
नई दिल्ली: भारत में इको फ्रेंडली त्योहारों की फेहरिस्त में ग्रीन ईद का कॉन्सेप्ट लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच 99 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस्लामिक देश मोरक्को ने बकरीद में कुर्बानी पर रोक लगा दी है। इस रोक के बाद कई कट्टरपंथी मुस्लिम देश भी सोच में पड़ गए है कि आखिर मुस्लिम देश ने ऐसा फैसला क्यों लिया ? दुनिया भर में अफ्रीकी देश मोरक्को के चर्चे हैं। मोरक्को में 99 फीसदी मुस्लिम आबादी है। दरअसल मोरक्को के किंग मोहम्मद VI ने इसलिए कुर्बानी पर रोक लगाई है क्योंकि उनका कहना है कि इसके चलते आर्थिक और पर्यावरणीय संकट और बढ़ सकता है।

ऐसे में मुस्लिम बहुल मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी रोकना अहम फैसला है और इसकी दुनिया भर में चर्चा है। मोरक्को की तरफ से कुर्बानी पर रोक लगाने की मुख्य वजह यह है कि देश 7 सालों से गंभीर सूखे का सामना कर रहा है। फसलों की पैदावार चौपट है और पशुओं के लिए चारे और पानी तक की किल्लत है। इस कारण से देश में मवेशियों की संख्या में 38 फीसदी गिरावट आई है और जलाशयों की क्षमता भी 23 फीसदी तक कम हुई है। इसलिए सरकार नहीं चाहती कि पहले से ही जारी पशुओं के संकट और पानी की कमी के बीच बकरीद में पशुओं की कुर्बानी दी जाए। देश में सूखे के कारण चारे की कीमतों में 50% की वृद्धि हुई है, जिससे पशुपालकों और किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ा है।

मोरक्कों में मांस की कीमतों में भी वृद्धि हुई है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए बलि देना कठिन हो गया है। मोरक्को के राजा मोहम्मद VI देश के धार्मिक प्रमुख भी हैं। उनका कहना है कि इस साल बकरीद पर कुर्बानी न देना इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस्लाम में कुर्बानी करना अच्छा बताया गया है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वे पूरे देश की ओर से प्रतीकात्मक बलि देंगे। सरकार ने देशभर में पशु बाजारों और अस्थायी मंडियों को बंद कर दिया है ताकि बलि के लिए पशुओं की खरीद-बिक्री रोकी जा सके।

जानकार तस्दीक करते है कि मोरक्को ने ऑस्ट्रेलिया से भेड़ों का आयात पर काफी जोर दिया था। उसे ऑस्ट्रेलिया से आखिर क्यों मंगानी पड़ी भेड़ ? इसे लेकर भी जानकारी सामने आई है। मोरक्को ने 1000 भेड़ें मांस और पशुओं के आयात पर कर और वैट को निलंबित कर दिया है और ऑस्ट्रेलिया से 100,000 भेड़ों के आयात की योजना बनाई है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि देश में भोजन के रूप में भी पशुओं की कमी न रहे। मोरक्को की सरकार ने 6.2 बिलियन दिरहम (लगभग $620 मिलियन) का कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें पशुपालकों को वित्तीय सहायता, पशु स्वास्थ्य अभियानों और प्रजनन सुधार पहलों के माध्यम से समर्थन दिया जाएगा।

मोरक्को में आम लोगों ने सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है, लेकिन कुछ कट्टरपंथी लोगों ने इसका विरोध भी किया था। यहाँ भी इन लोगों ने सरकार के फैसले को उनके मजहबी मामलों में दखल बताया था। लेकिन आम जन धारणा का ख्याल रखते हुए ऐसे लोगों को मौजूदा देश काल और परिस्थिति से अवगत कराया गया। बहरहाल, सवाल उठ रहे हैं कि भारत में अकसर शाकाहार का प्रचार करने वाला एक वर्ग बकरीद पर कुर्बानी बंद करने की अपील करता रहा है। धार्मिक रंग में बलि प्रथा कों लेकर विवाद भी आमतौर पर होते रहे हैं। फिर भी चिंतन-मनन का दौर जारी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मोरक्कों की तर्ज पर धर्म के जानकार, भारत में भी प्रगतिशील-क्रांतिकारी कदम आगे बढ़ाएंगे।