पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के सितारे बुलंदियों पर, दोनों हाथ और सिर भ्रष्टाचार में सने होने के बावजूद तलब तक नहीं किये गए, सुर्ख़ियों में बीजेपी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस नीति’….    

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रायपुर: छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार पर कांग्रेस का पलटवार जोरो पर है। सड़कों से लेकर विधानसभा तक बीजेपी को घेरने के लिए कांग्रेस की रणनीति कारगर साबित हो रही है। लोगों की आम धारणा बनते जा रही है कि प्रदेश में सिर्फ सत्ता परिवर्तन हुआ है, व्यवस्था नहीं बदली। आमतौर पर बीजेपी शासित राज्यों में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति कारगर साबित हुई है।

इससे भ्रष्टाचारियों को सबक मिलने से लोगों में विश्वास पैदा हुआ है कि लोक कल्याण के नाम पर जनता को लूटने वाले राजनेताओं और नौकरशाहों की खैर नहीं। लेकिन छत्तीसगढ़ में बीजेपी के सत्ता में आने के बावजूद भ्रष्टाचार में लिप्त आरोपियों की पौ बारह है। इसका जीता-जागता उदाहरण आम जनता की जुबान पर भी है।

उनका मानना है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के सितारें बुलंदियों पर है। उन्हें तलब करना तो दूर, केंद्र और राज्य सरकार की जांच एजेंसियां नोटिस तक जारी करने में हीला-हवाली बरत रही है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की राजनीति चमकाने के मामले में नौकरशाही के नजरिये में कोई बदलाव नहीं नजर आ रहा है। नतीजतन बीजेपी और कांग्रेस के बीच सड़कों की लड़ाई उफान पर है।

दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में 5 साल तक सिर्फ भ्रष्टाचार के नए रिकॉर्ड टूटे और कायम भी हुए। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री का बाल भी बांका नहीं हुआ। बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के 11 माह बीत चुके है, लेकिन केंद्र और राज्य की जांच एजेंसियों के बंधे हुए हाथों को खोलने की उच्च स्तरीय इजाजत अब तक प्राप्त नहीं हुई है।

सूत्र तस्दीक कर रहे है कि बीजेपी आलाकमान की ओर से हरी झंडी अब तक नहीं मिलने के चलते पूर्व मुख्यमंत्री को हिरासत में नहीं लिया गया है। यहाँ तक कि उनके खिलाफ एक प्रकरण में नामजद FIR दर्ज होने और अन्य दर्जनों मामलों में मुख्य संदेही के रूप में पर्याप्त सबूत होने के बावजूद ना तो कोई नई FIR दर्ज करने की अनुमति मिली है, और ना ही पूर्व मुख्यमंत्री को तलब किये जाने को लेकर जिम्मेदार अधिकारीयों ने कोई रूचि दिखाई है। ऐसे हालात पैदा करने को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के इरादे बुलंदियों पर बताये जाते है।

छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल गिरोह के एक दर्जन से ज्यादा घोटालेबाज अधिकारी और कारोबारी इन दिनों जेल की हवा खा रहे है। ये सभी दागी तत्कालीन मुख्यमंत्री के बैनर तले साल दर साल दर्जनों घोटालों को अंजाम दे रहे थे। सरकारी तिजोरी पर सेंधमार कर काली कमाई के कारोबारियों ने नैतिकता की तमाम हदे तक पार कर डाली थी। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री का नाम अव्वल नंबर पर बताया जाता है।

यह भी बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री की निलंबित उपसचिव सौम्या चौरसिया, सुपर सीएम अनिल टुटेजा, कारोबारी ढेबर, कोयला माफिया सूर्यकांत तिवारी, तत्कालीन आबकारी सचिव अरुण पति त्रिपाठी, आईएएस रानू साहू और समीर बिश्नोई, PSC घोटाले के मुख्य आरोपी रिटायर आईएएस टामन सिंह सोनवानी समेत महादेव ऐप घोटाले के दर्जनों मुख्य आरोपियों ने पूर्व मुख्यमंत्री के सीधे निर्देश पर भ्रष्टाचार और घोटालों को अंजाम दिया था।

ये सभी आरोपी जेल की हवा खा रहे है। लेकिन मुख्य सरगना बघेल, अभी भी आजाद घूम रहा है। छत्तीसगढ़ में भारी भरकम भ्रष्टाचार के तार सीधेतौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री से जुड़े पाए जाने के बावजूद उन पर ‘सरकार’ की मेहरबानी सुर्ख़ियों में है। प्रदेश में 2200 करोड़ के शराब घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश का मुद्दा ठप कर दिया गया है। जबकि विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी के दर्जनों कद्दावर नेताओं ने कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचारों की सीबीआई जांच कराने की हामी भरी थी।

इस घोटाले में कई प्रभावशील अधिकारियों की लिप्तता सामने आई थी। भ्रष्टाचार को सार्वजनिक रूप से अंजाम देने के लिए सरकारी मशीनरी जाम कर दी गई थी। पूर्व मुख्यमंत्री के संज्ञान में घोटाले का पूरा ब्यौरा पेश करने के बाद तमाम आरोपी रोजाना करोड़ों की कमाई कर रहे थे। कई गैर-क़ानूनी गतिविधियों के साथ-साथ सरकारी कायदे-कानूनों और दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही थी। लेकिन खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री ‘ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट’ के सर्वे-सर्वा के रूप में सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ कर रहे थे।

इससे जुड़े दर्जनों सबूतों को रफा-दफा करने का मामला भी सामने आया है। बताते है कि बीजेपी सरकार की मुख्य धारा में शामिल नौकरशाही का एक धड़ा दिख तो मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ रहा है, लेकिन खड़ा है, पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के साथ। आये दिन साय सरकार के खिलाफ मुख्यमंत्री बघेल को मुद्दे पर मुद्दे सौपें जा रहे हैं. प्रदेश में बीजेपी सरकार के खिलाफ एक से बढ़ कर एक मुद्दे हाथ लगने से बीजेपी सरकार के सामने कृत्रिम तौर पर मुश्किलें पैदा की जा रही है।

छत्तीसगढ़ में 6 हज़ार करोड़ के महादेव ऐप घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल नामजद आरोपी बताये जाते है। लेकिन उनके अपराधों में कंधे से कंधा मिलाकर सट्टा खिलाने वाले आईपीएस अधिकारियों और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है। यही हाल कोयला लेवी स्कैम का है, ईडी ने 4 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ गंभीर टिपण्णी करते हुए, उन्हें भी अरोपी बनाया है। अफ़सरों के नाम में उनकी काली करतूतों के साथ चार्जशीट में शामिल कर अदालत के संज्ञान में लाया है. इसके बावज़ूद ऐसे घोटालों के अरोपी अफ़सरों को निलंबित ना करते हुए प्रभावशील पदों पर तैनात कर दिया गया है। चर्चित मामलों में सरकार के रुख से बीजेपी की फजीहत भी हो रही है। लोगों का मानना है कि भ्रष्ट अफसरों को मिल रहे राजनैतिक संरक्षण से बीजेपी सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का दम निकल रहा है।

ऐसे दागी अफसरों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने के बजाय बीजेपी सरकार में भी उनको प्राप्त हो रहा संरक्षण, चर्चा में है। 6 सौ करोड़ के कोल खनन परिवहन घोटाले की सीबीआई जांच का मामला भी अधर में लटका बताया जाता है। कहा जा रहा है कि तमाम घोटालों में बघेल की संलिप्तता पाई गई है। लेकिन उन्हें प्राप्त उच्च स्तरीय राजनैतिक वरदहस्त, जांच एजेंसियों के ईमानदार अफसरों को मुँह चिढ़ा रहा है। बहरहाल, छत्तीसगढ़ पूर्व मुख्यमंत्री बघेल, जितने कांग्रेस के कार्य नहीं आये, उससे कही अधिक बीजेपी के लिए फलदायक साबित हो रहे है। पूर्व मुख्यमंत्री को मिल रहा अनुचित राजनैतिक संरक्षण सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। फ़िलहाल उम्मीद की जा रही है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सक्रियता से घोटालेबाजों के अरमानों पर पानी फिरना तय है।