सूर्य अस्त छत्तीसगढ़ मस्त, पियक्कड़ों के लिए 300 से ज्यादा ब्रांड, 9 PM के बाद लड़खड़ाने लगता है लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी…? दांव पर प्रदेश का भविष्य…. 

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रायपुर: आपको जानकर हैरत होगी कि लगभग 3 करोड़ की आबादी वाला छत्तीसगढ़ राज्य, देश में सबसे ज्यादा शराब की खपत वाले राज्यों में पहले नंबर पर है। जबकि धार्मिक कार्यो के लिए शराब के उपयोग के लिए चर्चित त्रिपुरा दूसरे नंबर पर है। दक्षिण में आईटी इंडस्ट्री हब और लगभग आधा दर्जन महानगर होने के चलते आंध्रप्रदेश तीसरे नंबर पर है। छत्तीसगढ़ जैसे विकासशील छोटे राज्य में शराब का चलन हैरान करने वाला है। इस प्रदेश का कोई भी जिला ना तो महानगर की श्रेणी में शामिल है, और ना ही यहाँ शराब पीने -पिलाने की कोई आधार-भूत परंपरा अस्तित्व में है।

दिल्ली-मुंबई, कोलकाता और हैदराबाद जैसे महानगरों में लोगों की आवाजाही के चलते शराब की खपत का बढ़ता आंकड़ा लोगों के गले उतरता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में ना तो किसी भी देश की एम्बेसी है, ना ही राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व का कोई ऐसा पर्यटन स्थल जहाँ देश-विदेश के सैलानी अक्सर, रोजाना और निरंतर दस्तक देते हो। बावजूद इसके इस राज्य में शराब की खपत का चढ़ता आंकड़ा सोचनीय है ? शराब की खपत के मामले में इस प्रदेश का देश में अव्वल होना प्रदेश के कर्णधारों के लिए शर्म-हया का मामला है, या फिर गौरव और शान शौकत का ? इसे लेकर माथापच्ची का दौर शुरू हो गया है। इस प्रदेश में साल दर साल शराब की कीमत और खपत रिकॉर्ड-तोड़ वृद्धि दर्ज कर रही है। यही नहीं सरकार की खाली तिजोरी भरने के लिए शराब पर टैक्स पर टैक्स लादा जा रहा है।

आबकारी राजस्व सरकार का प्रमुख आय का श्रोत बन गया है। दूसरी ओर एक बड़ी आबादी नशे का दंश भी भोग रही है। बाजार में सरकारी दुकारों में शराब की बोतले आये दिन महँगी हो रही है, लेकिन इसके कद्रदानों का जेब कभी खाली नहीं होता। राज्य सरकार ने कई इलाकों में आबादी से दूर, पहुंचविहीन, वीरान इलाकों में तक शराब की दुकाने खोली। फिर भी शराब के शौंकीनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने ऐसे दुर्गम इलाकों को भी गुलजार कर दिया। ऐसे इलाके अब गांव-कस्बों में रोजाना हाथों-हाथ कमाई के अड्डों में तब्दील हो गए है। यहाँ चखने की दुकानों से लेकर खाने-पीने की माकूल व्यवस्था स्वनिर्मित नजर आती है। 

आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 35.6 फीसदी प्रतिशत लोग शराब पीते है. वहीं इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर त्रिपुरा का नाम आता है. त्रिपुरा में 34.7 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं. इसमें से 13.7 प्रतिशत लोग नियमित रूप से हर रोज शराब का सेवन करते हैं. देश का दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश भी शराब के नियमित सेवन करने वालों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर है। आंध्र प्रदेश में प्रति वर्ष क़रीब 34.5 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। अगर हम बात करें देश के उस राज्य की जहां सबसे ज्यादा शराब पी जाती है तो आपको दिल्‍ली, गोवा या पंजाब लगेगा। पर ऐसा नहीं है। आपको बता दें इन  राज्य कों छत्तीसगढ़ ने कही पीछे छोड़ दिया है। एक सर्वे के मुताबिक शराब पीने वालों की की संख्या में सबसे ज्यादा पुरुष हैं और दूसरे नंबर पर महिलाएं आती है.

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक शराब पीने वालों में सबसे ज्‍यादा संख्‍या पुरुषों की है, महिलाओं की संख्‍या काफी कम है. सर्वे के मुताबिक भारत में सिर्फ 1 फीसदी महिलाएं ही शराब का सेवन करती हैं जबकि पुरुषों की संख्या 19 फीसदी है. इन महिलाओं में भी सबसे ज्‍यादा 6 फीसदी जनजातीय समुदाय की महिलाएं ही शराब पीती हैं. वहीं पुरुषों में 47 फीसदी अन्‍य धर्मों वाले लोग हैं, 30 फीसदी ऐसे लोग हैं जो कभी स्कूल नहीं गए. भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है. भारत में क़रीब 16 करोड़ लोग अल्कोहल का सेवन करते हैं, जिसमें से 95 प्रतिशत पुरुष हैं, जिनकी उम्र 18 से 49 वर्ष के बीच है.

भारत में शराब पीने वालों की संख्या कई देशों की कुल जनसंख्या से कहीं अधिक है. इस हिसाब से हर साल भारत में शराब की ख़पत भी अरबों लीटर में होती है. भारत में कई राज्य तो ऐसे भी हैं जिनकी आय का मुख्य स्रोत ही शराब की बिक्री है.सर्वे कंपनी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2020 में दक्षिण भारत के 5 राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल मिलकर देश में बिकने वाली कुल शराब का 45 प्रतिशत सेवन तो अकेले ही कर गये थे. 

देश में सर्वाधिक महँगी शराब छत्तीसगढ़ में बेचीं जा रही है। बाहरी प्रदेशों से यहाँ दस्तक देने वाले शराब के शौंकीनों का कीमत सुनकर ही दिल दहल उठता है, फिर भी उस महँगी शराब को खरीदने में लोग पीछे नहीं रहते, भले ही पीने के बाद उसकी गुणवत्ता पर वे सवालियां निशान क्यों ना लगाते हो ? राज्य में अंधाधुंध शराब की वैध-अवैध बिक्री सवालों के घेरे में है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बोतलों में इस चेतावनी को जनहित के मद्देनजर साफ अक्षरों में दर्ज किये जाने के बावजूद शराब का वैध-अवैध कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है।

प्रदेश में कुटीर उद्योग की शक्ल ले चुके इस कारोबार ने अब राजनीति में भी अपनी गहरी पैठ बना ली है। प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक करते है कि सरकारी तिजोरी भरने के लिए आबकारी राजस्व पर पूरी तरह से निर्भरता प्रदेश के लोगों के अलावा आम जनजीवन के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। इससे ना केवल अपराधों के ग्राफ में तेजी आई है, बल्कि कई इलाकों में कानून व्यवस्था की समस्या भी पैदा हो रही है।  

पिछले वित्तीय वर्ष में छत्तीसगढ़ को शराब से लगभग 6 हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिला था। इस साल सरकार का लक्ष्य इसे दुगुना कर करीब 11 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचाने का है। अब 300 से अधिक ब्रांड बाजार में उपलब्ध होंगे, जो शराब प्रेमियों की पसंद को ध्यान में रखकर लाए जा रहे हैं। नई खेप की पहली डिलीवरी आ चुकी है, और राज्य के आबकारी विभाग ने इनकी फुटकर बिक्री के लिए नई कीमतें भी जारी कर दी हैं। ये दरें 1 अक्टूबर 2023 से 31 मार्च 2025 तक लागू रहेंगी।शराब की खरीदी के लिए ब्रेवरेज कारपोरेशन ने देश के कई राज्यों की प्रमुख शराब निर्माता कंपनियों के साथ रेट कांट्रेक्ट कर राजस्व प्राप्ति का खांका खींच लिया है। अब दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों से शराब की नई खेप प्रदेश के आखिरी इलाकों में भी पहुंचना शुरू हो गई है।

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय को जरूर, लगभग 5 लीटर परंपरागत (हाथभट्टी) शराब रखने और बनाने की छूट है। लेकिन कई सर्वे तस्दीक करते है कि ज्यादातर आदिवासी इलाकों में लोगों ने शराब से तौबा कर ली है। इन इलाकों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बाद शराब का सेवन करने वाले पुरुष-महिला सूचकांक भी राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की बहुसंख्यक आबादी के बावजूद उनके बीच शराब की खपत काफी कम है। बहरहाल प्रदेश के लोगों में शराब की बढ़ती लत चिंता का विषय बन चुकी है। यहाँ सत्ता में आने वाले दल चुनाव के दौरान लोगों के बीच शराबबंदी का पैगाम देते है। लेकिंन कुर्सी में बैठने के बाद इस कुटीर उद्योग के सफल संचालन के लिए नई-नई नीतियां लागू करते है। इस कवायत के बीच हज़ारों नौजवानों का भविष्य दांव पर लग रहा है, वे शराब के आदी बन रहे है। 

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सामने शराब-बंदी सबसे बड़ी चुनौती है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में शराब-बंदी का वादा कर खूब सुर्खियां बटोरी थी। लेकिन सत्ता हासिल होने के बाद शराब की खपत बढ़ाने में जुट गई। इसके लिए 2200 करोड़ का घोटाला तक कर डाला। प्रदेश में शराब की नदियां बहाने के बाद एक बार फिर कांग्रेस सड़कों पर है। यह देखना गौरतलब होगा कि राज्य की बीजेपी सरकार, पूर्ववर्ती कांग्रेस की तर्ज पर शराब को हत्तोत्साहित करने वाली नीतियों का पालन करती है, या फिर जनहित में जरुरी मानते हुए इसके चलन को प्रोत्साहित करती है।