रायपुर: छत्तीसगढ़ में नौकरशाही की दशा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार की दिशा तय कर रही है। साय सरकार में काम-काज को लेकर बड़ी तादात में पीड़ित रोजाना बीजेपी मुख्यालय में दस्तक दे रहे है। बताते है कि ये वो कार्यकर्ता है, जिन्होंने भूपे सरकार को उखाड़ फेकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। राज्य में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बावजूद ऐसे सैकड़ों कार्यकर्ताओ को अपनी ही सरकार से शिकायत है। मामला, वैधानिक कार्यों में भी नौकरशाही के अड़ंगे से जुड़ा हुआ है। बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने उन नौकरशाहों की कार्यप्रणाली पर एतराज जताया है, जिन्होंने कांग्रेस राज में भूपे का पट्टा डालकर अपने सरकारी कर्तव्यों की बलि चढ़ा दी थी। बताते है कि नौकरशाही के ऐसे कलपुर्जों की बीजेपी राज में भी पौ-बारह है। उनकी कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं आया है, लिहाजा बीजेपी सरकार की छवि पर सवालियां निशान लग रहे है।
बताया जाता है कि कांग्रेस शासन काल में पूर्व मुख्यमंत्री भूपे के ‘बदलापुर रवैये’ के चलते पूरे प्रदेश में बीजेपी के कई नेताओं को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है। चुनाव के दौरान पार्टी के समर्थन के लिए ऐसे नेताओं ने शहरों से लेकर गांव कस्बों तक, लोगों से वोट मांगे थे। अब राज्य में बीजेपी की सरकार काबिज होने के बाद सैकड़ों स्थानीय कार्यकर्ता कभी खुद से सम्बंधित कार्यों के लिए तो कभी अपने समर्थकों की समस्याओं को दूर करने के लिए बीजेपी मुख्यालय में अपनी आमद-दरज कर रहे है। इस फेहरिस्त में ऐसे भी सरकारी कर्मचारी और अधिकारी प्रभावित बताये जाते है, जिन्हे तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ा था। ऐसे कार्यकर्ताओं को राहत प्रदान करने के लिए संगठन और उसके पदाधिकारी सक्रिय बताये जाते है। लेकिन उनकी समस्याओं को सुलझाने के बजाय उलझाने का नौकरशाही का रवैया राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
छत्तीसगढ़ बीजेपी मुख्यालय में उन पीड़ितों की सुध ली जा रही है, जो कांग्रेस राज में अपने वैधानिक कार्यों को भी सुलझा नहीं पाए थे। सरकारी मशीनरी और कांग्रेसी राजनेताओं की जुगलबंदी से कई सरकारी विभागों में विधि संगत कार्यों में भी कतिपय अधिकारियों द्वारा अनावश्यक रोड़े अटकाए जा रहे है। जबकि सगंठन का खेमा कम से कम वैधानिक कार्यों को समय पर क्रियांवित करने पर जोर दे रहा है। इस बीच नौकरशाही के रुख को लेकर संगठन और उसके कई पदाधिकारी पसोपेश में है।
बताया जा रहा है कि कतिपय नौकरशाहों का खेमा जहाँ बीजेपी के अरमानों पर पानी फेर रहा है, वही कांग्रेस और उसके पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की आकांक्षाओं में खरा उतरने के लिए मौजूदा दौर में भी नौकरशाही की कवायत जोरो पर है। राजनीति के जानकारों के मुताबिक विवादास्पद अधिकारियों को बीजेपी शासन काल में भी मिल रही तरजीह से आम जनता के बीच मुख्यमंत्री साय सरकार की छवि दांव पर लग रही है।
ऐसे ही दर्जनों मामलों में संगठन के कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को अपनी ही सरकार से दो-चार होना पड़ रहा है। राजनीति के जानकारों के मुताबिक कई जरुरी और वैधानिक मामलों को लेकर संगठन और सरकार के बीच सेतु का कार्य कर रहे पदाधिकारियों के सामने इन दिनों सबसे बड़ी चुनौती नौकरशाही के उन कलपुर्जो को लेकर है, जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे के संकटमोचक और तिजोरी भरने वाले भार साधक अधिकारी बने हुए थे।
ऐसे नौकरशाहों की बीजेपी सरकार में भी मनमानी सुर्ख़ियों में है। पार्टी नेताओं के मुताबिक ऐसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली से आम जनता में साय सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिशे हो रही है। राज्य में नौकरशाही के रुख से दो-चार हो रहे बीजेपी संगठन के कई पदाधिकारी इन दिनों विवादास्पद अफसरों की शिकायतों पर कार्यवाही के लिए अपनी ही सरकार से जूझते नजर आ रहे है। उनके द्वारा मुख्यमंत्री से लेकर पीएमओ तक ऐसे मामलों को संज्ञान में लाने की कवायत जोरो पर है, जिसमे वैधनिक कार्यवाही करने के बजाय हीला-हवाली बरती जा रही है।
रोजाना ऐसे दर्जनों मामले सामने आ रहे है, जिसमे अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर अवरोध पैदा किया जा रहा है। ताजा मामला पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल और पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर के खास सिपहसालार आईपीएस-आईएएस दंपति की मनमानीपूर्ण कार्यप्रणाली से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के रंग में रंगे 2005 बैच के आईपीएस शेख आरिफ के बाद बीजेपी संगठन ने आईएएस पत्नी शम्मी आबिदी की शिकायत पीएमओं से की है। एक शिकायत में वरिष्ठ नेता विजय शंकर मिश्रा ने महिला एवं बाल विकास सचिव पर गंभीर टिप्पणी की है। शम्मी आबिदी कांग्रेस राज में वर्षों तक इसी विभाग की सचिव रह चुकी है।
मौजूदा बीजेपी सरकार में भी वे इस महकमे में पदस्थ रहकर बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रही है। खासतौर पर विधि संगत मामलों में भी उनका रवैया निराशजनक बताया जा रहा है। वैधानिक मामलों को लेकर भी सचिव का रुख सकारात्मक नहीं होने के चलते विभाग में गहमागहमी का दौर जारी बताया जाता है। जानकारी के मुताबिक महिला एवं बाल विकास विभाग की कार्यप्रणाली से जहाँ महकमे में कमीशनखोरी जोरो पर है, वही बीजेपी समर्थकों के काम-काज हाशिये पर बताया जाता है।
विभाग की कई योजनाए दम तोड़ रही है, जरूरतमंदों तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचने से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मन में भी नाराजगी तेजी से फ़ैल रही है। सचिव की इस कवायत को बीजेपी सरकार की छवि ख़राब करने से जोड़ कर देखा जा रहा है। एक शिकायत में आईएएस शम्मी आबिदी पर क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर काम करने का आरोप लगाया गया है। प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री , डीओपीटी और मुख्य सचिव को पत्र लिख कर मामला उनके संज्ञान में लाया गया है। मामला उपसंचालक महिला एवं बाल विकास के एक कर्मी के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से जुड़ा बताया जाता है।पत्र में टिप्पणी कर उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2007 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी शम्मी आबिदी को 17 वर्षों की प्रशासनिक सेवा के अनुभव के बाद भी नियम कानूनों का कोई ज्ञान नहीं है। उनके मुताबिक वे मनमाने ढंग से अनाधिकृत ढंग से अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर वैधानिक कार्यों में भी गतिरोध उत्पन्न कर रही है।
इस सम्बंध में सप्रमाण दस्तावेज की कॉपी संलग्न करते हुए महिला बाल विकास विभाग की सचिव पर अनावश्यक गतिरोध उत्पन्न कर भाजपा सरकार की छवि ख़राब करने का आरोप लगाया गया है। बताते है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के इस प्रकरण में पीड़ित को अनावश्यक रूप से विभाग के चक्कर कटवाए जा रहे है। प्रकरण में सचिव ने भारसाधक मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े से प्रशासकीय अनुमोदन ना लेकर अपने पद और प्रभाव का बेजा इस्तेमाल किया है। दस्तावेजों के अनुसार शम्मी आबिदी ने मौखिक निर्देश देकर आवेदन को अस्वीकृत कर विभाग में गतिरोध उत्पन्न कर रही है।
उधर एन दीपावली के पहले वित्त विभाग के उस आदेश ने कर्मचारियों के बीच खलबली मचा दी है, जिसमे निगम मंडलों के कर्मचारियों को बोनस ना देने का फरमान जारी किया गया है। वित्त विभाग का यह निर्देश चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि एक ओर अनावश्यक रूप से वित्त विभाग वन विभाग के खेलकूद के लिए भारी भरकम 7 करोड़ का प्रावधान बजट में करता है, जबकि दूसरी ओर यही वित्त विभाग, कड़ा पत्र जारी कर निगम मंडलों के कर्मचारियों को दी जा रही अतिरिक्त सुविधाओं पर आपत्ति जताता है।
बताते है कि वित्त सचिव मुकेश कुमार बंसल ने इस संदर्भ में आदेश जारी कर निगम मंडलों के हज़ारों कर्मचारियों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। वित्त सचिव ने सभी विभागों के एसीएस, पीएस और सचिवों को पत्र लिखकर कर्मचारियों को वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधायों पर रोक लगाने के निर्देश दिए है। आदेश के मुताबिक निगम/मंडल/उपकम/स्वायत्तशासी संस्थाएँ इत्यादि अपने राज्य शासन द्वारा दिये जा रहे सुविधाओं के अनुरूप ही प्रदाय करें। इस पत्र में राज्य शासन की अनुमति के बिना कोई भी अतिरिक्त सुविधाएं नहीं देने का निर्देश भी दिया गया है। यदि शासन की सहमति के बिना सुविधायें दी जा रही है, तो तत्काल प्रभाव से रोक लगाने को कहा गया है। शासन के ध्यान में यह बात लायी गई है कि कतिपय संस्थाएं स्पष्ट निर्देश के बावजूद भी उक्त अनुदेशों का पालन नहीं कर रही है।
इस आदेश में लिखी इबारत पढ़ कर उन कर्मचारियों का चेहरा लाल पीला हो रहा है, जो बोनस जैसी सुविधा प्राप्त कर अन्य शासकीय कर्मियों की तर्ज पर अपना कर्तव्य पालन कर रहे थे। कर्मचारी नेताओं के मुताबिक जब शासकीय कर्मियों को वेतन भत्ते एवं बोनस का लाभ दिया जा रहा है, तो निगम/मंडल/उपकम/स्वायत्तशासी संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारियों से परहेज क्यों ? नौकरशाही के रुख को लेकर साय सरकार सुर्ख़ियों में है। बताते है कि इसी नौकरशाही के चलते कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ बैठे-बिठाये नए-नए मुद्दे हासिल हो रहे है। जबकि पार्टी नेताओं को अपनी ही सरकार में नौकरशाही की खिलाफत के दौर से गुजरना पड़ रहा है। फ़िलहाल, राज्य में नगरीय निकाय चुनाव की बयार बह रही है, चुनावी बेला में नौकरशाही का रवैया सरकार के लिए खतरे की घंटी बजाने लगा है।