दिल्ली: अब कर्मचारियों को 60 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट लेने की बाध्यता से मुक्ति मिल सकती है, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र को 62 वर्ष तक बढ़ा दिया है। इस फैसले के बाद सरकारी कर्मचारियों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी है, क्योंकि यह फैसला उनके जीवन की योजना को नया मोड़ देने वाला है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, सूत्र तस्दीक कर रहे है कि सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र अब 62 वर्ष कर दी गई है, जो पहले 60 वर्ष थी।
यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है जो अपनी सेवा में और कुछ वर्षों का विस्तार चाहते थे। इस निर्णय ने कर्मचारियों के मन में आत्मविश्वास और उत्साह का संचार किया है, क्योंकि अब वे अपने परिवार और आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ और वर्षों तक सेवा दे सकते हैं।इस फैसले का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को मानसिक और आर्थिक रूप से स्थिर बनाना बताया जा रहा है, ताकि वे अपनी कार्यकुशलता और अनुभव का लाभ देश को और अपने विभागों को दे सकें।
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पहले, सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 वर्ष थी, जिसे कुछ वर्षों बाद बढ़ाकर 60 वर्ष किया गया था। लेकिन अब यह निर्णय लिया गया है कि सरकारी कर्मचारियों की सेवा की अवधि को 62 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह बदलाव खासकर उन कर्मचारियों के लिए है जिनकी सेवा में कई वर्षों का अनुभव है और जो अपने काम को सही ढंग से पूरा करना चाहते हैं। नए फैसले के बाद सरकारी कर्मचारियों को कई महत्वपूर्ण फायदे मिलेंगे, जो उनके जीवन को बेहतर बनाएंगे। यह बदलाव सिर्फ कर्मचारियों की सेवा के वर्षों को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगा।
अधिक सेवा का लाभ कर्मचारियों को मिलेगा। अब वे अपने कार्यकाल को दो अतिरिक्त वर्षों तक बढ़ा सकते हैं। इससे उन्हें आर्थिक रूप से स्थिरता मिल सकती है। 62 वर्ष की उम्र तक कार्य करने से कर्मचारियों को पेंशन की अधिक राशि प्राप्त होगी, जिससे उनकी रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी आरामदायक होगी। यही नहीं अनुभव का लाभ भी शासन-प्रशासन को प्राप्त होगा।
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दरअसल, अधिक सेवा का समय कर्मचारियों को अधिक अनुभव और प्रशिक्षण का अवसर देगा, जिससे वे अपने विभाग और संगठन में अधिक योगदान दे सकते हैं। फ़िलहाल, अदालती फैसला सरकार द्वारा कब और कैसे लागू किया जायेगा इस बारे अभी कोई ठोस जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है। हालांकि, बेरोजगारी की मार झेल रहे कई योग्य नौजवानों ने इस फैसले का विरोध भी किया है। उनके मुताबिक ऐसे फैसलों से सरकारी नौकरियों में अवसर की कमी जैसे हालातों से पढ़े-लिखे बेरोजगारों को जूझना भी पड़ेगा।