रायपुर | राज्य सरकार हरेली के बाद अब ” पोरा-तीजा” को व्यापक स्तर पर मना रही है । मुख्यमंत्री आवास पर इसको लेकर विशेष तैयारी की गई है । कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया है । इस अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नंदी-बैल की पूजा की और प्रदेशवासियों को पोरा-तीजा’ तिहार की शुभकामनाएं दी । बता दें कि तीजा महोत्सव के लिए प्रदेश के विभिन्न स्थानों से बहनों को आमंत्रित किया गया है । इस अवसर पर बहनों द्वारा करूभात खाने की रस्म पूरी की जाएगी । साथ ही छत्तीसगढ़ के पारम्परिक खेलों का भी आयोजन रखा गया है ।
छत्तीसगढ़ का पोरा तिहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। खेती किसानी में बैल और गौवंशीय पशुओं के महत्व को देखते हुए इस दिन उनके प्रति आभार प्रकट करने की परम्परा है । छत्तीसगढ़ के गांवों में बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है । उनकी पूजा-अर्चना की जाती है । घरों में बच्चे मिट्टी से बने नंदीबैल और बर्तनों के खिलौनों से खेलते हैं । घरों में ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है । बैलों की दौड़ भी इस अवसर पर आयोजित की जाती है । छत्तीसगढ़ में तीजा (हरतालिका तीज) की विशिष्ट परम्परा है, महिलाएं तीजा मनाने ससुराल से मायके आती हैं । तीजा मनाने के लिए बेटियों को पिता या भाई ससुराल से लिवाकर लाते है । छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व की इतना अधिक महत्व है कि बुजुर्ग महिलाएं भी इस खास मौके पर मायके आने के लिए उत्सुक रहती हैं । महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए तीजा पर्व के एक दिन पहले करू भात ग्रहण कर निर्जला व्रत रखती हैं । तीजा के दिन बालू से शिव लिंग बनाया जाता है, फूलों का फुलेरा बनाकर साज-सज्जा की जाती है और महिलाएं भजन-कीर्तन कर पूरी रात जागकर शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं ।
