मुंबई/दिल्ली: Farmer’s Suicide: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के पहले एक बार फिर किसानों की आत्महत्या का मामला गरमा गया है। हालांकि शिंदे सरकार ने किसानों की सहायता कर काफी हद तक आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने की पहल भी की है, बावजूद इसके एक खास इलाके में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थामे नहीं थम रहा है। इलाके के पीड़ित तस्दीक करते है कि फार्मिंग से जुड़े बड़े किसानों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा है। लेकिन इस इलाके के कई छोटे किसानों का जीना मुहाल हो गया है।
उनके मुताबिक देश का आम अन्नदाता आजादी के 77 सालों में गरीब का गरीब ही रह गया है, देश में कांग्रेस के लगभग 60 साल के शासन में किसानों की जो हालत थी, वह आज भी है। उनके मुताबिक मोदी सरकार के पिछले 10 सालों में भी उनके इलाके की तस्वीर नहीं बदली है, जबकि शरद पवार, उद्धव ठाकरे, शिंदे और फडणवीस जैसे दिग्गज नेता कई सालों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहे। केंद्र में सरकार UPA की हो, या NDA की, हमेशा यह दावा किया जाता है कि उसने किसानों की आत्महत्या की घटनाओं को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। लेकिन हकीकत कुछ और है। आज भी किसान मौत को गले लगा रहे है।
महाराष्ट्र में धान, संतरा और अंगूर की खेती करने वाले किसानों की हालत उन किसानों से कही ज्यादा बेहतर है, जिनकी आजीविका सिर्फ रुई की पैदावार पर टिकी हुई है। कपास की पैदावार में अव्वल नंबर पर आने वाले यवतमाल जिले में किसानों की आत्महत्या की घटनाये आम हो गई है। यहाँ हर एक दो दिन में कोई ना कोई किसान अपनी जान दे रहा है। वजह गरीबी और आर्थिक तंगी के साथ – साथ कर्ज का बढ़ता बोझ है।
देश में आत्महत्या के बढ़ते मामलों में सुर्खियां बटोर रहा यवतमाल जिला एग्रीकल्चर सुसाइड विलीज के नाम से जाना पहचाने जाने लगा है। यवतमाल से सटे अमरवती जिले में भी आत्महत्या का सिलसिला शुरू हो गया है। बीते पांच महीनों में इन इलाकों में रिकॉर्ड तोड़ आत्महत्याएं दर्ज की गई है। फार्मर्स सुसाइड के ताजा डाटा चौंकाने वाले है। यवतमाल को पछाड़ते हुए, अमरावती जिला इन दिनों किसानों की मौत के मामले में सबसे ऊपर आ गया है।
इस इलाके में कार्यरत RTI कार्यकर्ता दावा कर रहे है कि महाराष्ट्र के अमरावती जिले में इस साल दिसंबर से मई तक छह माह में 143 किसानों ने आत्महत्या की है। औसतन हर दिन आत्महत्या से एक किसान का परिवार तबाह हो रहा है। इसी तर्ज पर 132 किसानों की आत्महत्या के साथ यवतमाल जिला अब दूसरे नंबर पर आ गया है। हालांकि जून महीने में भी आत्महत्या के ग्राफ में कोई कमी नहीं आई है। बीते सालों की तुलना में अमरावती जिले में साल 2021 से किसानों की आत्महत्या के मामले में यवतमाल को पीछे छोड़ दिया है।
बताते है कि उस साल 370 किसानों ने आत्महत्या की थी। इसके बाद वर्ष 2022 में 349 और 2023 में 323 किसानों ने यहां आत्महत्या का ग्राफ रिकॉर्ड तोड़ स्तर पर पहुँचाया था। यवतमाल में, 2021 से 2023 तक आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या क्रमशः 290, 291 और 302 दर्ज है। न्यूज़ टुडे नेटवर्क ने यवतमाल और अमरावती जिले का दौरा कर किसानों का हालचाल जाना। मौत के कारणों की असल वजह जानने के लिए किसानों के घरों का रुख किया और उनके नाते – रिश्तेदारों से भी चर्चा की।
बताते है कि इस इलाके में गरीबी और कर्ज किसानों की आत्महत्या की बड़ी वजहें हैं। किसान कल्याण का दावा करने वाले कई शेतकरी संगठनों के नेताओं का कहना है कि इस इलाके के किसानों ने कपास के अलावा सोयाबीन और अन्य फसलों को उपजाने का प्यास भी किया। लेकिन न तो उनकी उपज यानी पैदावार में वृद्धि हुई और ना ही फसल का वाजिब दाम मिला। इन वर्षों में किसानों की कमाई नहीं होने से वे कर्ज में डूबते चले गए।
पीड़ित किसानों के परिजन तस्दीक कर रहे है कि केंद्र और राज्य में सरकार किसी की भी हो लेकिन उनका कर्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। कपास छोड़ कई किसानों ने सोयाबीन की फसल में भी अपना भाग्य आजमाया था। उनके मुताबिक पिछले साल सोयाबीन की दरें भी गिरकर करीब 4000 रुपये प्रति क्विंटल कम हो गईं, ऐसे में उन्हें जबरदस्त नुकसान हुआ। इन इलाकों में ना तो पर्याप्त किसान बैंकिंग ऋण योजनाए संतोषप्रद पाई गई, और ना ही अधिकांश घर परिवारों को केंद्र और राज्य की योजनाओं का अपेक्षित लाभ मिल पाया।
इस इलाके में गैर क़ानूनी रूप से कर्ज देने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ी है। ऐसे कई साहूकार मोटी रकम ब्याज में देकर किसानों की जमीनों पर कब्ज़ा कर रहे है। कभी खेतों के मालिक रहे किसान अब अपनी ही जमीन में मजदूरी कर रहे है। कई प्राइवेट कंपनी भी फसल दोगुनी करने के नाम पर किसानों को चूना लगा रही है। सहकारी समितियों से उन्ही किसानों को मदद मिल पा रही है, जिनका पिछला ट्रेक रिकॉर्ड ठीक है।
बैंक से समय पर लोन नहीं मिलने के चलते कई किसान प्राइवेट वित्तीय फर्मों के जाल में फंस गए है। उन्हें दबंगों और साहूकारों की कठोर वसूली का सामना करना पड़ रहा हैं। पीड़ित परिजन तस्दीक करते है कि जब कर्ज देने वाला दबाव बनाता है, तब उन्हें आत्महत्या के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझता।