कंदमूल-फल बाजार में आया, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने इसी फल को खा कर मारा था रावण को, देखे वीडियो…..  

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जबलपुर: माँ नर्मदा के तट पर साधू-संतों का जमावड़ा लगा हुआ है। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य पूरे शबाब पर है, एक ओर कड़ाके की ठंड है, तो दूसरी ओर धुंआधार जलप्रपात से कल-कल स्वर के साथ गिर रहा पानी, इसकी बौछारों से प्रकृति की अनुपम छठा देखते ही बन रही है। नर्मदा के तट पर छोटे-छोटे रंग-विरंगे हाट-बाजार भी लगे हुए है। यहाँ ग्राहकों का तांता लगा हुआ है। सड़कों पर संगमरमर से बनी कलाकृतियां, मूर्तियां और देशी साग-सब्जियां बिखरी हुई है। सैलानी, इसकी खूब खरीदी कर रहे है। नर्मदा के तट पर लगा हाट बाजार कंदमूल-फल के लिए सुर्ख़ियों में है। इस बाजार में कंदमूल-फल भी बिकने आया है, इसका स्वाद लोगों को खूब भा रहा है। कई लोगों ने जीवन में पहली बार ना केवल कंदमूल-फल देखा, बल्कि इसका स्वाद भी चखा।

स्वाद में यह फल काफी मीठा होता है, गन्ने और नारियल की तर्ज पर इसकी मिठास मुँह का स्वाद बदल देती है। खाने में इसका स्वाद कच्चे नारियल की तरह भी महसूस होता है। इस बाजार में कंदमूल-फल की बिक्री कर रहे शख्स राजकुमार यादव बताते है कि यह फल पकते-पकते लगभग 8 से 10 वर्षों में खाने लायक हो जाता है। यह विश्व में सबसे अधिक अवधि में परिपक्व वाला फल है। जमीन के भीतर इसका आकार 5 से 7 फ़ीट तक लंबा होता है। जबकि गोलाई एक से डेढ़ फ़ीट तक होती है। कंदमूल-फल की लम्बाई-चौड़ाई पहली नजर में केले के परिपक्व तने की तर्ज में नजर आती है। यह फल हरे रंग का होता है, इसका रसीला स्वाद मुँह का जायका बदल देता है।

राजकुमार बताते है कि प्राकृतिक गुणों से भरपूर कंदमूल-फल स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि ऊर्जावान भी है, इसे खाने के बाद तन-मन में ऊर्जा का भरपूर संचार होता है। मन में रचनात्मक विचार आते है। इसका औषधीय गुण खून की सफाई के साथ-साथ शरीर को निरोगी काया बनाने में मदद करता है। उनके मुताबिक कंदमूल-फल घने जंगलों में पाया जाता है।राजकुमार यादव के मुताबिक वे पीढ़ियों से कंदमूल-फल से लोगों को रूबरू करा रहे है,

जंगलों से लाकर इसे लोगों तक पहुंचाते है। उनकी कई पीढ़ियां गुजर गई, लेकिन इस फल से उनके परिवार का नाता नहीं टूटा है। वे भी अपने माता-पिता की तरह इस फल की खोजबीन के लिए जंगलों की खाक छानते रहते है।

उन्होंने बताया कि कंदमूल-फल के गोलाकार छोटे-छोटे टुकड़े कई भागों में काट कर सलाद की तरह इसका आहार किया जाता है। इसे खाने के बाद घंटों भूख-प्यास नहीं लगती। इसका रस शरीर में ऊर्जा का अद्भुत संचार करता है।

उन्होंने बताया कि इस प्राचीन आध्यात्मिक फल की उपलब्धता आम जंगलों में नहीं होती, वातावरण के अनुरूप जंगलों के कुछ खास हिस्सों में ही इसकी पैदावार होती है। उन्होंने बताया कि हमारे देश में नासिक और चित्रकूट के जंगलों में कंदमूल-फल पाया जाता है। यहाँ कुछ चुनिंदा आदिवासी परिवारों की रोजी-रोटी का साधन आज भी यही कंदमूल-फल है। घने जंगलों में बसे कई आदिवासी परिवार इस फल को श्रद्धा के साथ ग्रहण करते है।