छत्तीसगढ़ में ओबीसी को 50 फीसदी आरक्षण, कांग्रेस इसे शून्य करना चाहती थी- डिप्टी सीएम अरुण साव 

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में ओबीसी को अधिकतम 50 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित किया गया है। राज्य की मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने दावा किया है कि कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग के साथ छलावा किया था। वोट बैंक के मद्देनजर वो इसे शून्य करवाना चाहती थी, ताकि अपनी राजनैतिक रोटी सेक सके। डिप्टी सीएम अरुण साव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ओबीसी वर्ग को समुचित आरक्षण देकर बीजेपी इस वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहती है, जबकि कांग्रेस इस मामले में सिर्फ राजनैतिक बयानबाजी करते रही। उधर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव ने भी एक बयान में कहा है कि भाजपा की आंतरिक व्यवस्था से अनारक्षित सीटों पर पिछड़ा वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलेगा।

नेताद्वय ने कांग्रेस पर कई गंभीर आरोप लगाए है। उन्होंने कहा कि आरक्षण मामले में कांग्रेस का बवाल करवाने का बयान निंदनीय है। उनके मुताबिक कांग्रेस प्रदेश में कानून व्यवस्था को खराब करने का लगातार षड्यंत्र कर रही है। आज भाजपा प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने कहा कि हमने इस बात को सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है कि अनारक्षित सीटों पर पिछड़े वर्ग को अधिक प्रतिनिधित्व देंगे। उन्होंने कहा कि इससे पहले की स्थिति बहाल रहेगी एवं पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आएगी।

प्रदेश अध्यक्ष देव ने कहा कि कांग्रेस केवल झूठ की राजनीति करती है, वह मुद्दों के अभाव से जूझ रही है राजनीतिक पतन की तरफ बढ़ रही है इसलिए केवल वर्ग संघर्ष की बात करना, प्रदेश में माहौल खराब करने का प्रयास करना, षड्यंत्र करना यही कांग्रेस का काम रह गया है। प्रदेश भाजपाध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस ने तो वास्तव में ओबीसी आरक्षण के विरोध में कोर्ट जाने वाले और ओबीसी का आरक्षण रोकने वाले लोगों को पुरस्कृत करने का काम किया है। भाजपा कांग्रेस के सभी षडयंत्र उजागर करती रहेगी और कांग्रेस का झूठ अब चलने वाला नहीं है।

प्रेस वार्ता में उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने विस्तार से आरक्षण के प्रावधानों की जानकारी देते हुए कहा कि कांग्रेस हमेशा से ओबीसी विरोधी रही है। साव ने कहा कांग्रेस हमेशा पिछड़ा वर्ग का विरोधी रही है। वह आरक्षण के खिलाफ रही है। तब की कांगेस सरकार द्वारा ‘कालेलकर आयोग’ की अनुशंसा को ठंडे बस्ते में डाल देने के बाद आगे फिर ‘मंडल आयोग’ तक का इंतज़ार करना पड़ा। पंडित नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक के आरक्षण विरोधी वक्तव्यों के अनेक संदर्भ आपको गाहे ब गाहे दिख भी जायेंगे। मसलन 1961 में मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में पंडित नेहरू ने कहा था कि आरक्षण से अक्षमता और दोयम दर्जे का मानक पैदा होता है। इंदिरा गांधी ने मंडल आयोग की संस्तुति से किनारा कर लिया था। राजीव गांधी ने तो यहां तक कह दिया था कि आरक्षण से हम बुद्धुओं को बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार बार-बार प्रमाणित हुआ है कि कांग्रेस पूरी तरीके से आरक्षण विरोधी रही है।

आरक्षण संबंधी सभी संवैधानिक प्रावधानों की विस्तृत जानकारी देते हुए साव ने कहा कि देश के संसद में 73वां 74वां संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा सशक्त और जवाबदेह पंचायत एवं नगर पालिका बनाने का प्रावधान संविधान में किया गया और साथ ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े हुए नागरिकों के किसी भी वर्ग के पक्ष में आरक्षण के लिए उपबंध (प्रावधान) करने का अधिकार राज्य के विधान मंडल को दिया गया है। साथ ही सभी वर्ग में महिलाओं के लिए भी आरक्षण से संबंधित उपबंध (प्रावधान) दिये हैं। अनुच्छेद 243 (घ) में पंचायतों के स्थानों के आरक्षण से संबंधित प्रावधान है, जिसमें 243(घ)(1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का प्रावधान है। 243(घ)(2) में महिलाओं से संबंधित आरक्षण का प्रावधान  और 243(घ)6 में पिछड़े हुए नागरिकों के लिए आरक्षण के संबंध में उपबंध है।

इस प्रकार नगर पालिकाओं में आरक्षण से संबंधित प्रावधान 243(न) में उपबंधित है, जिसमें 243(न) (1) में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के उपबंध है। 243(न)(2) में महिलाओं के आरक्षण से संबंधित उपबंध है एवं 243(न)(6) में कमजोर वर्गों से संबंधित आरक्षण के उपबंध है। नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 में धारा (11) स्थानों में आरक्षण से संबंधित उपबंध है, जिसमें धारा (11) (1) में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। धारा (11) (2) में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का उपबंध करता है एवं धारा (11) (3) में महिलाओं के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। इसी प्रकार नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 29 (क) में स्थानों में आरक्षण से संबंधित उपबंध है। 29 (क)(1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है। 29 (क)(2) अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है। 29 (क)(3) में महिलाओं से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है।

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 13 में ग्राम पंचायत के गठन से संबंधित उपबंध है, जिसमें धारा 13 (4)(1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। 13 (4)(2) अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है एवं 13 (4)(5) महिलाओं के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। उक्त में पंचायत एवं नगर पालिकाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान इस प्रकार थे कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को मिलाकर 50% या 50% से आरक्षण कम होने पर अन्य पिछड़ा वर्ग को एकमुश्त 25%आरक्षण देने का प्रावधान था।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलाकर कुल आरक्षण 50% से अधिक होने को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसमें किशोर कृष्ण राव गवली विरूद्ध महाराष्ट्र शासन आदेश दिनांक 04.01.2021 और सुरेश महाजन विरूद्ध मध्यप्रदेश शासन आदेश दिनांक   10.05.2022 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने कुल आरक्षण 50% तक सीमित करने एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट करने की अनिवार्यता प्रतिपादित किया।

उक्त प्रावधान के अनुपालन में राज्य सरकार नें 16.07.2024 के द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया और आयोग ने प्रदेश के पिछड़े वर्ग की वर्तमान सामाजिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक स्थिति का अध्ययन कर सुझाव एवं अनुशंसाए दिनांक 24.10.2024 को राज्य शासन को प्रस्तुत किया। उक्त प्रतिवेदन में आयोग द्वारा वर्तमान में पंचायत एवं स्थानीय निकायों में आरक्षण की एकमुश्त सीमा 25% को शिथिल कर अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या के अनुपात में 50% की सीमा तक आरक्षण का प्रावधान किया जाये। उक्त प्रतिवेदन को मंत्रिपरिषद् द्वारा 28.10.2024 को स्वीकृति प्रदान की गई। तदनुसार छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993, नगर पालिका निगम 1956 एवं नगर पालिका अधिनियम 1961 में सुसंगत धाराओं में संशोधन किया गया। उपरोक्त के अनुसार पंचायतों एवं नगरीय निकायों में आरक्षण किया गया।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अनुपालन में किये गये आरक्षण में जनसंख्या के अनुपात में किये गये आरक्षण के कारण नगरीय निकाय के आरक्षण में विशेष अंतर नहीं पड़ा, परन्तु ग्रामीण क्षेत्र में 33 में से 16 जिले अधिसूचित जिले है तथा राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 12.72% है। उस अनुपात में 4 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई है। इस तरह से कुल 33 में से 20 सीटें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुई, जोकि 50% से अधिक है। इसलिए अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष का कोई पद आरक्षित नहीं हो पाई है। जबकि जिला पंचायत सदस्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष, जनपद पंचायत सदस्य, सरपंच, पंच के पदों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए नियमानुसार पद आरक्षित हुए है। इस प्रकार राज्य सरकार ने जो आरक्षण निर्धारित किया है, वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नियमानुसार ही है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त दोनों फैसले सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू है तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट करना अर्थात् आयोग का गठन करना एवं उसके अनुशंसा को राज्य सरकार द्वारा स्वीकार करना बंधनकारी है। इसी के पालन में मध्यप्रदेश, बिहार, उड़ीसा जैसे राज्यों ने भी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए पंचायत एवं नगरीय निकायों में प्रावधान करके चुनाव कराया है, जबकि झारखण्ड जैसे राज्य हैं जहां पर आयोग का प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं होने के कारण अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए बिना 2021-22 में राज्य निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत संस्थाओं का चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई भी सीट आरक्षित किये बिना चुनाव संपन्न कराया है। प्रेस वार्ता में मंत्री टंकराम वर्मा ,लक्ष्मी राजवाड़े,प्रदेश महामंत्री भरत वर्मा,भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी,सह प्रभारी अनुराग अग्रवाल भी उपस्थित थे।