा में जा रहा है। भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘बंगाल अपना सिर कभी नहीं झुकाएगा।’’उन्होंने कहा, ‘‘यह लड़ाई सिर्फ प्रवासी मजदूरों की नहीं है। यह हमारे अपने देश में सम्मान के साथ जीने के अधिकार की लड़ाई है।’

पिछले कुछ हफ़्तों में, मुख्यमंत्री बनर्जी ने बंगाली भाषी नागरिकों को बाहरी या अवैध प्रवासी बताने की कोशिशों की बार-बार निंदा की है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “बंगाली बोलने से कोई बांग्लादेशी नहीं हो जाता।” उन्होंने दोहराया कि बंगाली एक संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त भारतीय भाषा है और हर नागरिक को अपनी मातृभाषा बोलने का अधिकार है।

कूच बिहार की 52 वर्षीय आरती घोष को विदेशी करार दिया गया और असम की एनआरसी सूची से बाहर कर दिया गया।
इस बीच, तृणमूल के राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम ने कूचबिहार ज़िले के बॉक्सिरहाट की 52 वर्षीय महिला आरती घोष की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिन्हें कथित तौर पर विदेशी बताकर असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से बाहर कर दिया गया था। इस्लाम के अनुसार, उन्हें असम में अपने ससुराल छोड़कर पश्चिम बंगाल लौटने के लिए मजबूर किया गया था।
इस्लाम ने कहा, “मेरे पास बंगाली विरोधी भाजपा नेतृत्व से सवाल हैं, जो अक्सर बंगाल के प्रति अपने प्रेम का दिखावा करते हैं—यह दावा एक खोखला झूठ के अलावा और कुछ नहीं है।” अगले हफ़्ते होने वाली महत्वपूर्ण शहीद दिवस रैली से पहले, 16 जुलाई को होने वाली विरोध रैली में बड़ी संख्या में लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।