
रायपुर – छत्तीसगढ़ में 3200 करोड़ के शराब घोटाले की गूंज अब पूरे प्रदेश में सुनाई देने लगी है। इस मामले ने राजनीतिक गलियारों में धूम मचा दी है। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के बचाव को लेकर कांग्रेस मैदान में आ गई है। उसने शराब घोटाले को काल्पनिक करार देते हुए केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस मीडिया सेल के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने शराब घोटाले को बीजेपी की उपज करार देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री का जमकर बचाव किया है। कांग्रेस ने शराब घोटाले की जांच प्रक्रिया को भी विवादित करार दिया है। पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा इस घोटाले में नामजद आरोपी हैं, वे लगभग 6 महीने से जेल की हवा खा रहे हैं, जबकि कई कारोबारी और अधिकारी भी जेल में कैद हैं।

उधर वाणिज्य कर और आबकारी महकमे से जुड़ी एक बड़ी खबर भी सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि शराब घोटाले में लिप्त दर्जनों आबकारी अधिकारियों की मोटी रकम पानी में डूब गई है। जानकारी के मुताबिक ACB-EOW के अदालत में चालान प्रस्तुत होने के पूर्व दागी अधिकारियों ने चंदा वसूली कर करोड़ों की रकम इकट्ठा की थी। यह रकम मीडिया मैनेजमेंट और प्रभावशाली राजनेताओं के दरबारियों को मुँह बंद रखने के लिए हालिया खर्च की गई थी। लेकिन अदालत के रुख ने दागी अफसरों के अरमानों पर पानी फेर दिया है, इन अफसरों पर गिरफ्तारी की तलवार लटकती बताई जा रही है। उन्हें अदालत ने तलब कर लिया है। यह भी बताया जा रहा है कि बच निकलने का सपना चूर-चूर होने के बाद अब ये आबकारी अधिकारी रकम की पुनर्वापसी की कवायदों में जुट गए हैं। सूत्रों द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि यह रकम लगभग डूब चुकी है, इस रकम की पुनर्वापसी के आसार बेहद कम नज़र आ रहे हैं।

सूत्र तस्दीक करते हैं कि एक प्रभावशाली अधिकारी के नेतृत्व में आबकारी अमले के दागी अफसरों ने अपनी काली करतूतें छिपाने के लिए 10 करोड़ से ज्यादा की रकम पहले चंदा कर एकत्रित की थी, फिर इसे विभिन्न ठिकानों पर पानी की तरह बहाया गया था। कई प्रभावशाली राजनेताओं के दरबारियों और मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर विभिन्न अखबारों के दफ्तरों, मीडिया चैनलों और कुछ चुनिंदा पत्रकारों के ठिकानों पर बतौर नजराना पैक लिफाफा भेजे जाने की खबर सामने आ रही है।

यह भी बताया जाता है कि दागी आबकारी अधिकारियों के हौसले इतने बुलंद थे कि वे बिना गिरफ्तारी चालान पेश होते ही अपनी जमानत – अग्रिम जमानत के लिए जोर-शोर से जुट गए थे। कई ने तो नामी-गिरामी वकीलों और लॉ चैंबरों की शरण ले ली थी। इस दौड़ में शामिल ज्यादातर अफसर हाथों-हाथ जमानत प्राप्त करने के लिए अदालत परिसर में भी अपना पसीना बहाते देखे जा रहे थे। यहाँ प्रेस-मीडिया के जमावड़े को देखकर वे मौके से नौ-दो-ग्यारह भी हो गए थे।
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छत्तीसगढ़ में आबकारी घोटाले की तह तक जाने के लिए ACB-EOW ने जहाँ अपनी पूरी ताकत झोंकी थी वहीं बताया जा रहा है कि दागी अधिकारियों ने भी खुद के बचाव के लिए पुख्ता रणनीति भी तैयार की थी, वे चालान पेश होने की पूर्व संध्या पर यहाँ-वहाँ हाथ-पाँव मारते नज़र आ रहे थे। सूत्र यह भी तस्दीक करते हैं कि बिना गिरफ्तारी चालान पेश होने की खबर किसी को भी कानों-कान न हो सके, इसके लिए चौतरफा मीडिया मैनेजमेंट भी दागी अफसरों द्वारा किया गया था। लेकिन अदालत परिसर में देखते ही देखते फिजा बदल गई।

ACB-EOW के चालान पेश करने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। मामला यहीं नहीं थमा, अभियोजन का पक्ष सुनने के बाद विशेष अदालत ने आरोपी आबकारी अधिकारियों के खिलाफ नोटिस जारी कर कानूनी प्रक्रिया को साफ कर दिया। जानकारी के मुताबिक इस नोटिस में तमाम आरोपी अधिकारियों को 20 जुलाई को अदालत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए निर्देशित किया गया है। कानून के जानकार अंदेशा जाहिर कर रहे हैं कि तमाम दागी अधिकारियों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है, उनके बच निकलने के रास्ते पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं।

यह भी बताया जा रहा है कि शराब घोटाले में प्रमोटी IAS अनिल टुटेजा और कारोबारी अनवर ढेबर को जिन गंभीर धाराओं के तहत नामजद आरोपी बनाया गया था, उन्हीं धाराओं में आबकारी अधिकारियों के खिलाफ भी अपराध पंजीबद्ध किया गया है। एजेंसियों ने उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। ACB-EOW ने अपनी करीब 23 हज़ार पन्नों की चार्जशीट में 3200 करोड़ के शराब घोटाले की पूरी दास्तान दर्ज की है। पहले यह घोटाला लगभग 2200 करोड़ का आंका गया था लेकिन एजेंसियों को ऐसे सबूत हासिल हुए हैं जिससे पता पड़ता है कि घोटाले की रकम सालाना हज़ारों करोड़ का ग्राफ छू रही थी। चार्जशीट में दागी आबकारी अधिकारियों की काली करतूतों का हवाला भी दिया गया है।

कानून के जानकारों के मुताबिक BNC एक्ट की जिस धारा (91) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अनिल टुटेजा और अनवर ढेबर को “फैसिलिटेटर” बताया था, उसी तर्ज पर गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के मामले में आबकारी अधिकारियों को घोटाले का “क्रियान्वयन अधिकारी” माना गया है। ये अधिकारी सब कुछ जानते-बूझते हुए सरकारी सेवक होने के बावजूद आम जनता को नकली और गैरकानूनी शराब परोस रहे थे। ऐसी स्थिति में सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। कानून के जानकारों का दावा है कि दागी आबकारी अधिकारियों का भी जेल जाना सुनिश्चित है।
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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में शराब घोटाले ने नई ऊँचाइयाँ तय की थीं। आबकारी अमला स्वयं गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त पाया गया था। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में अवैध शराब के कारोबार ने अपनी जड़ें जमा ली थीं। कांग्रेस सरकार के बैनर तले प्रदेश की आम जनता को नकली और घटिया शराब पिलाई जा रही थी। सरकार के कर्णधारों ने इसे अपनी निजी कमाई का ज़रिया बना लिया था। मुख्यमंत्री से लेकर संत्री तक शराब के गैरकानूनी कारोबार को लोक कल्याण मानकर पूरी शिद्दत के साथ अंजाम दे रहे थे। इसके लिए सरकारी संसाधनों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग भी किया जा रहा था।

शराब घोटाले की जद में आए ज्यादातर आबकारी अधिकारियों की धन-दौलत अकूत बताई जाती है। बताया जाता है कि दागी अधिकारियों ने रियल एस्टेट और अन्य कारोबार में निवेश करने में खासी दिलचस्पी दिखाई है। यह भी बताया जाता है कि सरकारी तिजोरी को हुए नुकसान की भरपाई के लिए एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। सूत्र तस्दीक करते हैं कि ऐसे अफसरों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामलों को लेकर भी विचार-विमर्श शुरू हो गया है। फिलहाल दागी आबकारी अधिकारियों की चहल-कदमी प्रभावशाली राजनेताओं के दरबारों से लेकर कई प्रेस मीडिया कर्मियों के ठिकानों पर नज़र आ रही है, इसके साथ ही उपहार में दी गई नगदी की पुनर्वापसी की चर्चाएँ ज़ोरों पर हैं।