दिल्ली/रायपुर। छत्तीसगढ़ कैडर के कई आईपीएस अधिकारियो की महादेव ऐप सट्टा घोटाले में हिस्सेदारी सामने आई है। ये अफसर वर्षों से प्रदेश के विभिन्न जिलों में SP से लेकर IG रेंज तक की कुर्सी संभाल चुके है। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के साथ कदमताल कर रहे ऐसे आईपीएस अफसर अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए केंद्रीय जांच एजेंसियों की निगरानी और जासूसी में जुटे थे। पूर्ववर्ती कांग्रेस की भूपे सरकार के कार्यकाल में लगभग आधा दर्जन आईपीएस अधिकारी पुलिसिंग छोड़ सट्टे के कारोबार में लिप्त बताये जाते है। उनके ठिकानों पर सीबीआई ने छापेमारी की है, जबकि ED भी महादेव ऐप सट्टा घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के प्रकरणों की जांच में जुटी है।

यह भी बताया जा रहा है कि केन्द्र और राज्य सरकार को गुमराह करने के लिए ज्यादातर आईपीएस अफसरों ने अपनी आकूत धन-दौलत भी छिपाई है। सरकारी दस्तावेजों और आयकर विभाग को इन अफसरों ने अँधेरे में रखते हुए अपनी चल-अचल संपत्ति और निवेश का बड़ा हिस्सा छिपा लिया था। यह काली कमाई अपने नाते रिश्तेदारों और कई पुलिसकर्मियों के नाम पर निवेश किये जाने की भी जानकारी सामने आई है। सट्टा कारोबार में शामिल अफसरों की नामी-बेनामी संपत्ति का पहाड़ देश-प्रदेश के कई राज्यों में उभरा बताया जाता है। जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट में कुबेरपति अरबों की संपत्तिधारी दागी आईपीएस अधिकारियों की अचल संपत्ति का ग्राफ गरीबी रेखा से भी नीचे दर्ज बताया जा रहा है।

सूत्रों के मुताबिक मात्र 5-10 साल की नौकरी में ही ज्यादातर आईपीएस अधिकारियों की संपत्ति का ग्राफ 50 करोड़ से ऊपर आँका जा रहा है। आल इंडिया सर्विस की साख राज्य में टाई और वर्दीधारी डकैतों की तर्ज पर आंकी जाने लगी है। एक से बढ़कर एक घोटालों में दर्जनों आईएएस, आईपीएस और आईएफएस कोर्ट-कचहरी और विभिन्न जांच एजेंसियों के दफ्तरों का चक्कर काट रहे है। जबकि जेल की हवा खा रहे अफसरों की फेहरिस्त भी लंबी नजर आ रही है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के दर्ज ब्यौरे में छत्तीसगढ़ कैडर के दागी अफसरों की कमाई आसमान छू रही है। जबकि सरकारी रिकॉर्ड में उनकी कमजोर आर्थिक स्थिति के आंकड़े केंद्र और राज्य सरकार को मुँह चिढ़ा रहे है। जनता हैरत में है, ख़राब माली हालात के बावजूद आल इंडिया सर्विस के कई अधिकारी रियल एस्टेट कारोबार और अन्य उद्योग-धंधों में अरबों का निवेश कर रहे है। जमीनों की नामी-बेनामी खरीद- फरोख्त और दुबई तक निवेश के मामलों में आईपीएस अफसरों की कार्यप्रणाली की जांच अनिवार्य बताई जा रही है।

छत्तीसगढ़ के बड़े घोटाले में जिन आईपीएस अधिकारियों की हिस्सेदारी सामने आई है, उनकी आमदनी हर माह करोड़ों में बताई जाती है। इन अफसरों ने केंद्र और राज्य सरकार के अरमानों पर पानी फेरते हुए अपने पद और प्रभाव के बेजा इस्तेमाल का नया रिकॉर्ड कायम किया है। जानकारी के मुताबिक गृह मंत्रालय की वेबसाइट में छत्तीसगढ़ कैडर के ज्यादातर अफसरों की अचल संपत्ति का ब्यौरा लोगों के गले नहीं उतर रहा है। दागी अफसर भी अपने चाटर्ड एकाउंटेंट की तिकड़मों में हवाला कारोबारियों के गलियारों में सुर्खियां बटोर रही है।

इस बीच महादेव ऐप सट्टा कारोबार में पुलिस तंत्र और उसके संवेदनशील उपकरणों के बेजा इस्तेमाल का मामला भी सामने आया है। यह प्रकरण प्रशासनिक और राजनैतिक महकमों में तूल पकड़ रहा है, चर्चित आईपीएस अधिकारी पूर्ववर्ती भूपे सरकार की घोटालेबाजी में पूरी तरह से लिप्त पाए गए है। इन अफसरों ने सट्टा कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए IT-ED और CBI की राह में जमकर रोड़े अटकाए थे। पूर्ववर्ती भूपे सरकार में आतंक का पर्याय बन चुके इन अफसरों की अब काली करतुते लगातार सामने आ रही है।

सूत्र तस्दीक करते है कि दागी अफसरों की जांच-पड़ताल में ऐसे तथ्य सामने आये है, जिससे पता-पड़ता है कि जिम्मेदार आईपीएस अफसरों ने काली कमाई के लिए अपनी कर्तव्यनिष्ठा भी बेच डाली थी। किसी पेशेवर आपराधिक गिरोह की तर्ज पर ये आईपीएस अफसर आम जनता पर कहर बरपा रहे थे। उनके द्वारा सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग कर केंद्र सरकार की विभिन्न जांच एजेंसियों की वैधानिक गतिविधियों को ‘शून्य’ करने का कुत्सित प्रयास जोरो पर किया जा रहा था। प्रदेश में पहली बार केंद्रीय जांच एजेंसियों की निगरानी और जासूसी का मामला सामने आया है। इसकी बानगी ED की चार्जशीट में दर्ज बताई जाती है।

जानकारी के मुताबिक दागी अफसर सट्टा कारोबार को संरक्षण और क़ानूनी शक्ल देने के लिए सरकारी डिजिटल संसाधनों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रहे थे। इसका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम के बजाय भारत सरकार की वैधानिक कार्यवाही को बाधित करने के लिए किया जा रहा था। ED की चार्जशीट तस्दीक करती है कि प्रदेश में छापेमारी के दौरान एजेंसियों की जासूसी-रैकी और मोबाइल फ़ोन टेपिंग-ट्रैकिंग जैसे गैर-क़ानूनी कदम उठाने में आईपीएस अधिकारियों ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी थी।
उनके द्वारा केंद्रीय एजेंसियों की जासूसी के लिए विभिन्न पुलिस कंट्रोल रूम में स्थापित सरकारी डिजिटल उपकरणों का सुनियोजित इस्तेमाल किया जा रहा था। यही नहीं एक संवेदनशील उपकरण NTRO के साथ भी छेड़छाड़ की गई थी। रायपुर के तत्कालीन एसएसपी प्रशांत अग्रवाल और ASP अभिषेक माहेश्वरी NTRO के जरिये IT-ED समेत अन्य जांच एजेंसियों के मूवमेंट पर पैनी नजर रख रहे थे। उनके द्वारा पल-पल की सूचना तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल को दी जाती थी।

जानकारी के मुताबिक केंद्रीय एजेंसियों की कार्यवाही को फ्लॉप करने के लिए खास हिदायते पुलिसकर्मियों को दी गई थी। छत्तीसगढ़ पुलिस का खास कार्य अपराधियों पर अंकुश लगाने के बजाय सटोरियों और कारोबारी कांग्रेसी नेताओं के ठिकानों को सुरक्षित करने तक सीमित हो गया था। सटोरियों को छापेमारी से बचाने के लिये दागी अफसरों ने आयकर और प्रवर्तन निदेशालय की जांच टीम के वाहनों की जब्ती और उनके टायरों की हवा निकालने में भी तत्परता दिखाई थी।

पुलिस मुख्यालय में मजबूत पकड़ बनाने के लिए जूनियर अधिकारियों के इस खास गिरोह ने कई वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को ठिकाने लगाया था। यह तथ्य भी सामने आया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल के षड्यंत्रों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक विशेष सेल का गठन किया गया था। यह सेल प्रदेश के तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख और 2001 बैच के आईपीएस आनंद छाबड़ा के नेतृत्व में कार्यरत रहा। बताया जाता है कि दिल्ली में नंबर-दो की रकम ठिकाने लगाने के लिए छाबड़ा ने अपना यह पद 2004 बैच के आईपीएस अजय यादव कों सौंपा था। सट्टा बाजार को नियंत्रित करने के लिए राजधानी रायपुर में एक साथ दो आईजी के पदों पर वर्दीधारी डकैतों की तैनाती की गई थी।

सूत्र तस्दीक करते है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार को अस्थिर करने और बीजेपी के खिलाफ आयोजित कांग्रेसी प्रदर्शनों में अभी भी बघेल गिरोह महादेव ऐप सट्टा घोटाले की काली कमाई खर्च कर रहा है। यह भी बताया जाता है कि मुख्यमंत्री साय ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के तहत 2 दर्जन से ज्यादा आईपीएस, राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों और अन्य पुलिस कर्मियों के खिलाफ 17(A) की अनुमति दी थी। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के तहत जारी कार्यवाही हेतु GAD अनुमति में हेरफेर की जानकारी भी सामने आई है।
बताते है कि 17(A) की अनुमति सूची में एजेंसियों ने तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख अजय यादव के खिलाफ भी मुक़दमा चलाने की अनुमति मांगी थी। यह अनुमति प्राप्त भी हुई। लेकिन छापेमारी और अन्य विधि संगत कार्यवाही से यादव अछूते रहे। अजय यादव की आपराधिक कार्यशैली के कई मामले उजागर हुए है। बावजूद इसके यादव के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही नहीं होने का मामला राजनैतिक दांवपेचों से जोड़कर देखा जा रहा है।

यह भी बताया जाता है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों के कदम रोकने के लिए शेख आरिफ ने पुलिसिया मुहीम कों अंजाम दिया था। इसके तहत ही अजय यादव को आईजी इंटेरलीजेंस की कुर्सी सौपी गई थी। आनंद छाबड़ा की तर्ज पर संवेदनशील उपकरण NTRO का दुरुपयोग के मामले में अजय यादव भी शामिल बताये जाते है। सूत्र तस्दीक करते है कि राजनैतिक तिकड़म से बच निकले अजय यादव के खिलाफ सीबीआई और ईडी को पुख्ता सबूत मिले है। विवेचना के आगे बढ़ने के बाद यादव के खिलाफ भी कार्यवाही के आसार बताये जाते है।
सूत्रों के मुताबिक जूनियर आईपीएस गिरोह ने तत्कालीन डीजीपी अशोक जुनेजा को सिर्फ रबर स्टम्प बना दिया था। कनिष्ठ अधिकारी तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख आनंद छाबड़ा, एएसपी अभिषेक माहेश्वरी और शेख आरिफ के दिशा निर्देशों के तहत ही डीजीपी अपनी दिनचर्या तय करते थे। इस दौर में उनकी स्थिति किसी ‘अर्दली’ से कम नहीं आंकी जाती थी। बताते है कि तत्कालीन डीजीपी के निर्देशों की अवहेलना करते हुए इस गिरोह ने जांच एजेंसियों के अलावा कई अफसरों, पत्रकारों और कारोबारियों की गैर-क़ानूनी रूप से फ़ोन टेपिंग करवाई थी। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया के हितों को ध्यान में रखते हुए NTRO सिस्टम का दुरुपयोग किये जाने के कई प्रकरणों की चर्चा पुलिस मुख्यालय में जोरो पर है।

सूत्र तस्दीक करते है कि तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख आनंद छाबड़ा और अजय यादव ने अपने कार्यकाल में 200 से अधिक मोबाइल सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था। जबकि शेख आरिफ हर हफ्ते अपना मोबाइल और सिम बदला करते थे, अब एजेंसियां उन मोबाइल और उनके नम्बरों का ब्यौरा इकट्ठा कर रही है। महादेव ऐप सट्टा घोटाले की जांच में जुटी ED की एक चार्जशीट में छत्तीसगढ़ पुलिस का सुनियोजित ‘मुखबिरी नेटवर्क’ सामने आया है। बताते है कि जासूसी के लिए पुलिस संसाधनों के बेजा इस्तेमाल के फरमान रायपुर रेंज के तत्कालीन आईजी शेख आरिफ के द्वारा जारी किये जाते थे। जबकि उनकी सहायता के लिए प्रशांत अग्रवाल और एडिशनल एसपी क्राइम अभिषेक माहेश्वरी को नियुक्त किया गया था।

हवाला बाजार में रायपुर के तत्कालीन एसएसपी और वर्ष 2007 बैच के आईपीएस प्रशांत अग्रवाल को महादेव ऐप घोटाले का ‘गूगल गुरु’ बताया जाता है। इस कारोबार में लिप्त सटोरिये तस्दीक करते है कि IT-ED के अलावा सट्टा विरोधी लोगों के खिलाफ फर्जी कार्यवाही करने के लिए माहेश्वरी को अधिकृत किया गया था। प्रशांत अग्रवाल NTRO सिस्टम के जरिये गैर-क़ानूनी रूप से नागरिकों की गूगल लोकेशन, आवाजाही और अन्य ख़ुफ़िया जानकारी एकत्रित कर प्रशांत अग्रवाल, शेख आरिफ, आनंद छाबड़ा और अजय यादव को सौंपा करते थे।
यह भी बताया जाता है कि सीबीआई की छापेमारी के बाद दुर्ग-भिलाई में प्रशांत अग्रवाल अचानक सक्रिय हो गए है। यहाँ नाते-रिश्तेदारों के नाम पर उनकी बड़े पैमाने पर बेनामी संपत्ति सामने आई है। एक जानकारी के मुताबिक करोड़ों की अवैध संपत्ति और शैल कंपनी को लेकर जांच एजेंसियों ने प्रशांत अग्रवाल के एक करीबी नाते-रिश्तेदार से पूछताछ भी की है।

छत्तीसगढ़ में आईपीएस अधिकारियों के गैर-क़ानूनी कृत्यों के अलावा पुलिस तंत्र के भीतर ही काली कमाई खपाने का मामला भी चर्चा में है। बताया जाता है कि तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख अजय यादव की जहाँ कही भी पोस्टिंग की जाती थी, उनके साथ संबंधित जिले में एक महिला पुलिस अधिकारी का भी स्थानांतरण किया जाता था। बिलासपुर, कोंडागांव और बस्तर के कई इलाकों में इस महिला पुलिस अधिकारी के नाम दर्ज अचल संपत्ति अजय यादव की बताई जाती है। यादव मूलतः छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के निवासी बताये जाते है। उनकी नामी-बेनामी संपत्ति की उच्च स्तरीय जांच जरुरी बताई जा रही है। यह भी बताया जाता है कि ऐसे पुलिस अधिकारियों ने अपने अधीनस्थ और निचले स्तर के कई महिला और पुरुष पुलिसकर्मियों के नाम बड़े पैमाने पर बेनामी संपत्ति अर्जित कर रखी है।

छत्तीसगढ़ कैडर के कई आईपीएस अधिकारियों की विभिन्न घोटालों में भूमिका सवालों के घेरे में बताई जा रही है। उनकी कार्यप्रणाली किसी डकैत और हवाला कारोबारी से मेल खाती मय सबूत पाई गई है। ऐसे अफसरों की कर्तव्यनिष्ठा को लेकर छत्तीसगढ़ की जनता भारत सरकार के रुख को लेकर हैरानी जता रही है। जनता पूछ रही है कि आल इंडिया सर्विस के दागी अफसरों की नियुक्ति राज्य में अंतर्राष्ट्रीय सट्टा नेटवर्क कों मजबूती प्रदान करने के लिए की गई थी, या फिर सट्टा और सटोरियों की रोकथाम के लिए ?

देश की आर्थिक मजबूती में काला बाजार साबित हो रहे सट्टा नेटवर्क में पुलिस के उच्चाधिकारियो के शामिल होने का मामला गंभीर बताया जाता है। इसने ‘आल इंडिया सर्विस’ की संवैधानिक कर्तव्यनिष्ठा पर भी प्रश्न खड़ा कर दिया है। इसी उच्च स्तरीय सेवा के बैनर तले प्रदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग (आईटी) जैसी महत्वपूर्ण केंद्रीय जांच एजेंसियों और उनके अफसरों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया था। बताते है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल और उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया को रोजाना अवैध गतिविधियों की रिपोर्टिंग कर दागी अफसर फूले नहीं समाते थे।

यह भी बताया जाता है कि कांग्रेस सरकार की रवानगी सुनिश्चित होते ही छाबड़ा और अजय यादव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल के सरकारी आवास-निवास और दफ्तर में लगे CCTV फुटेज नष्ट कर दिए थे। मुख्यमंत्री से मिलने-जुलने वालों का ब्यौरा एवं कंप्यूटर में दर्ज आधिकारिक जानकारी को भी नष्ट कर दिया गया था। राज्य में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद घोटालेबाजों के ठिकानों पर छापेमारी जारी है। अदालत में पेश अपनी चार्जशीट में ईडी ने छत्तीसगढ़ पुलिस के ‘जासूसी-मुखबिरी’ नेटवर्क का खुलासा करते हुए बताया गया है कि रायपुर के तत्कालीन एडिशनल एसपी अभिषेक माहेश्वरी ने केंद्रीय एजेंसियों के मूवमेंट की जानकारी एएसआई चंद्रभूषण वर्मा के साथ साझा कर षड्यंत्र की परतों से एजेंसियों को वाकिफ कराया है।

चार्जशीट के मुताबिक एएसआई वर्मा, जांच एजेंसियों से जुड़ी सूचनाओं को सरकार के क़ानूनी सलाहकार सतीश चंद्राकर, सुनील ओटवानी, डॉ. सलिक, अरविंद गोयनका समेत कई लोगों को व्हाट्सएप एवं इंटरनेट के अन्य प्लेटफॉर्म से साझा कर एक दूसरे को आगाह किया करते थे। अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि जांच एजेंसियों की संभावित कार्रवाई पर रोड़ा लगाने की मुहीम छापेमारी के पहले ही शुरू हो जाती थी। इसके लिए मजबूत जासूसी तंत्र विकसित किया गया था। पुलिसकर्मियों के अलावा होटल के कर्मी, वेटर, चाय-पान के ठेले और दफ्तरों के चपरासी तक को इस नेटवर्क में शामिल किया गया था। चार्जशीट के मुताबिक हेड कांस्टेबल संदीप दीक्षित और राधाकांत पांडे इस जासूसी कांड के प्रमुख सूत्रधार थे।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय जांच एजेंसियों की छापेमारी के दौरान ईडी-आईटी की हर एक गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने के लिए पुलिस मुख्यालय में भी एक खास ठिकाना बनाया गया था। यहाँ तत्कालीन डीजीपी को ताक में रखकर प्रशासनिक फैसले लिए जाते थे। जूनियर अधिकारियों का गिरोह तत्कालीन डीजीपी को ‘समय-समय’ पर आर्डर जारी करता था, जबकि तत्कालीन डीजी इस गिरोह के आगे पानी भरते नजर आते थे। ED की चार्जशीट तस्दीक करती है कि हेड कांस्टेबल से लेकर कई थानेदार अपने एडिशनल एसपी को एजेंसियों की गतिविधियों से अपडेट कर ‘खुफिया जानकारी’ एएसआई वर्मा के मार्फ़त सट्टा किंगपिन तक पहुंचाया करते थे।

महादेव सट्टा एप घोटाला देश में सिर्फ काला बाजार और मनी लॉन्ड्रिंग का जरिया ही नहीं बन गया है, बल्कि असलियत सामने आने से आल इंडिया सर्विस के प्रति जनता के विश्वास और उनकी गुणवत्ता पर भी खासी चोट पड़ी है। जनता के भरोसे का क़त्ल हुआ है। राज्य में दागी आईपीएस अफसरों द्वारा संचालित ‘सट्टा कारोबार, सत्ता और सिस्टम’ का एक कारगर उद्योग है, जिसकी चिमनी से रोजाना करोड़ो की ब्लैक मनी निकल रही थी। दागी आईपीएस अधिकारियों की कार्यप्रणाली छत्तीसगढ़ शासन की प्रशासनिक साख में एक बड़ा दाग साबित हो रही है। फ़िलहाल, कई संदेही और आरोपी अफसरों पर एजेंसी का शिकंजा जल्द कसने के आसार नजर आने लगे है।