रायपुर: छत्तीसगढ़ में वन रक्षकों के भर्ती घोटाले को क़ानूनी रूप देने के लिए दागी अफसरों ने नई कवायत शुरू की है। इसके तहत नियम कायदों को दरकिनार कर कुपात्र उम्मीदवारों की नियुक्ति को क़ानूनी रूप देने के लिए विभाग ने कार्योत्तर स्वीकृति का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है। जबकि छत्तीसगढ़ शासन ने वन एवं जलवायु विभाग में फॉरेस्ट गार्ड और ड्राइवरों की भर्ती के लिए जारी नोटिफिकेशन में सब कुछ साफ कर दिया था। ताकि नियुक्तियों में पारदर्शिता बरती जा सके। बावजूद इसके दागी अफसरों ने डिजिटल प्रणाली के बजाय चेहरा-मोहरा देखकर अपनों को उपकृत कर दिया था।
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जानकारी के मुताबिक कई इलाकों में उम्मीदवारों का देर रात फिजिकल टेस्ट लिया गया था। उन्हें अँधेरे में दौड़ा कर मैनुअल खानापूर्ति की गई थी। इस बड़े घोटाले के उजागर होने के बाद बचाव में आये दागी अफसरों ने एक नई कवायत के तहत राज्य सरकार को कार्योत्तर स्वीकृति का प्रस्ताव भेज कर गैर-क़ानूनी कृत्यों पर मुहर लगाने की पहल की है। हालाँकि, राज्य स्तर पर इस फैसले की स्वीकृति को लेकर जिम्मेदार अफसरों ने अपने हाथ खींच लिए है। सूत्र तस्दीक करते है कि पिछले 2 माह से फाइल मंत्रालय स्तर पर लटकी हुई है। उधर शासन के स्पष्ट दिशानिर्देशों के बावजूद नियमों की धज्जियाँ उड़ाने के मामले में कई अभ्यर्थियों ने गंभीर शिकायते की है।
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यही नहीं कई पीड़ितों ने अदालत का रुख कर भर्ती घोटाले की उच्च स्तरीय जांच की मांग भी की है। जबकि अभ्यर्थियों का एक वर्ग भर्ती निरस्त कर नए सिरे से शासन के नियमों के तहत पारदर्शिता पूर्ण नियुक्ति की मांग कर रहा है। राज्य में वन एवं जलवायु विभाग में कुल 1628 पदों पर की गई भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई थी। राज्य सरकार ने समस्त भर्ती केंद्रों में डिजिटल प्रणाली का उपयोग सुनिश्चित करते हुए सुबह सूर्योदय से लेकर शाम को सूर्यास्त तक ही भर्ती प्रक्रिया जारी रखने के निर्देश दिए थे। इसके लिए भर्ती केंद्रों में डिजिटल प्रणाली स्थापित करने हेतु हैदराबाद की एक कंपनी को करोड़ों का ठेका दिया गया था।
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शिकायत कर्ताओं के मुताबिक लगभग 10 करोड़ का टेंडर हासिल करने के बावजूद इस कंपनी ने समय पर डिजिटल प्रणाली स्थापित नहीं की। यही नहीं अधिकारियों ने मैनुअल फिजिकल टेस्ट में जमकर धांधली बरती। कई भर्ती केंद्रों में देर रात तक अभ्यर्थियों से दौड़ लगवाई गई। अन्यथा उन्हें मैदान से बाहर जाने का फरमान सुनाया गया। उम्मीदवारी रद्द होने के भय से हज़ारों अभ्यर्थियों ने अँधेरे में ही दौड़ लगाकर अपना दम-खम साबित किया। जानकारी के मुताबिक नियमों की धज्जियाँ उड़ाने को लेकर दागी अधिकारियों ने रात्रि में दौड़-भाग (फिजिकल टेस्ट) को लेकर जोर-जबरदस्ती सादे कागजों पर अनापत्ति भी प्राप्त की। ताकि घोटाला उजागर होने की सूरत में उनका बचाव हो सके।
बताया जाता है कि फारेस्ट गार्ड और ड्राइवर की भर्ती के लिए प्रदेश के विभिन्न भर्ती केंद्रों में 2 लाख से ज्यादा उम्मीदवार इकट्ठा हुए थे। उधर भर्ती केंद्रों में डिजिटल प्रणाली के स्थापित नहीं होने के चलते हज़ारों उम्मीदवारों को नियम-कायदों के तहत प्रदर्शन करने का मौका नहीं मिला था। सरकारी नियम-कायदों के तहत भर्ती प्रक्रिया संचालित करने की जिम्मेदारी विभागीय प्रमुख, 1990 बैच के आईएफएस श्रीनिवास राव की थी। लेकिन अब इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार के रूप में उनका ही नाम सामने आया हैं। पद के दुरुपयोग और एक प्राइवेट कंपनी को डिजिटल प्रणाली का अनुचित ठेका उपलब्ध कराने के मामले में उनकी कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है।
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जानकारी के मुताबिक टेंडर की सेवा शर्तों के अनुरूप डिजिटल प्रणाली उपलब्ध नहीं कराने के चलते कई भर्ती केंद्रों में अफरा-तफरी की स्थिति निर्मित हुई थी। जबकि प्रदेश के ज्यादातर जिलों से भर्ती घोटाले में कुपात्रों को मौका दिए जाने की भी जानकारी उजागर हुई है। कोरिया वन मंडल में 35, मनेंद्रगढ़ वन मंडल में 37 और टाइगर रिजर्व में 26 वनरक्षकों की भर्ती के खिलाफ अभ्यर्थियों ने नोडल अधिकारी (डीएफओ कोरिया) को पत्र सौंपकर भर्ती निरस्त करने मांग की है।
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शिकायत में बताया गया है कि फिजिकल टेस्ट में वन अधिकारियों और उनके स्टाफ से जुड़े रिश्तेदारों को अनुचित मौका दिया गया है। अभ्यर्थियों ने इसकी शिकायत वनमंत्री, पीसीसीएफ, सीसीफ सरगुजा को भी भेजी है। कोरिया वनमंडल की तर्ज पर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में गड़बड़ियों को लेकर लगातार शिकायतें सामने आ रही है। इस बीच ‘कार्योत्तर स्वीकृति प्रस्ताव’ को घोटालेबाजों की नई कवायत के रूप में देखा जा रहा है। जानकार तस्दीक कर रहे है कि दागी अफसरों ने पहले लाभ कमाया और अपने गुनाहों से बचने के लिए ‘पासा’ राज्य सरकार की ओर उछाला है।