छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले का डिजिटल सबूत आया सामने, Track & Trace software पर ED की नजर, NIC के संपर्क में एजेंसियां, शराब की अफरा-तफरी का असली ब्यौरा यहां…

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रायपुर/दिल्ली। छत्तीसगढ़ में 22 सौ करोड़ के शराब घोटाले की डिजिटल कुंडली सामने आ गई है। इसमें शराब की खपत, निर्माण, आपूर्ति और परिवहन का GPRS समेत पूरा ब्यौरा मिल गया है। शराब घोटाले की असल जड़ से ED के तत्कालिन विवेचना अधिकारीयों ने अपना मुंह मोड़ रखा था। नतीजतन यह केस काफी कमजोर हो गया था। लेकिन अब राज्य में विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी की नई सरकार और ED में तैनात निष्पक्ष अफसरों की देख रेख में शुरू हुई विवेचना के अंजाम तक पहुंचने के आसार बढ़ गए हैं। बताते हैं कि शराब घोटाले की पूरी कुंडली Track & Trace Software के भीतर समाई हुई है।

सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण जांच एजेंसी NIC के संपर्क में भी है। उसने आबकारी घोटाले का अध्ययन करना भी शुरू कर दिया है। यह भी बताया जा रहा है कि Track & Trace software रायपुर में “आबकारी भवन”में भी उपलब्ध कराया गया था। ताकि डिस्टिलरी से गोदाम और दुकानों तक शराब के परिवहन और वाहनों की गतिविधियों पर GPRS सिस्टम से निगाह रखी जा सके।

भारत सरकार की संस्था NIC ने राज्य में शराब की खपत और निर्माण एवम आपूर्ति का डिजिटल डाटाबेस तैयार किया था। इसमें प्रदेश की तमाम डिस्टिलरी में शराब के उत्पादन और परिवहन का पूरा ब्यौरा दर्ज है। इसमें डाटा एंट्री के अलावा उन आबकारी अधिकारीयों का नाम और ब्यौरा भी दर्ज है, जो आबकारी घोटाले में आकंठ डूबे हुए थे। अंदेशा यह भी जाहिर किया जा रहा है कि शराब घोटाले में लिप्त कई विभागीय माफिया आबकारी भवन में उपलब्ध इस महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं।

उनका मकसद शराब घोटाले के डिजिटल सबूतों को नष्ट करना है। लिहाजा इस सॉफ्टवेयर की सुरक्षा साय सरकार के कंधों पर बताई जा रही है। छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ED की भद्द पिटने से कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अधिकारी हैरत में है। उन्हें कतई उम्मीद नही थी कि इतने महत्वपूर्ण मामले की विवेचना में जानबूझकर लापरवाही बरती जाएगी।

उन्होंने इसका ठीकरा ED में पदस्थ 2005 बैच के एक आईपीएस अधिकारी पर फोड़ा है। बताया जाता है कि मुंबई में तैनात रहे इस तत्कालीन अफसर के निर्देश पर ही ED ने राज्य में घटित तमाम घोटाले की जांच को अंजाम दिया था। यह भी बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष 2005 बैच के IPS अधिकारी शेख आरिफ ने अपने बैचमेट के साथ सांठ-गांठ कर ED की विवेचना को पूर्व मुख्यमंत्री भू-पे बघेल के हितों को ध्यान में रखते हुए जांच को प्रभावित किया था। शेख आरिफ को ED ने अपनी विवेचना में महादेव ऐप घोटाले में लिप्त पाया है।

उनके खिलाफ EOW में नामजद FIR दर्ज करने के निर्देश EOW में धरे के धरे रह गए। यही नही EOW के प्रमुख रहते शेख आरिफ ने कई घोटालों की जांच रफा दफा कर दी थी। उनकी विवादास्पद कार्यप्रणाली के चलते केंद्र और राज्य सरकार की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। सूत्र यह भी तस्दीक कर रहे हैं कि शराब घोटाले की तर्ज पर 6000 करोड़ के महादेव ऐप घोटाला और 600 करोड़ के कोल खनन परिवहन घोटाले को भी विवेचना के दौरान काफी कमजोर कर दिया गया है।

अदालत में इन दोनों मामलों को लेकर भी ED की भद्द पिटना तय माना जा रहा है। कानून के जानकार तस्दीक कर रहे हैं कि भू-पे राज के तमाम घोटाले में ED की कमजोर विवेचना का लाभ आरोपियों को मिल रहा है। कई घोटालों में आरोपी बनाए गए अनिल टुटेजा और उनके पुत्र यश टुटेजा बनाम ED के प्रकरण ने ऑल इण्डिया सर्विस के कई अधिकारियों की कार्यप्रणाली और कर्तव्य निष्ठा की पोल खोल दी है। उनके मुताबिक भू-पे राज के तमाम घोटालों की जांच CBI से करानी चाही।

सुप्रीम कोर्ट ने ED को आड़े हाथों लेते हुए शराब घोटाले की ECIR ही रद्द कर दी है। मामले की पड़ताल में ED की विवेचना में कई गंभीर खामियां सामने आई हैं। हालाकि विभागीय तौर पर इस गंभीर प्रकरण की जिम्मेदारी अभी तक तय नही की गई है। कानून के जानकारों के मुताबिक अदालत ने ED को फटकार लगाते हुए IT की रिपोर्ट पर प्रेडिकेट ऑफेंस रजिस्टर्ड किए जाने को लेकर ED की कार्यप्रणाली पर करारी चोट की है।

इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ उस महत्वपूर्ण जांच और विवेचना को गहरा धक्का लगा है, जिसमें कई अधिकारी ईमानदारी का परिचय देकर निष्पक्ष जांच में जुटे थे। हालाकि सूत्र दावा कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फरमान एजेंसियों के लिए राम बाण साबित हुआ है। उसने नई जांच की दिशा और दशा तय कर दी है।