रायपुर/बिलासपुर/दुर्ग: छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास जयंती के मौके पर बड़ा धार्मिक जलसा आयोजित किया गया है। सतनामी समाज द्वारा बड़े पैमाने पर गांव-कस्बों में सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गए है। इसमें हर धर्म और वर्गों के लोग हिस्सा ले रहे है। कई कार्यक्रमों में विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं और मंत्रियों का तांता लगा हुआ है। इस मौके पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जुट रही भीड़ से गुरु घासीदास जयंती समारोह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
सबसे ज्यादा भीड़ गिरौदपुरी में नजर आ रही है। यहाँ विश्व का सबसे बड़ा गुरु घासीदास का जैतखंभ की रंगत, देखते ही बन रही है। इसका निर्माण तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अगुवाई में किया गया था। आज यह जैतखंभ प्रदेश की एक प्रमुख धरोहर के रूप में आस्था का केंद्र बन गया है।
विश्व का सबसे ऊंचा जैतखाम कुतुब मीनार से भी ऊंचा है। इसकी ऊंचाई 77 मीटर है, जबकि कुतुबमीनार की ऊंचाई 73 मीटर है। यह गुरु घासीदास के जन्मस्थली गिरौदपुरी भाटापारा के पास बलौदा बाजार में स्थित है। इतिहासकार प्रकाश यदु के मुताबिक यह सतनाम पंथ के मान्यताओं से जुड़ा है, सामान्यतः सतनामी लोग पंथी नृत्य करते समय जैतखाम का निर्माण करते है। इसलिए सतनामी पंथ में इसका विशेष महत्व होता है।
छत्तीसगढ़ में आज, 18 दिसंबर का दिन साल दर साल यादगार बन रहा है। इस दिन प्रदेश के गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक रौनक नजर आती है। एक समुदाय बाबा गुरु घासीदास की जयंती आस्था और विश्वास के साथ जोर-शोर से मनाता है। इस मौके पर बलौदाबाजार के करीब स्थित गिरौदपुरी धाम में गुरु घासीदास के भक्तों की सालाना भीड़ जुटती है। यहाँ प्रतिवर्ष मेले का आयोजन भी किया जाता है। गुरु घासीदास सतनाम पंथ के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने समाज में समानता, सच्चाई, और अहिंसा का संदेश दिया था।
उन्होंने सतनाम धर्म की स्थापना कर लोगों को सत्य और सदाचार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया था। उनके बताये मार्ग पर कई धर्मों और सम्प्रदायों के लोगों ने अमल भी किया। गुरु घासीदास की प्रेरणा से सतनाम पंथ की स्थापना की गई। उनका अनुसरण करने वाले कालांतर में सतनामी, कहलाए। गुरु घासीदास छुआ-छूत और अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। जानकारों के मुताबिक उनके समर्थकों ने मांस-मदिरा और अन्य व्सयनो को त्याग कर एक संयमित दिनचर्या का संदेशा दिया था।
इतिहास के जानकारों के मुताबिक गुरु घासीदास का जन्म 1756 में बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में हुआ था। उन्होंने 1756 – 1850 तक राज्य के गिरौदपुरी गांव में शिक्षा-दीक्षा और एक विशेष जीवन पद्धति के साथ लोगों को जीवन जीने की कला सिखाई। वे अपने पिता महंगू दास जी एवं माता अमरौतिन के सानिध्य में अक्सर गुरु भक्ति में लीन रहते। हालांकि गुरु घासीदास के जन्म को लेकर कई इतिहासकारों और सामाजिक विश्लेषको की अलग-अलग राय भी है।
ज्यादातर इतिहासकार तस्दीक करते है कि गुरु घासीदास 19वीं सदी की शुरुआत में छत्तीसगढ़ के एक महान विद्वान गुरु भक्त थे। उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर घने जंगलों में तपस्या कर ग्रामीणों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा की। उन्होंने जंगल में रहने वाली एक बड़ी आबादी को अच्छे जीवन और उच्च विचारों से परिपूर्ण बनाया। इन इलाकों में सतनाम अर्थात सत्य के नाम का प्रचार-प्रसार कर सतनामी समाज की एक विशिष्ठ पहचान कायम की थी।
इतिहासकार और सामाजिक मामलों के जानकार प्रकाश यदु बताते है कि बाबा घासीदास ने रायगढ़ के सारंगढ़-बिलासपुर के जंगलों में वर्षों तपस्या की थी। इस दौर में घने जंगलों में एक वृक्ष के नीचे तपस्या करते समय उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को ही नहीं बल्कि इस दौर में ब्राह्मणों के प्रभुत्व को भी नकारते हुए गुरु घासीदास ने नए समुदाय की नीव रखी।
इसमें विभिन्न वर्गों में बांटने वाली जातिगत व्यवस्था का विरोध कर सतनाम पंथ की स्थापना की गई। यदु के अनुसार समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और महत्व दिए जाने को लेकर गुरु जी ने काफी जोर दिया था। घासीदास ने पशु-पक्षियों से भी प्रेम करने की शिक्षा दी। वे पशुओं पर क्रूर रवैये के खिलाफ थे. सतनाम पंथ के कई भक्त अपने गुरु के आदेशानुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल आज भी नहीं करते।