वन विभाग में फॉरेस्ट गार्ड और ड्राइवर के पदों पर भर्ती घोटाले की शिकायत राज्य सरकार, CVC और पीएम मोदी को, जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया भी शुरू, इस शख्स ने सौंपा गड़बड़ी का पुलिंदा….    

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में सरकारी पदों में नियुक्ति को लेकर पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल से छिड़ा विवाद अब तक नहीं थम पाया है। राज्य में बीजेपी की सरकार के सत्तारूढ़ हुए साल भर बीत गए लेकिन घोटालेबाजों से मुख्यमंत्री साय का सामना अब तक जारी है। ऐसे दगाबाजों को सरकारी सेवाओं से मुक्त करने को लेकर बीजेपी सरकार को अब तक कामयाबी नहीं मिल पाई है। ‘तू डाल-डाल तो मैं पाद-पाद’ की तर्ज पर तमाम घोटालेबाज खुद को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे है। इस बीच प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय मिश्रा ने वन एवं जलवायु विभाग के प्रमुख श्रीनिवास राव की राज्य सरकार, CVC और पीएमओ में शिकायत की है। इसमें साफतौर पर कहा गया है कि छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा वन रक्षकों के 1628 पदों पर भर्ती में भ्रष्टाचार की उच्च स्तरीय जांच पुलिस में प्राथिमिकी दर्ज कर की जाए। इसके लिए शिकायतकर्ता ने कई दस्तावेज भी संलग्न किये है।

उन्होंने राज्य सरकार को एक क़ानूनी नोटिस के तहत भी भारतीय न्याय संहित के सुसंगत धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर इस भर्ती घोटाले की जांच की मांग की है। शिकायत में कहा गया है कि राज्य में वन रक्षकों (फारेस्ट गार्ड) की भर्ती हेतु लगभग 1500 पदों पर नवम्बर 2024 से दिसंबर 2024 के बीच फिजिकल टेस्ट विभिन्न वन मंडलों में किया गया था। इसमें लगभग 4 लाख 25 हजार से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था।

शिकायत के मुताबिक इस भर्ती में बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई। राज्य शासन ने अपने आदेश क्रमांक एफ 1-53/2003/10-1/वन, नवा रायपुर दिनांक 21.05.2024 द्वारा वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया जारी कर फिजिकल टेस्ट 200 मी. दौड़, 800 मी. दौड़, लंबी कूद (03 प्रयास), गोला फेंक (03 प्रयास) हेतु अंक निर्धारित किए गए थे। इस आदेश में स्पष्ट लिखा गया था कि शारीरिक क्षमता परीक्षा सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच पर्याप्त रोशनी में कराई जायेगी। रात या कृत्रिम प्रकाश में नहीं किंतु कई जिलों में इस निर्देश के विपरीत, कृत्रिम प्रकाश में यह प्रक्रिया अपनाई गई। 

शिकायत के मुताबिक शारीरिक परीक्षण हेतु स्पष्ट निर्देश के बावजूद डिजिटल उपकरण प्रणाली स्थापित नहीं की गई। इसमें प्रदेश के कई जिलों के डीएफओ ने ऐतराज भी जताया था। लेकिन सरकारी पत्रों पर प्रधान मुख्य संरक्षक श्रीनिवास राव ने कोई कार्यवाही नहीं की। अपितु बगैर डिजिटल प्रणाली के भर्ती प्रक्रिया को अमल में लाया गया। बालोद, सरगुजा, महासमुंद, जशपुर, कांकेर, रायगढ़, कोरिया, बीजापुर, कवर्धा, राजनांदगांव, कोंडागांव, जगदलपुर, रायपुर, धमतरी, बिलासपुर एवं कोरबा में फिजिकल टेस्ट 16 नवंबर 2024 से प्रारंभ होकर 17 दिसंबर 2024 तक वन मंडलावार अलग-अलग तिथियों में संपन्न किया गया। 

घोटाले की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए शिकायत में कहा गया है कि फिजिकल टेस्ट के लिए एजेंसी चयन बाबत् निविदा की शर्ते राज्य शासन द्वारा जारी की गई थी। इसकी शर्त क्रमांक 04 (एच) यह स्पष्ट लेखबद्ध है कि लंबी कूद, गोला फेंक सहित समस्त अन्य टेस्ट की माप मशीनों द्वारा ली जावेगी, लंबी कूद व गोला फेंक के तीनों प्रयासों का माप मशीन द्वारा ही ली जावेगी साथ ही सभी टेस्ट की वीडियो रिकॉर्डिंग की जायेगी, जिसको प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत किया जाना होगा।

जबकि ऐसे स्पष्ट निर्देशों की अवहेलना करते हुए वन एवं जलवायु विभाग में भर्ती प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। शिकायत में आश्चर्य जताते हुए यह भी बताया गया है कि डिजिटल प्रणाली के लिए एजेंसी नियुक्ति संबंधी निविदा-टेंडर जारी होने के पश्चात टाइमिंग टेक्नोलॉजीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड माघापुर को भर्ती प्रक्रिया का कार्य सौंपा गया था। इसके लिए 224 रुपये प्रति उम्मीदवार की दर से भुगतान भी इस एजेंसी को तय किया गया था। जबकि करोड़ों के भुगतान और वर्क आर्डर प्राप्त करने के बाद यह कंपनी निर्धारित सेवा नहीं प्रदान कर पाई। नतीजतन भर्ती प्रक्रिया आपारदर्शी और विवादित हो गई। 

शिकायत के मुताबिक 16 नवंबर 2024 को बीजापुर, दंतेवाड़ा एवं रायगढ़ में जब फिजिकल टेस्ट के लिए उम्मीदवार प्रस्तुत हुए तो डिजिटल उपकरण स्थापित करने वाली ठेका एजेंसी के द्वारा इन जिलों के अलावा ज्यादातर अन्य केन्द्रों में भी मशीनें उपलब्ध नहीं कराई गई। जबकि कुछ गिने-चुने केंद्रों में मांग की तुलना में कम संख्या में उपलब्ध कराई गई मशीने भी सही ढंग से कार्य करते नही पाई गई। यह ठेका कंपनी की सेवा शर्तों के उल्लंघन के दायरे में है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि कई जिलों के डीएफओ ने इस संबंध में पत्र लिखकर मुख्यालय में घटनाक्रम को सूचित भी किया था। बावजूद इसके श्रीनिवास राव द्वारा कोई वैधानिक कार्यवाही इस ठेका कंपनी के खिलाफ नहीं की गई। अलबत्ता ठेका कंपनी को खानापूर्ति के लिए अनुचित संरक्षण प्रदान किया गया।

रायगढ़ डीएफओ ने अपने पत्र दिनांक 17.11.2024 से सीसीएफ बिलासपुर को पत्र लिख कर सूचित किया कि 16.11.2024 को 2500 उम्मीदवारों की माप आदि की जानी थी। लेकिन निर्धारित समय सुबह 6 बजे से 9 बजे तक मशीने चालू नही हो पाई थी, बार-बार मशीनों के खराब होने से रात 11 बजे तक लगभग 250 लोगों की ही माप हो सका था। इसी प्रकार 17 नवंबर को भी मशीने ठप होने, कार्यरत नहीं होने की जानकारी भी दी गई। यही नहीं प्रदेश के अन्य जिलों के डीएफओ ने भी इस तरह का पत्र मुख्यालय में अपने सीनियर अधिकारियों को सौंपा था। हालात से निपटने के लिए उन्होंने जो पत्र लिखा उसका कोई जवाब प्रधान मुख्य संरक्षक द्वारा नहीं दिया गया। जबकि डिजिटल प्रणाली स्थापित करने हेतु कंपनी को महीनों पहले विभागीय सूचना प्राप्त हो चुकी थी। 

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय मिश्रा ने शिकायत में यह भी तथ्य सरकार के संज्ञान में लाया है कि आवश्यकता से बहुत कम संख्या एवं खराब मशीनें उपलब्ध कराने से ज्यादातर भर्ती केंद्रों में हंगामा और गतिरोध उत्पन्न हुआ। इस दौरान प्रधान मुख्य संरक्षक ने ठेका कंपनी के बचाव और खुद की लापरवाही छिपाने के लिए अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए एक विभागीय कमेटी गठित की। इस कमेटी के माध्यम से श्रीनिवास राव ने डिजिटल प्रणाली के बजाय मेनुअल माप-जोख की सिफारिश कर भर्ती घोटाले को अंजाम दिया। उनके मुताबिक हज़ारों उम्मीदवार इस अवैध सिफारिश के चलते परेशान होते रहे। जबकि भर्ती अधिकारियों द्वारा यह कहा गया कि मेनुअल माप-जोख इस कमेटी की सिफारिश के आधार पर किया गया। जबकि यह राज्य सरकार द्वारा पूर्व निर्धारित नियमों और दिशा निर्देशों के ठीक विपरीत अमल में लाया गया। 

शिकायत के मुताबिक प्रधान मुख्य संरक्षक ने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए हज़ारों बेरोजगारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। उनके मुताबिक इस गैर-क़ानूनी कमेटी की सिफारिशों के चलते भर्ती घोटाले को अंजाम दिया गया। इसके लिए बैक डेट पर कई अनुमति भी प्राप्त की गई। विजय मिश्रा के मुताबिक विभाग प्रमुख द्वारा कमेटी गठित कर अपारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई। इसमें रात के कृत्रिम प्रकाश में मैनुअल पद्धति से नाप-जोख की अनुशंसा गैर-क़ानूनी है। जबकि महीनों पहले डिजिटल प्रणाली लागू करने का आदेश जारी हो चूका था। उनके मुताबिक डीएफओ को दिनांक 21.11.2024 को पत्र लिखकर कार्यवाही हेतु अपारदर्शी आदेश जारी किया गया। उन्होंने कहा कि ठेका कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए वन विभाग द्वारा भर्ती केंद्रों में पर्याप्त और दुरुस्थ मशीने स्थापित करने हेतु बाध्य नहीं किया गया। नियमानुसार ऐसा ना कर ठेका कंपनी की मदद करने का मामला गंभीर है।

उन्होंने शिकायत में कहा है कि विभाग द्वारा जारी आदेश 21.11.2024 को हुआ उसके पश्चात कुछ वनमंडलाधिकारियों द्वारा 25.11.2024 को पत्र जारी कर मेनुअल कराये जाने हेतु अनुमति मांगी गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि वन मुख्यालय द्वारा 21 तारीख को जारी पत्र पिछली तारीख (बैक डेट) से जारी कर आपराधिक गतिविधियां और षड्यंत्र अमल में लाया गया था। शिकायत के मुताबिक टेंडर की शर्त क्रमांक 3 में स्पष्ट लेख था कि सभी केन्द्रों पर लगभग 40 से 50 हजार उम्मीदवार आयेंगे। जिनका 10 से 15 दिन में नापजोख पूरा किया जाना है। इस पूर्व सूचना के कारण एजेंसी को सही समय पर पर्याप्त मशीने लगानी थी किंतु विभाग प्रमुख के संरक्षण और अनुचित लाभ प्राप्त करने की मंशा के चलते भर्ती प्रक्रिया विवादों में घिर गई। उनके मुताबिक टेंडर की शर्त क्रमांक 25 में कार्य की गोपनीयता बनी रहने की शर्त का भी पालन नहीं किया गया।

ठेका एजेंसी द्वारा मशीनो को संचालित करने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग लिया गया (रखा गया) यह भी जांच का विषय है। उन्होंने बताया कि डिजिटल प्रणाली के लिए ठेका एजेंसी को लगभग 10 करोड़ का भुगतान सुनिश्चित किया गया है। जबकि एजेंसी ने गैर जिम्मेदारी और आपराधिक कृत्य कर पूरी चयन प्रक्रिया को दूषित किया है। जानकारी के मुताबिक शिकायतकर्ता विजय मिश्रा ने इस प्रकरण को बतौर नोटिस राज्य  सरकार के संज्ञान में लाया है। न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ से चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि निर्धारित समय पर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होने की सूरत में वे अदालत का दरवाजा खट-खटाएंगे।