Supreme Court ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने या सेवा की विस्तारित अवधि के बाद सेवानिवृत्त हो जाता है तो उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती। शीर्ष कोर्ट ने इसके साथ झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ भारतीय स्टेट बैंक की याचिका को खारिज कर दिया जिसमें नवीन कुमार सिन्हा के खिलाफ जारी बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया गया था।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि विभागीय कार्यवाही केवल कारण बताओ नोटिस जारी करने पर शुरू नहीं होती बल्कि तभी शुरू होती है जब आरोपपत्र जारी किया जाता है, क्योंकि सक्षम प्राधिकारी की ओर से कर्मचारी के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर विचार करने की तिथि यही होती है। उक्त मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि अनुशासनात्मक कार्रवाई उनकी सेवानिवृत्ति के बाद शुरू की गई, जिसमें सेवा की विस्तारित अवधि भी शामिल थी।
कर्मचारी नवीन कुमार पर आरोप था कि उसने बैंकिंग मानदंडों का उल्लंघन करते हुए अपने रिश्तेदारों के पक्ष में ऋण स्वीकृत किए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रतिवादी कर्मचारी वास्तव में 30 वर्ष की सेवा पूरी करने पर 26 दिसंबर, 2003 को एसबीआई से सेवानिवृत्त हो गया था, लेकिन उसकी सेवा 5 अगस्त, 2003 को 27 दिसंबर, 2003 से 1 अक्टूबर, 2010 तक बढ़ा दी गई थी। लेकिन 1 अक्तूबर 2010 के बाद सेवा में कोई और विस्तार नहीं किया गया।
हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पीठ ने कहा कि प्रतिवादी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही 18 अगस्त 2009 को शुरू नहीं की गई थी, जब कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। बल्कि 18 मार्च 2011 को शुरू की गई थी, जब अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने उसे आरोप ज्ञापन जारी किया। एसबीआई के वकील ने दावा किया कि कर्मचारी ने जांच अधिकारी, अनुशासनात्मक प्राधिकारी और अपीली प्राधिकारी के समक्ष यह दलील दी थी कि वह 30 अक्तूबर 2012 को सेवानिवृत्त होने वाला था। उसने न तो उक्त प्राधिकारी के समक्ष और न ही हाईकोर्ट के समक्ष यह दलील दी कि वह 1 अक्तूबर 2010 से एसबीआई की सेवा में नहीं था। अपील को खारिज करते हुए अदालत ने एसबीआई को कर्मचारी के सभी सेवा बकाया को छह सप्ताह के भीतर जारी करने का निर्देश दिया है।