नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की साजिश मामले में एक आरोपी तस्लीम अहमद की पांच साल से चल रही हिरासत पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने पूछा कि जब हिंसा को पांच साल बीत चुके हैं, तो किसी व्यक्ति को कब तक जेल में रखा जा सकता है, खासकर तब जब मुकदमा अब भी अधूरा है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने एफआईआर 59/2020 के तहत दर्ज मुकदमे में की। सुनवाई के दौरान विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद से यह स्पष्ट पूछा गया कि अभियुक्तों को लंबी हिरासत में रखना कितना उचित है।
अहमद की ओर से पेश अधिवक्ता महमूद प्राचा ने केवल मुकदमे में हो रही देरी को मुद्दा बनाया। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल ने एक भी स्थगन नहीं लिया, जबकि अन्य सह-आरोपियों की तुलना में वह अधिक समय से जेल में हैं। अहमद ने अपनी दलीलें सिर्फ 10-15 मिनट में पूरी कर ली थीं, फिर भी वह पांच साल से जेल में हैं।
प्राचा ने बताया कि सह-आरोपी देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को 14 महीने बाद ज़मानत मिल गई थी, लेकिन अहमद को अब तक राहत नहीं मिली।
कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से यह भी स्पष्ट करने को कहा कि क्या पूर्व में मिली ज़मानतें सिर्फ मुकदमे में देरी के आधार पर दी गई थीं। इस पर प्रसाद ने कहा कि देरी के लिए अभियोजन पक्ष को दोष नहीं दिया जा सकता और आदेशों का हवाला देते हुए बताया कि आरोपी ही अक्सर स्थगन मांगते थे।
