छत्तीसगढ़ में ठेकेदारों की आय का साधन बनी मुख्यमंत्री ‘अमृत’ योजना को बच्चों का टाटा-बाय-बाय, सोया मिल्क के बजाय काऊ मिल्क की मांग, भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी से लाखों बच्चों को मिली मुक्ति…  

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में बच्चों को भरपेट नाश्ता-भोजन कराने वाली योजनाओं का रचनात्मक प्रभाव स्कूलों पर पड़ा है। इस योजना का सबसे ज्यादा लाभ उन अभिभावकों को मिला है, जिनके बच्चे अक्सर स्कूलों से नदारत हो जाते थे। बच्चों का पेट भरने वाली इस महती योजना से लाभान्वित ऐसे छात्रों में सर्वाधिक संख्या उन विद्यार्थियों की बताई जाती है, जो बीच सत्र में ही गायब हो जाते थे, फिर दोबारा स्कूल आने का नाम ही नहीं लेते थे। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की कल्पना वाली इस योजना ने धरातल पर कार्य करते हुए सरकारी स्कूलों की रौनक बढ़ा दी थी। इस योजना से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का ग्राफ आसमान तक पहुंचा था। लेकिन अब यह योजना भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गई है।

बीते 5 सालों में योजना का क्रियान्वयन सिर्फ कागजी खानापूर्ति तक सीमित बताया जाता है। आखिरकार राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने मुख्यमंत्री अमृत योजना पर विराम लगा दिया है। वर्ष 2017-18 से जारी मुख्यमंत्री अमृत योजना अगले महीने अप्रैल से बंद हो जाएगी। जानकार तस्दीक करते है कि अगले वित्तीय वर्ष से स्कूली बच्चों के लिए कई नई सौगात दी गई है। जानकारी के मुताबिक इस योजना के तहत प्रदेश के लाखों बच्चों को साप्ताहिक पौष्टिक आहार के रूप में सोया मिल्क परोसा जाता था। लेकिन इसकी गुणवत्ता को लेकर ढेरों शिकायतें तत्कालीन भूपे सरकार की नाक के नीचे दबी रही।

तत्कालीन सरकार ने ना तो बच्चों की सेहत की सुध ली थी और ना ही योजना के क्रियान्वयन की ओर झांक कर देखा था। नतीजतन, ठेकेदारों को हर माह करोड़ों का फायदा होता रहा। जबकि महीनों सोया मिल्क का सेवन करने के बावजूद बच्चों के स्वास्थ्य में कोई गुणात्मक सुधार सामने नहीं आया। अलबत्ता घटिया सोया मिल्क पीने से कई बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर के किस्से आम हो गए थे। बताते है कि ठेकेदारों से सांठ-गांठ कर पूर्ववर्ती सरकार के कर्ताधर्ताओं ने इस योजना को अपनी अवैध कमाई का जरिया बना लिया था। लेकिन अब लाखों बच्चों को इससे छुटकारा मिल गया है। जानकार सूत्र तस्दीक करते है कि भारी भरकम भ्रष्टाचार से यह योजना फेल हो गई है, शिकायतों का अंबार है, बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया गया था। 

जानकारी के मुताबिक कुपोषण से लड़ने के लिए पूर्ववर्ती डॉ. रमन सरकार के पायलट प्रोजेक्ट के तहत दो जिलों में प्राथमिक-माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को सोया मिल्क हर सप्ताह दिया जाता था। इसमें प्राथमिक शाला के बच्चों को 100 एमएल और माध्यमिक स्कूल के बच्चों को 150 एमएल दूध दिया जाता था। जानकारों के मुताबिक तत्कालीन बीजेपी सरकार के कायम रहते इस योजना के अच्छे परिणाम सामने आये थे। इसके सकारात्मक प्रभाव के मद्देनजर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अपने दौर में भी इसे जारी रखा। लेकिन चंद महीनों बाद ही योजना के स्वरूप को बदल दिया गया।

अब इस योजना में सोया मिल्क की गुणवत्ता को नजरअंदाज कर कमीशनखोरी के पैमाने पर खरा उतरने का नया फार्मूला लागू कर दिया गया था। नतीजतन, यह महती योजना भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गई। स्कूली बच्चों के गुणवत्ता वाले सोया मिल्क पर भी पूर्व मुख्यमंत्री के कर्णधारों ने हाथ साफ़ किये। बस्तर-कवर्धा के लगभग 3730 स्कूलों के 2.25 लाख बच्चों को इस योजना के तहत सोया मिल्क उपलब्ध कराया जाता था। बताया जाता है कि इस योजना के अनुचित लाभ उठाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती रही। नतीजतन, 2024-25 में इसका विस्तार करते हुए जशपुर-कांकेर सहित 11 जिलों में ऐसे ही पायलट प्रोजेक्ट का खांका खींच कर एक प्रस्ताव मौजूदा साय सरकार को भी भेजा गया था। लेकिन लाभार्थियों के मंसूबों से वाकिफ छत्तीसगढ़ ने इस योजना को आगे भी जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। 

जानकारी के मुताबिक PPP मॉडल के तहत लाभान्वित ठेकेदारों ने सोयाबीन से बने दूध में पौष्टिकता का दावा करते हुए कहा था कि इसमें कैलोरी कम और प्रोटीन बहुत अधिक होता है। दावे के मुताबिक 100 रुपए प्रति लीटर सरकारी सप्लाई वाले इस सोया मिल्क के नियमित सेवन से बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है। लेकिन हकीकत में ना तो प्रभावित बच्चों का कुपोषण ख़त्म हुआ और ना ही सोया मिल्क के सेवन से सेहत में कोई फर्क पड़ा। प्रभावित बच्चे अब गाय के दूध की मांग कर रहे है।

जानकारी के मुताबिक साल दर साल इस योजना की लागत बढ़ते रही। लेकिन फायदा बच्चों के बजाय ठेकेदारों को मिला। पिछले साल 2024-25 के बजट में इस योजना के लिए 5.71 करोड़ आबंटित किये गए थे। बताते है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में आंख मूंद कर इस योजना के सालाना बजट में 6-7 करोड़ रुपए की वृद्धि कर मोटी रकम का आबंटन किया जाता था। फिजूल खर्ची की भेट चढ़ी इस योजना के स्थान पर नई योजना और उसके प्रावधान कितने कारगर साबित होंगे, यह तो वक़्त ही बताएगा ? फ़िलहाल, ठेकेदारों के लिए अमृत बनी इस योजना पर विराम लगने से बच्चे सोया मिल्क की पन्नियों को अभी से टाटा-बाय-बाय कह रहे है।