मुंगेली: छत्तीसगढ़ के मुंगेली में भाजपा महिला नेता और जिला पंचायत सदस्य ने अपने पति के साथ मिलकर 28 लाख रूपए का घोटाला किया है। दोनों ने मिलकर 68 महिलाओं के साथ ठगी की है। जानकारी के मुताबिक लोरमी के डिण्डौरी क्षेत्र की जिला पंचायत रानू केशरवानी ने अपने पति संजय केशरवानी के साथ मिलकर 68 महिलाओं के नाम पर 28 लाख रूपए का लोन लिया।
दोनों ने ये राशि अपने निजी खाते में ट्रांसफर करवा ली। लंबे समय तक आरोपी लोन की किश्त भरते रहे। लेकिन सितंबर से किश्त जमा नहीं हो रही थी। इसके चलते लोन देने वाली कंपनी के कर्मचारी पीड़ित महिलाओं के घर पर पहुंचे। इस मामले में महिलाओं ने मुंगेली एसपी से लिखित में शिकायत की थी। शिकायत पर लोरमी एसडीओपी माधुरी धिरही ने पूरे मामले की जांच की, जिसमें आरोप सही पाए गए। इसके बाद से ही दोनों पति-पत्नी फरार हैं। पुलिस ने बताया कि चितरेखा धुर्वे और अन्य महिलाओं ने भाजपा महिला नेता और उसके पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
खुड़िया निवासी प्रार्थी चितरेखा धुर्वे ने बताया कि लगभग डेढ़ साल पहले, 4 जून 2023 को दोना पतरी का काम दिलाने के नाम पर जिला पंचायत सदस्य रानू केशरवानी और उसके पति संजय केशरवानी आए थे। इसके लिए दोनों ने महिलाओं से उनका राशन कार्ड, आधार कार्ड और फोटो लिया था। इसके अलावा एलएनटी फाइनेंस बैंक लोरमी के एक फॉर्म में सभी से दस्तखत कराए थे। दोनों ने महिलाओं को आश्वासन दिया था कि उनके खाते में पैसे आ जाएंगे। इसके अगले दिन नवरंगपुर किओस्क सेंटर में अंगूठा लगवाकर 48 हजार रूपए प्रार्थी के खाते से अपने खाते मे ट्रांसफर करा लिए। इस दौरान जिला पंचायत सदस्य दंपती ने प्रार्थी से कहा कि पैसे की जरूरत पड़ने पर ब्याज सहित इससे ज्यादा पैसा देगें।
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चितरेखा ने बताया कि गांव की ही आशा पोर्ते, अनुसुईया, हेमा, सहित अन्य महिलाओं से भी जिला पंचायत सदस्य और उसके पति ने धोखाधड़ी कर उनके नाम से लोन स्वीकृत कराकर राशि अपने पास रख ली है। महिलाओं के नाम पर लोन स्वीकृत कराकर उस राशि को अपने खाते में ट्रांसफर कराने का सिलसिला बहुत पहले से चल रहा है। लेकिन मामला कुछ महीने पहले ही उजागर हुआ। दरअसल, फाइनेंस कंपनी का कर्मचारी लोन की किश्त वसूली के लिए महिलाओं के घर पर पहुंचा। कर्मचारी ने महिलाओं को बताया कि तुम्हारे नाम से लोन स्वीकृत हुआ है।
इसकी जानकारी लगते ही महिलाओं के हाथ-पैर फूल गए। महिलाओं ने पुलिस को बताया कि उनके नाम पर लिए गए लोन की जानकारी ही नहीं है। हालांकि जानकारी मिली है कि जिला पंचायत सदस्य लोन की राशि खुद रखने के बाद किश्त भी खुद ही जमा करती थी। लेकिन सितंबर, अक्टूबर महीने से किश्त जमा करना बंद कर दिया। तब कर्मचारी महिलाओं के घर तक पहुंचे और इस तरह मामले का खुलासा हुआ।
अब सवाल ये उठता है कि जब महिलाओं के नाम पर लोन स्वीकृत हुआ है तो किस्त की राशि जिला पंचायत सदस्य और उसके पति से क्यों ली जा रही थी। इस पूरे प्रकरण में फाइनेंस कंपनी कर्मचारियों और किओस्क संचालक की भूमिका जांच के घेरे में है।