“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ‘राज’ की कलम से, व्यंग-लेख का मकसद किसी की भी मानहानि नहीं बल्कि कार्यप्रणाली का इज़हार मात्र है… (इस कॉलम के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं, यह लेखक के निजी विचार भी हो सकते है)

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भ्रष्टाचार का भीम…. 
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग के अरबों के घोटाले में शामिल आईएएस अधिकारियों की फेहरिस्त लंबी बताई जा रही है। आईएएस चंद्रकांत वर्मा के बाद एक अन्य आईएएस भीम सिंह भी घोटाले की जद में, बताये जाते है, दोनों ही अधिकारियों से EOW लंबी पूछताछ कर चूका है। लेकिन दागी अफसरों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही को लेकर EOW के हाथ बंधे बताये जाते है। जानकार तस्दीक करते है कि इस घोटाले में लगभग आधा दर्जन आईएएस अधिकारियों की भूमिका संग्दिध ही नहीं बल्कि सरकारी तिजोरी में हाथ साफ करने के मामले में नामजद FIR के दायरे में है। हालांकि मुख्यमंत्री के थाने में ‘मगरमच्छों’ के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होगा या नहीं ? इसे लेकर संशय कायम है। ACB/EOW की कार्यवाही आमतौर पर मुख्यमंत्री के रुख पर निर्भर करती है, लिहाजा उनके फरमानों का इंतजार जारी बताया जा रहा है।

यह भी बताया जाता है कि एजेंसियां मुक़म्मल कार्यवाही की फिराक में है। लेकिन उनका मुँह बंद और हाथ बांध दिए गए है, इसके चलते सिर्फ छोटी मछलियां ही एजेंसियों के हाथ लग रही है। मगरमच्छों को माकूल प्रशासनिक-राजनैतिक संरक्षण सुर्ख़ियों में है। सुशासन तिहार के लोकलुभावन वादों के बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति जिस बखूबी अंदाज में दम तोड़ रही है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों भूपे राज की तर्ज पर नए गिरोह अस्तित्व में आ सकते है। फ़िलहाल तो चर्चा भ्रष्टाचार के उस भीम सिंह की है, जिसकी कार्यप्रणाली से स्वास्थ्य महकमे से लेकर अदालत का गलियारा गरमाया हुआ है। कानून के जानकारों का एक धड़ा इस भीम की तख्ती को देखकर हैरत में है। 

शराब की बोतल में कैद मगरमच्छ…
छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की जांच जारी है, आये दिनों नए खुलासे हो रहे है। भ्रष्टाचार के भारी भरकम सबूतों को कई विभागीय अधिकारी चखना समझ कर हजम कर रहे है। ऐसे अफसरों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की राह तक रहा है। भूपे राज में घोटाले में मस्त रहे आबकारी विभाग के ज्यादातर अफसर अब नए घोटाले में जुटे बताये जाते है। महकमे में वन टू का फोर, फोर टू का वन पहले की तर्ज पर जारी बताया जाता है। पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में घोटालों में लिप्त आबकारी अधिकारियों को नई सरकार में भी उतनी ही तवज्जो मिल रही है।

नतीजतन, ऐसे मगरमच्छों के हौसले बुलंद नजर आ रहे है। सैयां भये कोतवाल की तर्ज पर आबकारी अधिकारियों का संगठित गिरोह भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को मुँह चिढ़ा रहा है। अंजाम ए गुलिस्ताँ क्या होगा कयासों का दौर जारी है। बताते है कि दागियों को उपकृत करने के नए नुस्खों से अदालत का गलियारा गरमाया हुआ है। बताते है कि घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपने के लिए एक जनहित याचिका भी अपने पंख पसार रही है।