रायपुर/बिलासपुर/दुर्ग। छत्तीसगढ़ की जेलों में कई जेलरों का माफिया राज चल रहा है। वे बंदियों से कभी हफ्ता तो कभी महिना वसूली करते हैं। रकम नही देने पर मारते पीटते हैं। हालत यह है कि अवैध उगाही की रकम जेल प्रहरियों के सीधे खाते में बुलवाई जाती है। इसके लिए पेटीएम और दूसरे ऑनलाइन मोबाइल ऐप की सहायता ली जाती है।इसकी शुरूवात वर्ष 2018 में उस वक्त हुई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भू-पे और जेल मंत्री ताम्रध्वज साहू ने विभिन्न जेलों से नजराना लेना शुरू कर दिया था। इसके लिए कुछ सेन्ट्रल, जिला और उप जेलों से भी उगाही शुरू कर दी गई थी। बीते 5 सालों में बंदियों से होने वाली उगाही के मामलों ने कई जेलों में अपनी जड़ें जमा ली है। जेलरों के इशारे पर अब तो कई बैरक नंबरदारों के जरिए ठेकों में चल रहे हैं। यहां रहने के लिए बंदियों को हफ्ते दर महिने किराया चुकाना होता है।
उम्मीद की जा रही है कि DG डॉ. राजेश मिश्रा जेलों में मूलभूत और आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने के मामले में ठोस कदम उठाएंगे। उनके द्वारा जेल मैनुअल का पालन कराने के सख्त निर्देशों को जारी कर सराहनीय पहल की गई है।अब चार दिवारी के भीतर चल रही अवैध गतिविधियों का खुलासा होना शूरू हो गया है।उम्मीद की जा रही है कि उनके प्रयासों से जल्द ही अवैध गतिविधियों पर लगाम भी कसेगी? सूत्रों के मुताबिक प्रत्येक बंदी से प्रतिमाह 5 हजार से लेकर 10 हजार रूपए तक वसूले जाते हैं,यह शुल्क सिर्फ निवास स्थान तय करने के लिए होता है। जेलों में सुविधाओं के लिए अलग से रकम चुकानी होती है। यह अवैध वसूली जेलरों का जजिया कर बन गई है। प्रत्येक जेल से इकट्ठा होने वाली नगदी का एक हिस्सा वसूलीकर्ता जेलर के जेब में तो दूसरा हिस्सा विभाग के आला अधिकारियों की तिजोरी तक पहुंचता है। सूत्र बताते हैं कि जो बंदी बैरकों में रहने का शुल्क नही अदा करते उनके साथ ना केवल अमानवीय व्यवहार होता है बल्कि मार-मार कर उनको रकम चुकाने के लिए राजी कर लिया जाता है।
छत्तीसगढ़ की सारंगढ़ जेल से ऐसी ही अमानवीय घटना सामने आई है। यहां एक बंदी को मार-मार कर लहू लुहान कर दिया गया है। परिजनों के मुताबिक पीड़ित का बुरा हाल कर दिया गया है। पीड़ित को बुरी हालत में स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसके पूरे शरीर में जगह-जगह चोट के निशान पाए गए हैं। सूत्र बताते हैं कि ये चोट के निशान नही बल्कि “नोट के निशान” हैं, जो अवैध वसूली के लिए चर्चित है।उधर बंदी ने भी विडियो जारी कर अपनी आप-बीती सुनाई है। उसके मुताबिक एक तो सरकार ने उसे जेल भेज दिया लेकिन यहां भी मार-मार कर अवैध वसूली की जा रही है। उसने जेल अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। यह भी बताया जाता है कि उच्चाधिकारियों ने हालात का जब जायजा लिया तो पीड़ित बंदी के आरोप प्रमाणित पाए गए हैं। इसके पूर्व रायपुर सेन्ट्रल जेल से सबसे ज्यादा अवैध वसूली के प्रकरण सामने आए थे।
हाल ही में इस जेल से एक बार फिर अवैध वसूली को लेकर एक विडियो सामने आया था। इसमें पीड़ित ने जेल के भीतर के जो हालात उजागर किए थे, वो जेल प्रशासन के लिए सोचनीय है. छत्तीसगढ़ की जेलों में ये अमानवीय मामले कोई नई बात नही है। लेकिन बीते 5 सालों में ऐसी घटनाओं ने अपनी जड़ें जमाकर अब कारोबार का रूप ले लिया है। सूत्र बताते हैं कि राज्य की शायद ही ऐसी कोई जेल शेष रह गई हो,जहां निवास स्थान और सुविधाओं के नाम पर अवैध वसूली का कारोबार ना जारी हो। दरअसल राज्य की जेलों में मूलभूत सुविधाओं का भारी टोटा है। वहीं क्षमता से लगभग दो गुना अधिक बंदियों को ठूंस-ठूंस कर भर दिया गया है।यहां जिन बैरकों में पर्याप्त पानी और जायज सुविधाएं हैं, उन आदर्श बैरकों में रहने के लिए बंदियों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है। एक हाथ नगद दो दूसरे हाथ बैरक ट्रांसफर।
बताते हैं कि जिन बैरकों में नरक जैसा वातावरण है, वहां सर्वाधिक बंदियों को रखा जाता है। यहां हफ्ते में एक-दो बार ही बंदियों को नहाने का अवसर प्राप्त होता है। पानी नही है, गंदगी का आलम है। यही हाल खाने-पीने और सोने का है। ऐसे बैरकों में दिन भर शोरगुल और पीने तथा निस्तार के लिए पानी की कमी से दिनों दिन बंदियों की हालत पस्त हो जाती है। इस भीड़ से बचने के लिए पीड़ित बंदी उन बैरकों का रुख करना चाहते हैं, जहां रहने, खाने और निस्तार के लिए माकूल व्यवस्था है। बस मनचाही शुल्क अदायगी करनी पड़ती है। राज्य कि जेलों की बैरको में सुविधाओं की असमानता ने अवैध वसूली के कारोबार को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। यही नही मानवाधिकार आयोग और जायजा लेने वाले दलों द्वारा गंभीरतापूर्वक जेल का निरीक्षण नही किए जाने से बंदियों के इंसाफ की आवाज दबी की दबी रह जाती है। सूत्रों के मुताबिक निरीक्षण दल के दस्तक देने से पूर्व आम बंदियों को बैरकों में बंद कर दिया जाता है। जेल के भीतर दाखिल होने के बाद निरीक्षण दल सिर्फ खाली मार्गों से गुजरते हुए चिन्हित बंदी और गेट ड्यूटी पर तैनात नंबरदारों से रू-ब-रू होकर लौट जाता है।
इस दौरान बैरकों में बंद आम बंदियों से किसी की मुलाकात नही हो पाती। ऐसे में असलियत निरीक्षण दल से कोसों दूर होती है।आखिरकार शासन मौन? प्रशासन मौन?इन बंदियों की सुनेगा कौन?छत्तीसगढ़ में जेलों पर निगरानी रखने वाले सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को मौजूदा दौर में सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है,ताकि नए पनप रहे उगाही के कारोबार पर ईमानदारी के साथ रोक लगाई जा सके। बताते हैं कि निरीक्षण दलों ने कई मौकों पर सुधार के निर्देश भी जेल प्रशासन को दिए थे, कई सिफारिशें भी की लेकिन उस दिशा में कोई ठोस कदम नही उठाए गए। जेल एवम सुधारात्मक सेवाओं को लागू करने में तत्कालीन भू-पे सरकार ने कोई रुचि नही दिखाई थी।
नतीजतन यह विभाग भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। जेल प्रशासन के नए DG डॉ.राजेश मिश्रा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अवैध कारोबार पर रोक लगाने की है, इसके लिए वे जेल मैनुअल को लागू कराने पर जोर दे रहे है। बस उन्हें ध्यान रखना होगा कि जेल एक्ट को सुनिश्चित करने की सेवा शर्तों को भी कारोबारी अफसर उगाही का साधन ना बना ले?
दरअसल जेल विभाग में ज्यादातर प्रहरी और अधिकारी 10-10 सालों से एक ही स्थान पर जमे हुए हैं। इनमे से ज्यादातर को पीड़ितों की मजबूरी का बखूबी लाभ उठाना बेहतर तरीके से आता हैं। ऐसे कर्मियों की कार्यप्रणाली की वजह से ही राज्य की जेलों में भ्रष्टाचार चरम पर है। जेलरों द्वारा कभी सजा माफी रद्द करने तो कभी मार-पीट के भय से बंदियों को चुप्पी साधनी पड़ती है।प्रदेश की जेलों में कैद लगभग 18 हजार बंदी बेबसी के दौर से गुजर रहे हैं।
इसमें पूर्व मुख्यमंत्री भू-पे की करीबी उपसचिव सौम्या चौरसिया और कोल माफिया सूर्यकांत तिवारी का नाम शामिल नही है। सूत्र बताते हैं कि इनकी VIP सुविधाएं पुनः बहाल कर दी गई है। बहरहाल उम्मीद की जा रही है कि DG डॉ. राजेश मिश्रा जेलों में मूलभूत और आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने के मामले में ठोस कदम उठाएंगे। उनके द्वारा जेल मैनुअल का पालन कराने के सख्त निर्देशों को जारी कर सराहनीय पहल की गई है।अब चार दिवारी के भीतर चल रही अवैध गतिविधियों का खुलासा होना शूरू हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि उनके प्रयासों से जल्द ही अवैध गतिविधियों पर लगाम भी कसेगी? 10-10 सालों से एक ही स्थान पर जमे हुए हैं।
इनमे से ज्यादातर को पीड़ितों की मजबूरी का बखूबी लाभ उठाना बेहतर तरीके से आता हैं। ऐसे कर्मियों की कार्यप्रणाली की वजह से ही राज्य की जेलों में भ्रष्टाचार चरम पर है। जेलरों द्वारा कभी सजा माफी रद्द करने तो कभी मार-पीट के भय से बंदियों को चुप्पी साधनी पड़ती है।प्रदेश की जेलों में कैद लगभग 18 हजार बंदी बेबसी के दौर से गुजर रहे हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री भू-पे की करीबी उपसचिव सौम्या चौरसिया और कोल माफिया सूर्यकांत तिवारी का नाम शामिल नही है। सूत्र बताते हैं कि इनकी VIP सुविधाएं पुनः बहाल कर दी गई है। उम्मीद की जा रही है कि DG डॉ. राजेश मिश्रा जेलों में मूलभूत और आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने के मामले में ठोस कदम उठाएंगे। उनके द्वारा जेल मैनुअल का पालन कराने के सख्त निर्देशों को जारी कर सराहनीय पहल की गई है।अब चार दिवारी के भीतर चल रही अवैध गतिविधियों का खुलासा होना शूरू हो गया है।उम्मीद की जा रही है कि उनके प्रयासों से जल्द ही अवैध गतिविधियों पर लगाम भी कसेगी?