49 Years of Emergency: आज इमरजेंसी के 49 साल पूरे, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी बनाम पीएम मोदी, NDA के 10 सालों में चुनी हुई सरकार की बर्खास्तगी और राष्ट्रपति शासन से परहेज, लेकिन कांग्रेस शासन काल में विपक्ष की सरकार गिराने के दर्जनों मामले, देश पर आपातकाल से लेकर मोदी युग के मंसूबों की पूरी कहानी…

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सुनील नामदेव 
दिल्ली: 49 Years of Emergency:
आज इमरजेंसी की 49 सालगिरह भले ही कांग्रेसी नेताओं को रास ना आये, लेकिन कांग्रेस शासन काल में दर्जनों ऐसे मामले है, जब चुनी हुई सरकार को किसी ना किसी बहाने सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। चाहे राम जन्म भूमि विवाद में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार हो या फिर देश के किसी भी राज्य में कांग्रेस को राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में चुनौती देती विपक्ष की किसी भी दल की सरकार, ऐसी सरकार में शामिल नेताओं को ‘कांग्रेस राज’ में जेल में ठूंस दिया गया था। चुनाव में दम ख़म दिखाकर जनता द्वारा चुनी गई, सरकारों पर इमरजेंसी थोपने का इतिहास आज के दिन पढ़ा – लिखा और देखा – सुना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली BJP – NDA सरकार के अब तक के 10 वर्षों के कार्यकाल में किसी भी राज्य में चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल करने का अभी तक कोई मामला सामने नहीं आया है।

वो भी तब जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की TMC सरकार के खिलाफ तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़  ने सीएम ममता सरकार की बर्खास्तगी के लिए पीएमओ को अपनी रिपोर्ट भेजी थी। दिलचस्प बात यह है कि बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने पर तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने संवैधानिक व्यवस्था के तहत ठीक वैसे ही रिपोर्ट केंद्र को भेजी थी, जिस तर्ज पर इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ‘राजभवन’ से आने वाली रिपोर्ट के आधार पर आपातकाल थोप दिया जाता था। 25 जून आज ही के दिन इमरजेंसी के दंश याद किये जाते है, ये भुलाये नहीं भूलते। दिल्ली में आज कई पुराने नेताओं ने उन बीते हुए दिनों को याद किया। वर्ष 1975 में, 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी।

आज इस आपातकाल को 49 साल पूरे हो गए। देश के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल के 49 साल पूरे होने पर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया है। इस दौर में आपातकाल का मुख्य कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले पर आधारित था। इस फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान में कदाचार का दोषी करार दिया गया था। दरअसल, 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस बड़े अंतर से जीती थीं। मुख्य विपक्षी दल के नेता और गांधी परिवार के प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने इंदिरा की जीत पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया था। सबूतों के आधार पर मामले की सुनवाई हुई थी। इसमें अदालत में अपने फैसले में इंदिरा गांधी के चुनाव को ही निरस्त कर दिया था। उधर अदालत का फरमान जारी होते ही, इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। दिल्ली में लोकसभा में राजनीतिक सरगर्मियों के बीच भाजपा ने आपातकाल का मुद्दा तब उठाया, जब विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार पर संविधान के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया था। पीएम मोदी के अलावा भाजपा के सभी शीर्ष नेताओं ने आपातकाल की आलोचना की है। आखिरकार आपातकाल को भाजपा ने भारतीय लोकतंत्र में एक काला क्यों अध्याय बताया? इस पर न्यूज़ टुडे नेटवर्क ने कई नेताओं से आपातकाल से जुड़ी कुछ अहम बातों और मुद्दों पर चर्चा की। 

आज इमरजेंसी की यादों के बीच विपक्षी दल भी दिल्ली में डटे है। लोकसभा के इर्द – गिर्द मंदिरों से लेकर रेस्टोरेंट तक सांसदों का ताँता लगा है। बीजेपी गलियारे में लोकतंत्र की हत्या करने और उसे बार-बार नुकसान पहुंचाने के आरोप कांग्रेस पर लग रहे है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आपातकाल का जिक्र करते हुए कांग्रेस को घेरा है। उन्होंने कहा कि आज भारतीय लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाले संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए उठाई गई आवाजों को दबाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। भाजपा ने आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र में एक काला अध्याय बताया है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन ने आपातकाल से जुड़े कई रहस्यों का खुलासा किया है। उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी।

इस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लगाने पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की, बल्कि वह इसके लिए तुरंत तैयार हो गए थे। धवन ने बताया कि इंदिरा को उनके प्रधान सचिव पीएन धर ने एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा था कि आईबी के अनुसार चुनाव होने पर वह 340 सीटें जीतेंगी। इसके बाद इंदिरा ने 1977 के चुनाव करवाए थे। लेकिन उस चुनाव में इंदिरा को बड़ी हार मिली। लेकिन इंदिरा इस हार से दुखी नहीं थीं। हार की खबर मिलने के बाद इंदिरा ने कहा था ‘शुक्र है, मेरे पास अब अपने लिए समय होगा।’ उनके मुताबिक आपातकाल के दौरान महिलाओं और पुरुषों की जबरन नसबंदी कराई गई थी। यही नहीं दिल्ली के तुर्कमान गेट पर निवासरत आबादी पर बुलडोजर तक चलवाया गया। हालांकि ऐसे अत्याचारों से इंदिरा अनजान थीं।

उनके मुताबिक पीएम होने के बावजूद इंदिरा गांधी को यह भी नहीं पता था कि उनके पुत्र संजय गांधी अपने मारुति प्रोजेक्ट के लिए इसी दौर में जमीन अधिग्रहण कर रहे थे। धवन के मुताबिक मारुती प्रोजेक्ट में उन्होंने ही संजय की मदद की थी, क्योंकि इसमें कुछ भी गलत नहीं था। मीडिया से चर्चा करते हुए धवन तस्दीक करते है कि सोनिया और राजीव गांधी को इमरजेंसी थोपने को लेकर कोई पछतावा नहीं था। यहाँ तक कि मेनका गांधी ने भी हर कदम पर पति संजय गांधी का साथ दिया था। उन्होंने बताया कि आपातकाल इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए लागू नहीं किया गया था। बल्कि इंदिरा खुद इस्तीफा देने के लिए तैयार थीं। लेकिन मंत्रिमंडल सहयोगियों ने उन्हें इस्तीफा न देने की सलाह दी थी।

इस दौर में आपातकाल लगने से पूरा जनजीवन प्रभावित हो गया था। देशभर में चुनाव स्थगित हो गए थे। आपातकाल की घोषणा के साथ हर नागरिक के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। धरना, जुलूस, विरोध प्रदर्शन तक के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार भी छीन लिया गया था। उनके मुताबिक इमरजेंसी लगते ही 5 जून की रात से ही देशभर में विपक्ष के नेताओं और इंदिरा के खिलाफत करने वालों की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थीं। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण जैसे बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया था। यही हाल तमाम राज्यों का था। यहाँ भी कांग्रेस के विरोधियों को बड़ी संख्या में जेल में डाला गया था। हाल यह था कि देश – प्रदेश की जेलों में जगह ही नहीं बची थी। इसी कड़ी में प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी।

इंदिरा ने हर अखबार के दफ्तरों में सेंसर अधिकारी रख दिये गये थे। उस सेंसर अधिकारी की अनुमति के बिना कोई पत्रकार खबर प्रकाशित नहीं कर सकता था। यदि किसी ने सरकार के खिलाफ खबर छापी तो उसकी गिरफ्तारी तत्काल होती थी। आपातकाल के दौरान प्रशासन और पुलिस ने आम जनता को काफी प्रताड़ित किया था। दिल्ली में आज के दिन पीएम मोदी और NDA सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल का मंथन करने वाले बुजुर्ग नेताओं की महफिले चर्चा में है। इमरजेंसी के दौर को याद करते हुए ऐसे नेता मोदी की तारीफों के पुल बांध रहे है। उनके मुताबिक विपक्ष के कई नेता स्वाभिक राजनीति के चलते भले ही उनकी बुराई करे, लेकिन चुनी हुई सरकार को गिराने के मामले में दिलचस्पी ना लेना, बड़ा फैसला करार देते है।

इस मामले में वे राज्यपाल धनखड़ और उनकी रिपोर्ट का हवाला देने में पीछे नहीं रहे है। वे मानते है कि पश्चिम बंगाल में सरकार बर्खास्तगी के समुचित कारण होने के बावजूद राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया। चाय पर चल रही चर्चा में साफ़ हुआ कि ममता राज्यपाल पर सीधे केंद्र के आदेश थोपने का आरोप लगाती रही। जबकि राज्यपाल कहते रहे कि वह जो भी कार्य करते हैं वह संविधान के मुताबिक होता है. चाहे बात विधानसभा का सत्र बुलाने की हो या किसी नए विधायक को शपथ दिलाने की, बंगाल में तकरीबन हर मामले पर सीएम ममता और राजभवन के बीच सियासी विवाद देखा गया। यहाँ तक कि विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में हुई हिंसा को लेकर भी सीएम और राज्यपाल में टकराव हुआ था।

राज्यपाल जगदीप धनखड़ को राज्य के निजी विश्वविद्यालयों में ‘अतिथि’ या ‘विजिटर’ के तौर पर प्राध्यापकों के नियुक्ति मामले में कानून में संशोधन को लेकर भी ठोस कदम उठाने पड़े थे। एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में जगदीप धनखड़ ने ममता की काफी आलोचना की थी और कहा था कि राज्य में लोकतांत्रिक हालात सही नहीं हैं. पश्चिम बंगाल ज्वालामुखी पर बैठा है और काफी क्रिटिकल स्टेज में है. यहां कोई डेमोक्रेसी नहीं है. बंगाल की जो हालत है- अगर सांस लेना है, नौकरी करना है, राजनीति करनी, अच्छी जिंदगी बितानी है तो एक ही रास्ता है, सत्ताधारी पार्टी के साथ आ जाओ. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कुछ दिनों पहले राज्य के गवर्नर जगदीप धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया था.

सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि वो बंगाल के गवर्नर के ट्वीट से परेशान हो गई थीं, जिसके बाद उन्होंने जगदीप धनखड़ को ब्लॉक कर दिया. इस दौरान ममता बनर्जी ने गर्वनर धनखड़ पर गंभीर आरोप भी लगाए. जिसके बाद धनखड़ ने इससे साफ इनकार किया था. पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ और सीएम ममता बनर्जी के बीच टकराव के बीच गवर्नर ने सीएम को पत्र लिखकर बातचीत का न्यौता दिया था और उन्हें सुविधानुसार राजभवन आमंत्रित किया था. इसे आपसी रिश्ते सुधारने की कोशिश माना गया था और दोनों बातचीत करते हुए नजर आए थे। हालांकि इसके बाद उन्होंने उप राष्ट्रपति दफ्तर का रुख कर लिया था।