रमन सिंह सरकार ने जिसे पुलिस सहायक बनाया, उस 10वीं फेल सुरेश चंद्राकर को अवैध उगाही के लिए भूपे सरकार ने प्रदेश के सबसे बड़े ठेकेदार के रूप में प्रतिष्ठित किया, 20 करोड़ का काम 120 करोड़ में, अब भेजा गया असल ठिकाने…. 

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बीजापुर/रायपुर: छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार और घोटाले अभी भी चरम पर है। दरअसल, प्रदेश के सरकारी सिस्टम में बड़ी तादात में उन अनाधिकृत और कुपात्रों की सहभागिता दर्ज है, जिन्हे कांग्रेस शासन काल में महिमा-मंडित किया गया था। नौकरशाही के चलते-पुर्जों के अलावा कई ऐसे गुंडे-बदमाश है, जिन्हे पूर्व मुख्यमंत्री ने ‘नेता और प्रभावशील ठेकेदार’ का चोला उढ़ा दिया है। ऐसे ही लोगों में बीजापुर का चर्चित ठेकेदार सुरेश चंद्राकर और उसका भाई रितेश चंद्राकर का नाम भी शामिल है। इलाके के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या मामले में मुख्य रूप से दोनों भाइयों की संलिप्तता सामने आने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। उनके अलावा एक अन्य आरोपी को भी हिरासत में लिया गया है। उनसे पूछताछ जारी है। माना जा रहा है कि सभी 3 आरोपियों को अदालत में पेश कर पुलिस उनकी रिमांड ले सकती है।

बताया जाता है कि पूछताछ में हत्या की असल वजह का भी आधिकारिक खुलासा होगा। इस बीच दिवंगत पत्रकार की हत्या की साजिश में कई अन्य लोगों का नाम भी बतौर संदेही सामने आ रहा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार अपनी तमाम सीमाएं लांघ चूका है। वही काले कारनामे उजागर करने के चलते पत्रकारों को मौत के घाट उतारने और उनके खिलाफ फर्जी प्रकरण दर्ज करने की घटनाएं भी लगातार सामने आ रही है। इस बीच उन ठेकेदारों के अवैधानिक निर्माण कार्य चर्चा में है, जो बस्तर के नारायणपुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर समेत अन्य इलाकों में सरकारी पुल-पुलिया, सड़क और भवन बनाने के कार्यों में जुटे है। 

बस्तर में विकास के नाम पर बड़े पैमाने पर धांधली के प्रकरण जनता के सामने है। इनकी उच्च स्तरीय जांच आवश्यक बताई जा रही है। इस इलाके में PWD, PMGSY, ADB फंडिंग, RES और आदिवासी कल्याण विभाग से जुड़ी ज्यादातर योजनाओं में बजट और प्राकलन लगभग दुगुनी से अधिक दरों पर स्वीकृत किया जा रहा है। इसके बावजूद भी निर्माण कार्यों की प्रगति धीमी और गुणवत्ताविहीन बताई जा रही है। स्थानीय लोगों के अनुसार पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने गंगालूर से नेलसनार तक बनाई जा रही 52.40 किलोमीटर की एक ऐसी ही सड़क के निर्माण की हकीकत उजागर की थी। इस सड़क की प्रारंभिक लागत पूर्व में 56 करोड़ आंकी गई थी। लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त विभागीय अमले ने उसे रिटेंडर कर लगभग 120 करोड़ तक पंहुचा दिया था।

इस तर्ज पर इलाके में अवैध कमाई का गोरखधंधा जोरो पर है। बताते है कि यह इकलौता मामला नहीं बल्कि इसी तर्ज पर सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ करने के दर्जनों मामले सुर्खियां बटोर रहे है। इसमें कई ऐसे प्रभावशील अधिकारी और ठेकेदार संलिप्त बताये जाते है, जिनकी मौजूदा सरकार में भी पौ-बारह है। उनकी सक्रिय भागीदारी से आदिवासी और नक्सल प्रभावित इलाकों में निर्माण कार्यों की लागत, स्वीकृत लागत की तुलना में आसमान जैसी बढ़ोत्तरी दर्ज कर रही है। बताया जाता है कि सरकारी अमले की देखरेख में ऐसे अवैधानिक कार्यों को बखूबी अंजाम दिया जा रहा है। यह भी तथ्य सामने आया है कि राज्य की पूर्ववर्ती रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में हत्या के आरोपी ठेकेदार सुरेश और राजेश चंद्राकर बेरोजगारी की मार झेल रहे थे।

इलाके में जारी नक्सल विरोधी अभियान में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने सुरेश की नियुक्ति साल 2005 में सलवा जुडूम आंदोलन के लिए स्पेशल पुलिस ऑफिसर के रूप में की थी। इस दौरान उसे प्रतिमाह लगभग 20-25 हज़ार रुपये वेतनभत्ते के रूप में मिलता था। बताया जाता है कि नक्सल विरोधी अभियान में स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPO) इलाके की पुलिस के सहायक के रूप में कार्य करते थे। इसके तहत 10वीं फेल सुरेश को इलाके के अन्य युवकों के साथ घर बैठे रोजगार मुहैया हो गया था। लेकिन कुछ वर्षों बाद उसने यह कार्य छोड़ ठेकेदारी का काम शुरू किया था। कांग्रेस सरकार के सत्ता के आने के बाद अचानक उसे PWD के प्रतिष्ठित ठेकेदारों के साथ समायोजित कर दिया गया।

बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपे और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का समर्थक होने के चलते उसे सड़क, भवन समेत अन्य कंस्ट्रक्शन के कार्यों में जमकर कार्य मिलने लगे। उसने देखते ही देखते कांग्रेस राज में नेतागिरी भी शुरू कर दी। राजनैतिक संरक्षण में उसने सिर्फ कागजों में कार्य कर कथित भ्रष्टाचार किया। यह कार्य मौजूदा सरकार के कार्यकाल में भी जारी रहा। हालांकि असलियत उजागर होते ही बीजेपी सरकार ने आरोपी सुरेश और उसके भाई राजेश चंद्राकर को हवालात की सैर करा दी है। एक जनवरी से लापता पत्रकार मुकेश चंद्राकर की मौत से समूचे पत्रकार समुदाय में मातम पसरा है।