
रायपुर: छत्तीसगढ़ में अदद डीजीपी की तलाश अब तक पूरी नहीं हो पाई है। वरिष्ठता और तय मापदंड को लेकर नौकरशाही के फरमानों से कैट ने खुद को अलग कर लिया है, उसके रुख से प्रकरण एक बार फिर छत्तीसगढ़ शासन के पाले में आ गया है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री साय के दरबार में ही विवाद का पटाक्षेप होगा ? वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को बगैर किसी ठोस कारण के पैनल से बाहर किये जाने के मामले ने क़ानूनी रूप ले लिया है। जानकारी के मुताबिक वरिष्ठ आईपीएस पवन देव की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने पुलिस महानिदेशक चयन प्रक्रिया में तत्काल हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। याचिका कर्ता की अंतरिम राहत की मांग को खारिज करते हुए चयन प्रक्रिया को जारी रखने का फरमान सुनाया है।प्रदेश में डीजीपी चयन को लेकर पुलिस मुख्यालय में कोहराम मचा है।

गौरतलब है कि इस पद के लिए केंद्र और यूपीएससी को विधिवत 4 योग्य अधिकारियों का पैनल भेजने के बजाय राज्य सरकार की ओर से मात्र 2 आईपीएस अधिकारियों के नामों को हरी झंडी दी गई थी। इस गोलमाल को लेकर पीड़ित आईपीएस अधिकारी न्याय की गुहार लगा रहे है। इस महत्वपूर्ण पद के लिए राजनीति भी हावी बताई जा रही है। सूत्र तस्दीक करते है कि वरिष्ठता क्रम तय करने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के हितों को ध्यान में रखते हुए पैनल में कटौती की गई थी। इस पैनल से 1992 बैच के आईपीएस पवन देव और 1994 बैंच के जीपी सिंह का नाम दरकिनार कर दिया गया था। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी जीपी सिंह को डीजीपी बनने से रोकने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी टोली सक्रिय बताई जाती है। यह भी बताया जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री के निजी हितों को ध्यान में रखते हुए चीफ सेक्रेटरी ने दोनों ही वरिष्ठ अधिकारियों का पत्ता साफ कर दिया था।

उनके द्वारा सिफारिश कर केंद्र को भेजे गए दोनों नामों पर दावा किया गया था कि यही दो अधिकारी बीजेपी सरकार की पहली पसंद है। दावा यह भी किया जा रहा है कि चयन प्रक्रिया और वरिष्ठता तय करने के मामलों में भी बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई है। जानकारी के मुताबिक पीड़ित अधिकारी पवन देव ने अपनी याचिका में (ओ.ए./530/2025) में 13 मई 2025 को हुई चयन पैनल की बैठक को चुनौती देते हुए डीजीपी चयन प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की थी। आईपीएस पवन देव ने अपने वकील के जरिये याचिका में तर्क दिया था कि पवन देव, डीजीपी (एचओपीएफ) के लिए चयन प्रक्रिया के दूषित मापदंड अपनाये गए थे।

उनका नाम इस पैनल में शामिल नहीं किया जाना आल इंडिया सर्विस रूल के नियमों के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने यूपीएससी के 26 सितंबर 2023 के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि चयन प्रक्रिया योग्यता और अनुभव पर आधारित होनी चाहिए। 1992 बैच के आईपीएस पवन देव ने अपनी याचिका में स्पष्ट किया है कि उनके पास 18 वर्षों का अनुभव और सेवा का उत्कृष्ट रिकॉर्ड है। उनके खिलाफ कोई जांच भी लंबित नहीं है। इसके बावजूद भी उनका नाम डीजीपी चयन प्रक्रिया में नहीं शामिल किया गया। याचिका में दावा किया गया है कि दूषित चयन प्रक्रिया अपनाने से उनके अधिकारों का हनन हुआ है। उधर, प्रतिवादी पक्ष ने भी बचाव करते हुए अपनी दलीले दी। वरिष्ठ अधिवक्ता अनमोल दुबे ने अंतरिम राहत का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि उनका नाम चयन पैनल से हटाया गया है।

उन्होंने जोर देते हुए तर्क दिया कि पवन देव को केवल चयन प्रक्रिया में विचार का अधिकार है, चयन का नहीं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता की आशंका महज मीडिया रिपोर्टों पर आधारित है, जिसे न्यायिक आधार नहीं माना जा सकता। न्यायाधिकरण के सदस्य (जे) अखिल कुमार श्रीवास्तव ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता कोई ठोस दस्तावेज पेश नहीं कर सके, जो यह साबित करे कि उनका नाम पैनल से हटाया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मीडिया रिपोर्टों को हस्तक्षेप का आधार नहीं बनाया जा सकता। इस आधार पर कैट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। मामले में अगली सुनवाई अब 15 जुलाई 2025 को नियत की गई है।इधर कैट से मायूसी हाथ लगने के बाद पीड़ित आईपीएस अधिकारीयों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से न्याय की गुहार लगाई है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि अदालती कवयतों के बजाय जनहित के फैसले मुख्यमंत्री के दिशा निर्देशों के तहत होने चाहिए। ना की प्रभावशील जूनियर अधिकारियों की तिकड़मों और षड्यंत्रों से।
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