
15 जून की सुबह रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल और अनुभवी पायलट राजवीर सिंह चौहान के लिए आम दिन की तरह शुरू हुई थी। उन्होंने केदारनाथ से गुप्तकाशी के लिए सात तीर्थयात्रियों के साथ हेलीकॉप्टर उड़ाया, लेकिन 5.19 बजे उड़ी उड़ान महज दस मिनट बाद एक भीषण हादसे में बदल गई। हेलीकॉप्टर झुका, पेड़ों से टकराया और आग की लपटों में समा गया।
प्रत्यक्षदर्शियों और पायलटों का मानना है कि हादसे की वजह “रामबारा एक्सप्रेस” नाम से जानी जाने वाली मौसमीय घटना हो सकती है, जिसमें अचानक घना कोहरा छा जाता है और दृश्यता शून्य हो जाती है। रामबारा का संकरा मोड़ ऐसा क्षेत्र है जहां उड़ान में जरा सी चूक भी जानलेवा हो सकती है।
यह कोई एकल घटना नहीं है। चार धाम यात्रा शुरू होने के महज छह हफ्तों में केदारनाथ हेलीकॉप्टर हादसे की पांच घटनाएं सामने आई हैं। 8 मई को उत्तरकाशी में एक बेल 407 क्रैश हुआ, जिसमें छह लोगों की जान गई। 12 और 17 मई को दो अलग घटनाओं में तकनीकी खराबी से हेलीकॉप्टरों की आपात लैंडिंग हुई। 7 जून को भी एक हेलीकॉप्टर को हाईवे पर उतारना पड़ा।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन पहाड़ी उड़ानों के लिए विशेष प्रशिक्षण और बेहतर तकनीकी व्यवस्थाएं जरूरी हैं। लेकिन हेलीकॉप्टर बिना राडार, मौसम अपडेट और ATC के उड़ाए जा रहे हैं। DGCA ने केदारनाथ में उड़ानों की संख्या घटाई है, लेकिन जब तक सख्त SOP लागू नहीं होते, खतरा बना रहेगा।
पायलट यूनियनें मांग कर रही हैं कि उड़ानों को अस्थायी रूप से रोका जाए और सुरक्षा प्रोटोकॉल को फिर से निर्धारित किया जाए। क्योंकि जब तक व्यवस्था नहीं सुधरेगी, केदारनाथ जैसी पवित्र जगह यात्रियों और पायलटों के लिए जोखिम भरी बनी रहेगी।