रायपुर: छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव की सरगर्मियां जोरो पर है। इस बीच चुनाव ख़त्म होते ही संभावित ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर प्रशासनिक हलकों में हलचल तेज है। इस कड़ी में अंबिकापुर पुलिस रेंज के ‘आईजी’ की कुर्सी हथियाने की कवायत भी जोरो पर देखी जा रही है। राजनैतिक गलियारों में इस पद के लिये उपयुक्त अधिकारी के नाम पर 2005 बैच के आईपीएस शेख आरिफ का नाम अव्वल नंबर पर बताया जाता है। सूत्र तस्दीक करते है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ‘चलनशील’ आईपीएस शेख आरिफ ने मौजूदा बीजेपी सरकार की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए कई प्रशासनिक अधिकारियों को मैदान में उतार दिया है।
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उनकी सिफारिश करने वालों में बीजेपी के इक्का-दुक्का नेताओं के अलावा वरिष्ठ पदों से रिटायर होने वाले आईपीएस अधिकारी भी शामिल हो गए है। वे बीजेपी और आरएसएस के उन प्रभावशील पदाधिकारियों के समक्ष अपनी दलीले पेश कर रहे है, जिनका सरकार में दखल बताया जाता है। इन दलीलों में आरिफ को अंबिकापुर रेंज का आईजी बनाने की मुहीम खासतौर पर शामिल बताई जा रही है। अंबिकापुर रेंज आईजी के लिए एक करोड़ का ऑफर राजनैतिक गलियारों में सुर्खियां बटोर ही रहा था कि एक नई कवायत से बीजेपी हलकों में घुसपैठ का नया मामला सामने आया है।
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बीजेपी संगठन की महत्वपूर्ण गतिविधियों पर नीतिगत फैसले लेने की जिम्मेदारी संभाल रहे एक वरिष्ठ पदाधिकारी से एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की मुलाकात इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। सूत्रों द्वारा बताया जाता है कि विवादित छवि के शेख आरिफ को अंबिकापुर रेंज आईजी बनाने की सिफारिश लेकर संगठन के एक पदाधिकारी ने साफतौर पर इंकार कर दिया है। एक ताजा घटनाक्रम में बताया जा रहा है कि उस वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को उस समय असहज स्थिति का सामना करना पड़ा, जब संगठन के पदाधिकारी ने सख्त अंदाज में शेख आरिफ की पैरवी करने पर दो टूक जवाब दे दिया।
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सूत्र तस्दीक करते है कि मामला यही नहीं थमा, वरिष्ठ पदाधिकारी ने हैरानी जताते हुए इस वरिष्ठ सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी को भविष्य में शेख आरिफ जैसे दागी अधिकारियों की पैरवी से बचने की सलाह दे डाली। बताया जाता है कि प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव ख़त्म होते ही कई महत्वपूर्ण पदों पर फील्ड पोस्टिंग की तैयारी की जा रही है। प्रशासनिक काम-काज को गति देने के लिए राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने हालिया दिनों में खांका तैयार किया है। इसके तहत खाली पदों पर नियुक्तियों के साथ ही साथ वरिष्ठ पदों पर भी ट्रांसफर-पोस्टिंग का दौर शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। सूत्र तस्दीक करते है कि आपदा में अवसर की तलाश में जुटे अफसरों में वो दागी अफसर भी शामिल हो गए है, जिन्हे उनकी विवादित कार्यप्रणाली के चलते बीजेपी सरकार ने सत्ता में आते ही ‘चलन’ से बाहर कर दिया था।
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राज्य में जारी राजनैतिक बयार के बीच अब ऐसे अधिकारियों ने भी बीजेपी सरकार की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए अपने हाथ पैर मारना शुरू कर दिया है। इस फेहरिस्त में शेख आरिफ के बाद 2001 बैच के आईपीएस आनंद छाबड़ा का नाम दूसरे नंबर पर बताया जा रहा है। जबकि 15 हज़ार करोड़ के महादेव ऐप घोटाले में शामिल होने समेत पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में अन्य आपराधिक प्रकरणों में चर्चा में आये ASP से लेकर TI जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रहे कई पुलिस अधिकारी मौजूदा सरकार में पुनः मलाईदार पदों पर तैनाती पाने में कामयाब रहे है।
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प्रशासनिक सूत्र यह भी तस्दीक करते है कि ऐसे दागियों की तैनाती से अब दागी आईपीएस भी अपनी ताजपोशी का सपना संजो रहे है। राजनैतिक और प्रशासनिक हलकों में अंबिकापुर आईजी बनने के लिए इस दागी आईपीएस शेख आरिफ की जोड़-तोड़ का मकसद और मायने भी तलाशे जाने लगे है।
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दरअसल, अंबिकापुर रेंज में कोल कारोबार जहाँ संवेदनशील और लाभदायक उद्योग-धंधों में गिना जाता है, वही इस रेंज अंतर्गत मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का गृहनगर भी स्थित है। ऐसे में शेख आरिफ की इस रेंज में तैनाती के लिए जोड़-तोड़ कई मायनों से जोड़ कर देखी जा रही है। बहरहाल, यह देखना गौरतलब होगा कि कांग्रेस राज में स्वघोषित कार्यकारी डीजीपी शेख आरिफ पर बीजेपी शासन काल में कानून का शिकंजा आखिर कब प्रभावशील साबित होता है।