छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले के भूपे गिरोह की दिल्ली दौड़, EOW में दर्ज मामले को रद्द करवाने की जद्दोजहद, होगी एफआईआर रद्द?

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रायपुर। छत्तीसगढ़ का लगभग 2200 करोड़ का शराब घोटाला अब सीबीआई जांच की राह पकड़ रहा है.इसके चलते ईडी और घोटालेबाजों के बीच जंग तेज हो गई है. भूतपूर्व भूपेश गिरोह हैरत में है,क्योंकि आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो में तमाम घोटालेबाज़ों के खिलाफ ईडी ने एफआईआर दर्ज कराई है. इस एफआईआर के दर्ज होते ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सख्ते में बताए जाते हैं। इसके लिए उन्होंने भी राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया है.बताते हैं कि इस गिरोह में शामिल टुटेजा एंड कंपनी के मैनेजर पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांढ के नेतृत्व में पांच प्रमुख घोटालेबाज़ों ने अदालती दरवाजा खटखटाने की जिम्मेदारी संभाल ली है, अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शराब घोटाले में नामजद्द हो सकते है. लिहाजा बघेल की नींद भी उड़ी बताई जा रही है. सूत्रों के मुताबिक़ दर्ज एफआईआर में कई आरोपी तस्दीक कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री कार्यालय से ही अवैध वसूली और घोटाले के निर्देश प्राप्त होते थे. यही नहीं तत्कालिन मुख्यमंत्री बघेल की सहमति के उपरांत ही वे ना केवल फर्जी होलोग्राम छपवा रहे थे बल्कि घोटाले की पूरी की पूरी रकम का ब्यौरा हर हफ्ते उनके समक्ष पेश करते थे.

न्यूज़ टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक़ 2 आरोपियों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ उपसचिव सौम्या चौरसिया की देखरेख में ही सरकारी और गैर सरकारी लोगों को कमीशन की रकम सौंपी जाती थी. सूत्र यह भी तस्दीक कर रहे हैं कि 5 आरोपियों ने साफ तौर पर स्वीकार किया है कि शराब कंपनियों की ओर से कमीशन की बड़ी रकम होटल कारोबारी अनवर ढेबर को सौंपी जाती थीं। इसके अलावा विभिन्न मदिरा दुकानों से अर्जित होने वाली रकम का हिसाब किताब भी श्री ढेबर किया करते थे. इन आरोपियों ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष अनवर ढेबर आबकारी घोटाले का पूरा लेखा जोखा पेश कर सरकारी रकम की बंदरबांट किया करते थे. ईडी सूत्रों के मुताबिक़ अब शराब घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की भूमिका जांची परखी जा रही है. फिलहाल इस तथ्य के संकेत मिले हैं कि तत्कालिन आबकारी मंत्री कवासी लखमा सिर्फ कठपुतली मात्र थे।

असल में आबकारी गतिविधियों का संचालन होटल कारोबारी अनवर ढेबर संचालित किया करते थे, सूत्रों के मुताबिक़ पूर्व मुख्यमंत्री बघेल का नाम भी आरोपियों की सूची में अव्वल नंबर पर है.हालाकि समय आने पर एजेंसियों का शिकंजा उनके ऊपर भी कस जायेगा. दरअसल ईडी को शराब घोटाले की असल जड़ बघेल के कार्यालय से लेकर उनके निवास स्थान तक साफ साफ तौर पर दिखाई दे रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बीजेपी से वर्ष 2018 में सत्ता तो हथिया ली थी लेकिन जनता के लोक कल्याण के लिए नही बल्कि भ्रष्टाचार और घोटालो के लिए, भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था.मुख्यमंत्री कार्यालय ही भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा साबित हुआ है,बताते हैं कि तत्कालिन मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में शायद ही कोई ऐसा सरकारी महकमा बचा हो, जहां भ्रष्टाचार और घोटाला सामने ना आया हो हालाकि रोजाना उजागर हो रहे घोटालों की वजह से कांग्रेस की छवि लगातार जनता के बीच धूमिल हो गई थी. नतीजा 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के रुप में सामने आया था. राज्य की जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर बदलाव के पक्ष में नजर आने लगी थी.

उधर सत्ता में आते ही बीजेपी ने भ्रष्टाचार में लिप्त कांग्रेसी नुमाइंदों के साथ साथ कई नौकरशाहों पर भी अपना शिकंजा कस दिया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने ऐलान किया है कि मोदी गारंटी के तहत राज्य में जहां भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसी जा रही हैं वहीं विकास और निर्माण के कार्यों की गति में तेजी भी लाई गई है. उनके मुताबिक भ्रष्टाचार में लिप्त किसी भी आरोपी को बक्शा नही जाएगा। छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले को लेकर EOW में दर्ज हुई इस नई एफआईआर से भूपेश गिरोह को तगड़ा झटका लगा है.बताते है कि रिटायर आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा और उनके गुरु घंटाल पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांढ का नाम भी आरोपियों की सूची में दर्ज है. भूपे गिरोह इस एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना के रुप में देख रहा है. इस गिरोह के वरिष्ठ नौकरशाहों की दलील है कि सुप्रीम कोर्ट ने शराब घोटाले की जांच पर रोक लगाई है,इसके तहत उत्तर प्रदेश में दर्ज एफआईआर पर भी रोक लगी हुई है। ऐसी स्थिति में EOW में दर्ज कराई गई यह नई एफआईआर अदालत की अवमानना के दायरे में है. लिहाजा इस एफआईआर का कोई औचित्य नही है, यह एफआईआर रद्द होगी.

मामले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने की कारवाई शुरू कर दी गई है.इधर एफआईआर दर्ज होते ही भूपे गिरोह अदालती कार्रवाई में जुट तो गया है. लेकिन उन्हे गिरफ्तारी का भय भी सता रहा है। बताते हैं कि एफआईआर में IPC की धारा 120B भी जोड़ दी गई है.इस गैर जमानती धारा ने भूपे गिरोह को मुश्किल में डाल दिया है.दिल्ली में इसके बचाव के लिए देश के सबसे महंगे वकीलों की फौज भी खड़ी कर दी गई है. बताते हैं कि समाजवाद का बेहतर प्रदर्शन करते हुए भूपे गिरोह ने घोटाले से एकत्रित किए गए जनधन को जनता के बीच बहाना शुरू कर दिया है.

EOW ने हाल ही में लगभग 100 लोगों के खिलाफ़ एक नई एफआईआर दर्ज की है.बताते हैं कि 17 जनवरी को दर्ज हुई इस एफआईआर की शिकायत लगभग 6 माह से दफ्तर में धूल खा रही थी. ईडी ने यह शिकायत उस वक्त की थी जब शराब घोटाले को लेकर अदालत में पहला चालान पेश किया गया था. इस दौरान राज्य में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आसीन थी और बघेल खुद भी आबकारी मंत्रालय का संचालन किया करते थे.लिहाजा EOW ने ईडी के शिकायती पत्र को गंभीरता से ना लेते हुए उसे फाइलों में कैद कर दिया था. यह भी बताया जा रहा है कि बीजेपी के सत्ता में आने के लगभग 2 माह बाद EOW ने मामले की सुध उस वक्त ली जब ईडी ने रुचि लेकर वैधानिक कारवाई पर जोर दिया था.

सत्ता परिर्वतन के बाद भी EOW हरकत में आया है,जानकारी के मुताबिक़ EOW ने अभी किसी भी आरोपी के खिलाफ नोटिस जारी नही किया है, मामला अभी सिर्फ एफआईआर दर्ज होने तक ही सीमित बताया जा रहा है। राज्य के बहुचर्चित शराब घोटाले में भूपे गिरोह के तत्कालिन आबकारी सचिव अरुणपति त्रिपाठी जेल में बंद हैं. उनके साथ कोल खनन माफिया सूर्यकांत तिवारी भी सेंट्रल जेल रायपुर में कैद हैं इसके अलावा दर्जन भर अन्य आरोपी भी जेल की हवा खा रहे हैं. इसमें सौम्या चौरसिया, और आईएएस समीर विश्नोई,आईएएस रानू साहू और अन्य नाम भी सुर्खियों मे है. ये तमाम आरोपी भी EOW की दर्ज नई एफआईआर में अपने कारनामों को लेकर चर्चा में है. यह देखना गौरतलब होगा कि आने वाले दिनों में EOW की यह नई एफआईआर कितनी कारगर साबित होती है? फिलहाल तो इस एफआईआर से राजनैतिक गलियारा भी गरमाया हुआ है.