छत्तीसगढ़ में ‘बाल-विवाद’ का नया चलन, कच्ची उम्र के बच्चे चाकू मारी में तेज, मोक्षधाम में युवक के पेट मे घोंपा चाकू, जांच में जुटी पुलिस….

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में बाल अपराधों में अचानक तेजी आई है। अपराध में लिप्त नाबालिक बच्चे गाहे-बगाहे बाल सुधार केंद्रों से चोरी-छिपे भाग निकलने में माहिर हो रहे है, वही शहरों से लेकर गांव तक चाकूबाजी में भी पीछे नहीं है। प्रदेश के कई जिलों में बाल अपराध के मामले चौंकाने वाले है। ताजा मामले में रायपुर में एक नाबालिक ने अपने दोस्त पर जानलेवा हमला कर दिया। हाथों में चाकू थामे इस किशोर उम्र के बच्चे ने बीच-बचाव करने वाले लोगों पर भी हमला कर घायल कर दिया। घटना रायपुर शहर से सटे गोगांव टाउन शिप की बताई जा रही है।

जानकारी के मुताबिक अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे एक युवक की पेट में बच्चे ने चाकू घोंप दिया। घायल युवक भिलाई से रिश्तेदार के घर गोगांव पहुंचा था। बताया जाता है कि स्थानीय मोक्षधाम में बच्चों और किसी युवक के बीच आपस में लड़ाई हो रही थी, एक युवक बीच-बचाव के लिए पहुँच गया, उधर गुस्साए नाबालिक ने चाकूबाजी कर मौके पर मौजूद लोगों को बुरी तरह से जख्मी कर दिया। गुढ़ियारी थाना पुलिस ने नाबालिग और एक अन्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। पीड़ित छत्रपाल ठाकुर ने गुढ़ियारी थाना में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने बताया कि वह पावर हाऊस भिलाई से गोगांव में अपने रिश्तेदार के अंतिम संस्कार में शामिल होने आया था। घटना स्थल में इस दौरान 2 किशोर आपस में लड़ रहे थे।

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पीड़ित छत्रपाल के मुताबिक लड़ाई शांत करवाने के लिए बीच-बचाव करने में जुटते के साथ ही आरोपी नाबालिक बच्चे और उसके दोस्तों ने चाकू से वार कर घायल कर दिया। घटना में अमित नामक युवक को जख्मी हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसके पेट में चाकू के कई वार लगे है। बताते है कि आरोपी बच्चे लाठी और डंडे से लैस थे। छत्तीसगढ़ में बाल अपराधों में तेजी को लेकर सामाजिक कार्यकर्त्ता चिंता जाहिर कर रहे है। उनके मुताबिक प्रदेशभर में ऐसी वारदाते आम हो चली है। इसका कारण समाज कल्याण विभाग द्वारा बाल अपराधों को रोकने के प्रयासों को लेकर कोई बेहतर प्रबंधन ना होना बताया जाता है।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रीति यादव तस्दीक करती है कि समाज कल्याण विभाग द्वारा सिर्फ कागजों में ग्रांट दी जा रही है, बाल कल्याण संबंधी ज्यादातर NGO सिर्फ फंडिंग प्राप्त कर लाभ कमा रहे है। जबकि मैदानी स्तर में बाल कल्याण से जुड़ी योजनाए ठप्प पड़ी है। ऐसे में अपराधों में तेजी आना स्वाभाविक नजर आता है, प्रीति यादव बताती है कि इस दिशा में कार्य करने वाले NGO का पुलिस से भी कोई संवाद स्थापित नहीं हो पाता। जबकि बाल अपराधों को रोकने के लिए करोड़ो रुपये सालाना NGO के खाते में दर्ज हो रहे है। उन्होंने बाल आयोग और सरकार से तमाम NGO के मैदानी कार्यों का जायजा और जांच की मांग की है।