रायपुर: छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था को लेकर कांग्रेस लगातार बीजेपी पर हमलावर है। सरकार का दावा है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था चुस्त – दूरस्थ है, जबकि मुख्य विपक्ष दल विष्णुदेव साय सरकार के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार पर कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने का खुला आरोप लगा रहा है। हाल ही में कांग्रेस ने विधानसभा का घेराव कर सत्ताधारी दल बीजेपी और उसकी सरकार पर कई तीखे हमले किये है। इस बीच प्रदेश में DGP की नियुक्ति को लेकर साय सरकार का चौंकाने वाला फैसला सामने आया है। बताया जा रहा है कि लगभग दो साल पूर्व रिटायर हो चुके निष्क्रिय DGP अशोक जुनेजा को पुनः पुलिस मुख्यालय की कमान सौंपी जा रही है।
दिलचस्प बात यह है कि पूर्ववर्ती भूपे सरकार ने जुनेजा को रिटायर होने के बावजूद DGP के पद पर बहाल रखा था। हाल ही के विधानसभा चुनाव में निष्पक्ष मतदान करवाने और प्रदेश में कानून व्यवस्था सुचारु बनाये रखने के लिए बीजेपी ने चुनाव आयोग से अशोक जुनेजा को DGP के पद से हटाने की मांग की थी। हालांकि अपना पद बचाने में जुनेजा कामयाब रहे थे। एक बार फिर उनका जोड़ – तोड़ सामने आया है। बताया जाता है कि राजनेताओं और मौजूदा पुलिस प्रमुख के बीच किसी गोपनीय समझौते के बाद जुनेजा को DGP की कमान पुनः सौंपी जा रही है।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक दो दिन बाद अर्थात 5 अगस्त 2024 को जुनेजा का कार्यकाल ख़त्म हो रहा है। विष्णुदेव साय सरकार का यह फैसला संगठन के साथ – साथ पार्टी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी मुँह चिढ़ा रहा है, जिन्होंने चुनाव के दौरान प्रदेश की ख़राब कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए चुनाव आयोग से DGP को हटाने की मांग की थी। उधर कई सीनियर आईपीएस अधिकारी भी सरकार के फैसले से हैरत में बताये जाते है। उन्होंने विष्णुदेव साय सरकार से सीनियर अधिकारियों की साख, गोपनीय चरित्रावली, विशिष्ठ सेवा, वरिष्ठता और नियमानुसार योग्य आईपीएस अधिकारी की DGP के पद पर नियुक्ति की गुहार लगाई है।
यही हाल पुलिस फोर्स का भी बताया जाता है। पुलिस सूत्र तस्दीक करते है कि साय सरकार ने साप्ताहिक छुट्टी का ऐलान कर हज़ारों पुलिस परिवारों को राहत दी थी। लेकिन मौजूदा DGP ने इसका परिपालन सुनिश्चित नहीं किया। नतीजतन आज दिनांक तक कई जिलों में इस आदेश के तहत पुलिस जवानों को साप्ताहिक छुट्टी का लाभ नहीं मिल पाया है। यह बतया जाता है कि DGP की लापरवाही के चलते कई जिलों में पुलिस अधीक्षक बेलगाम हो गए है। उन्हें जनता के सरोकारों से कोई मतलब नहीं? इसी कार्यप्रणाली के चलते प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति सवालों के घेरे में है। पीड़ित पुलिसकर्मी भी तस्दीक करते है कि उनकी समस्याओं का निराकरण करने के लिए आयोजित होने वाले ‘पुलिस दरबार’ भी ठप्प पड़ गए है। कई पुलिसकर्मियों ने रिटायर अधिकारी को DGP के पद पर पुनर्नियुक्ति देने के मामले को गैर -क़ानूनी करार दिया। उनके मुताबिक इसका बुरा असर पुलिस के मनोबल पर पड़ेगा।
बताते है कि मौजूदा DGP अशोक जुनेजा कई विवादों से घिरे है। DGP की निष्क्रिय कार्यप्रणाली के चलते नक्सल मोर्चे पर बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं को जानमाल का नुकसान उठाना पड़ा था। बस्तर में पार्टी के कई महत्वपूर्ण नेता नक्सली हिंसा का शिकार हुए थे। यही नहीं तत्कालीन भूपे सरकार को गैर -क़ानूनी संरक्षण प्रदान करने के मामले में DGP जुनेजा सुर्ख़ियों में रहे है। उनके कार्यकाल में ED की छापेमारी के दौरान रायपुर के जयस्तंभ चौक से छापेमार दल में शामिल अधिकारियों के वाहनों का चालान कर कब्जे में ले लिया गया था। यही नहीं कई घोटालों के आरोपी सौंम्या चौरसिया और अनिल टुटेजा के गैर क़ानूनी कृत्यों पर पर्दा डालने में DGP की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है।
पुलिस मुख्यालय में DGP जुनेजा की निष्क्रिय कार्यप्रणाली का खामियाजा सिर्फ नक्सल मोर्चों पर ही नहीं बल्कि समस्त योजनाओं पर पड़ा है। 13 करोड़ की घटिया बूलेट प्रूफ जैकेट की खरीदी मामले में भी DGP की भूमिका संदिग्ध बताई जाती है। इसके बावजूद योग्य अफसरों की लम्बी फेहरिस्त होने के बाद भी जुनेजा को डीजीपी बनाने का प्रस्ताव चर्चा में है। सूत्रों के मुताबिक किसी गोपनीय समझौते के चलते प्रदेश की जनता पर विवादित और गैर जिम्मेदार DGP थोपा जा रहा है। इससे आने वाले छह माह तक प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर सवालियां निशान लगते रहेंगे। बताया जाता है कि आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता सूची में कई बेदाग और ऐसे सक्रिय अधिकारी शामिल है, जो इस पद के सर्वथा योग्य बताये जाते है।
इनमे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अरुण देव गौतम (1992 बैच), पवन देव (1992 बैच) और हिमांशु गुप्ता (1994 बैच) को राज्य सरकार ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) से पदोन्नत करते हुए हाल ही में पुलिस महानिदेशक (डीजी) बनाने का आदेश जारी किया था। छत्तीसगढ़ में डीजी के दो पद हैं, वहीं राज्य सरकार को दो और पद सृजित करने का अधिकार है, ऐसे में सेवानिवृत अधिकारी को लगातार उपकृत करना प्रदेश की कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने के रूप में देखा जा रहा है। प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक करते है कि रिटायर अधिकारी को पुलिस प्रमुख की कुर्सी सौंपने से पुलिस कर्मियों के मनोबल पर भी बुरा असर पड़ता है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से अभी आधिकारिक रूप से जाहिर नहीं किया गया कि जुनेजा रिटायर होंगे या प्रदेश को नया DGP मिलेगा।