रायपुर/दिल्ली। छत्तीसगढ़ में इन दिनों सरकारी और गैर सरकारी जमीनों पर जोर जबरदस्ती कब्जे की बयार बह रही है। कई इलाकों में तो बकायदा पुलिस के संरक्षण में प्रभावशील तत्व खाली पड़ी जमीनों पर अपना डंडा-झंडा गाड़ रहे हैं। पीड़ित जब उनके अनाधिकृत कब्जे के मालिकाना हक के दस्तावेजों की मांग करते हैं तो उन्हें दो टूक पुलिस में शिकायत और कोर्ट में केस दायर करने का फरमान सुना कर अतिक्रमणकारी हिंसा तक में उतारू हो जाते हैं। राज्य के कई जिलों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी टोली के कारनामों से पीड़ित दो चार हो रहे हैं।
उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। जबकि मालिकाना हक़ के दस्तावेज लेकर पीड़ित कभी सरकारी दफ्तर तो कभी जमीन क्रेता विक्रेता के चक्कर काट रहे हैं। पौने पांच सालों में गरीबों को उनके हक़ के मकान दिलाने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल निकम्मे साबित हुए, पीड़ित इसकी तस्दीक कर रहे हैं। वहीँ दूसरी ओर मुख्यमंत्री से संरक्षण प्राप्त टोली आए दिन नए-नए इलाकों में लोगों के खून पसीने से खरीदी गई जमीन जायदाद पर बगैर दस्तावेज अपना वैधानिक हक जता रहे हैं।
राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र केबल कारोबारी गुरुचरण सिंह होरा के गैर कानूनी कब्जों से दर्जनों पीड़ित इन दिनों सरकारी दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। ऐसे निरीह लोगों की न तो पुलिस सुन रही है और न ही प्रशासन। सैंकड़ों पीड़ितों ने सड़कों पर उतरकर शासन प्रशासन से गुहार भी लगाई। कई अवसरों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंप कर वैधानिक कार्रवाई किये जाने के निर्देश देने का निवेदन भी किया, लेकिन पीड़ितों को कोई राहत नहीं मिल पाई।
सरकार के सर्वोच्च पद पर आसीन शख्स ही जब गुनहगारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो तो फिर पीड़ितों को न्याय की उम्मीद करना बेमानी ही है। बताते हैं कि राजा जनता की तिजोरी पर हाथ साफ़ करने के साथ-साथ उनकी जान माल का भी दुश्मन बन गया है। लिहाजा कानून के जानकारों ने ऐसे पीड़ितों के लिए उन राहत केंद्रों का रास्ता दिखाया है, जहां दस्तक देने से उम्मीद की किरण नजर आती है।
जानकर बताते हैं कि, अगर आपके जमीन पर किसी व्यक्ति ने कब्जा कर लिया है तो पहले तो आप स्थानीय थाने में उस शख्स की नामजद शिकायत करें। अब, आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. आप शिकायत करके पहले पुलिस को अपनी समस्या का समाधान करवाने के लिए मालिकाना हक़ से जुड़े दस्तावेज पेश करें।
फिर अपने कानूनी सलाहकार अथवा स्वयं पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से स्थानीय थाना प्रभारी की कार्रवाई से अवगत कराएं। दरअसल इन दिनों शासन प्रशासन का नाजायज फायदा उठाने वाले नेता नगरी से जुड़े कई लोग भोले भाले लोगों का फायदा उठा रहे हैं, उनकी जमीन हड़प लेते हैं।
छत्तीसगढ़ के कई शहरों से अक्सर खबरें आ रही है कि सत्ताधारी दल से जुड़े कई सफेदपोश लोग गलत तरीके से आपके आस पड़ोस स्थित दूसरों की संपत्ति पर आसानी से कब्जा कर लेते हैं।
सत्ता के नशे में ऐसे तत्व उस जमीन और घरों पर अपना मालिकाना हक जताते हुए खुद आपको अपनी संपत्ति से बेदखल करने के लिए कानून तक हाथ में ले रहे हैं। बताते हैं कि राज्य में परंपरागत बेजा कब्ज़ाधारियों और घोषित भू माफियाओं ने खाट पकड़ ली है, वे कंबल ओढ़कर इन दिनों घी पी रहे हैं। उनके स्थान पर पौने पांच सालों में नए खिलाड़ी इस गैरकानूनी कारोबार की बागडोर संभाल रहे हैं। बताते हैं कि कई प्रभावशील नेताओं की ब्लैकमनी गली चौराहों में जमीन जायदाद की खरीदी बिक्री में निवेश हो रही है। इस रकम से शराब के कारखाने, उद्योग धंधे, मॉल और रियल इस्टेट कारोबार में बूम है। जमीनों की खरीदी बिक्री से जुड़े कई नामचीन दलाल इन दिनों सड़कों की खाक छान रहे हैं। कोई मंत्री मोहम्मद अकबर का समर्थक है, तो कोई खुद को उनके कुनबे का आर्थिक सलाहकार बताता है। इससे कहीं अधिक बड़ा नेटवर्क मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आर्थिक सलाहकारों का बताया जाता है।
ऐसे तत्वों से सरकार और प्रशासन की नहीं बल्कि पीड़ितों की समस्या दुगुनी हो रही है। उसका समाधान मिनटों में निकलने वाले लोग भी कब्जा होते ही मैदान में उतर रहे हैं।
राज्य के कई जिलों में बेशकीमती जमीनों पर अक्सर संपत्ति को लेकर विवाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कई प्रभावशील रियल इस्टेट के कारोबारी हों या फिर जमीन दलाल इन दिनों कई अज्ञात हिस्सेदारों और वैधानिक मालिकों को अंधेरे में रख कर उनकी हिस्से की संपत्ति तक बेच रहे हैं, पीड़ितों की शिकायत जस की तस है, लेकिन बेजा कब्जाधारियों के हौसले बुलंद नजर आते हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सत्ता में आने के बाद एक गुरुचरण नहीं बल्कि गांव-गांव गली कस्बों में दर्जनों ऐसे गुरुचरण पैदा हो गए हैं जो मुख्यमंत्री को अपना हितैषी बता कर जमीनों पर अवैध कब्जे की मुहिम चला रहे हैं। इन दिनों एक ही जमीन के कई मालिक होने के मामलों से पुलिस थानों की आमदनी भी उछाल पर बताई जाती है।
पीड़ित बताते हैं कि रुचिकर मामलों में ही पुलिस बेजा कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई करती है वरना वाजिब पीड़ितों को सिविल मैटर करार देकर अदालत जाने का रास्ता दिखा दिया जाता है। छत्तीसगढ़ पुलिस का जमीन जायदात विवादों को लेकर निपटारा कराए जाने का मॉडल भी इन दिनों सुर्ख़ियों में है।
सूत्र बताते हैं कि रेरा के चेयरमैन विवेक ढांढ, अनिल टुटेजा, सूर्यकांत तिवारी और कोयला कारोबारी सुनील अग्रवाल रियल इस्टेट से जुड़े कारोबार में करोड़ों की ब्लैकमनी का निवेश कर रहे थे। रेरा ने कई ऐसे आधे अधूरे प्रोजेक्ट को अपने दस्तावेजों में पूर्ण बताया, जिसके चलते आम जनता में जमीनों की खरीद फरोख्त में रूचि दिखाई थी। ऐसे प्रोजेक्ट की जमीनों को बगैर वैधानिक मंजूरी के कई उपभोक्ताओं को बेच दिया गया। असलियत मालूम पड़ने पर शिकायतकर्ताओं ने जब अपनी मूल रकम की मांग की तो उन्हें नगद में उनकी राशि लौटा दी गई।
शिकायतकर्ता बताते हैं कि रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में रियल इस्टेट कारोबार में मुख्यमंत्री बघेल की टोली ने बंपर निवेश किया है। कोयला कारोबारी सुनील अग्रवाल, सूर्यकांत तिवारी और लक्ष्मीकांत तिवारी की कई शैल कंपनियां आज भी एजेंसियों की नजरों से बचते हुए अपना कारोबार कर रही हैं। उनकी ब्लैकमनी से ईमानदारी से कार्य करने वाले रियल इस्टेट कारोबारियों और शासन का हित भी बाधित हो रहा है। बताते हैं कि जमीनों की खरीद फरोख्त में रेरा चेयरमैन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
यह भी बताया जा रहा है कि घोटालों की रकम का निवेश प्रदेश भर में किया जा रहा है। इसके चलते जमीन दलालों और अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद है। रेरा जैसे महत्वपूर्ण संस्थान मनी लॉन्ड्रिंग सेंटर बन गए हैं। जमीन जायदाद का धंधा करने वाले बताते हैं कि ऐसी स्थिति पौने पांच साल पहले निर्मित नहीं हुई थी। राज्य में अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे हालात बन गए हैं।
सूत्र बताते हैं कि सुनियोजित रूप से सरकारी संरक्षण प्राप्त टोली बेशकीमती जमीनों में उपस्थित होकर पहले तो उस पर अक्सर अपना हक जताती है, फिर विवाद भी खुद खड़ा करती है, कई बार तो ऐसी स्थिति भी आती है कि जमीन के हिस्सेदारों को पावरफुल तबका थाने में बैठकर सुलह तक करवाने का दंब भरते हैं।
रायपुर के माना थाने में राजनेताओं के काले कारनामों से जुड़ा करोड़ों की जमीन जायदात का विवाद लंबे आरसे से अपने निपटारे की राह देख रहा है। बताते हैं कि मुख्यमंत्री बघेल से संरक्षण प्राप्त दल बल ने पीड़ितों को ही गिनाहगार साबित करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। फिर मामला सुलटाने के लिए पुलिस को ही आगे कर दिया। ऐसे एक दो नहीं बल्कि दर्जनों मामले प्रदेश भर के कई थानों में निपटारे के लिए लंबित बताए जाते हैं।
बताते हैं कि बेजा कब्जाधारियों के हौसले बुलंद हैं, वो सरकारी जमींनों के साथ-साथ निजी भूमि स्वामियों की जमीनों की भी हथियाने में जुटे हैं। कई इलाकों से सामने आ रहे पीड़ित इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि अतिक्रमणकारियों का मुख्यमंत्री पर इतना विश्वास और घमंड होता है कि वे जहां खड़े हो जाएं वहीँ की जमीन उनके नाम चढ़ने के आसार साफ-साफ नजर आने लगते हैं। उनके मोबाईल की एक घंटी पर स्थानीय थाना पुलिस, शासन प्रशासन के अफसर जी सर, जी सर के संबोधन के साथ पीड़ितों की ओर से ही अपनी निगाहें फेर लेते हैं।
पीड़ित यह भी बताते हैं कि एक बार उनकी जमीनों पर मुख्यमंत्री के संगी साथी खड़े हो जाएं तो उस जगह से उन्हें कोई नहीं हिला सकता। बताते हैं कि ऐसी स्थिति अब आम होते जा रही है। पीड़ित तस्दीक करते हैं कि जायज और आपराधिक मामलों में यदि आप पुलिस के पास जाएंगे तो पुलिस इस मामले में आपकी ज्यादा हेल्प नहीं करती बल्कि वो इलाके के सत्ताधारी नेता के फरमानों का इन्तजार करती है।
वे बताते हैं कि यदि वे अपने मालिकाना हक़ के दस्तावेज लेकर रजिस्ट्रार के ऑफिस जाते हैं तो वे भी हमारा कार्य नहीं है, कुछ नहीं होगा ऐसे उत्तर देकर पीड़ितों को रवाना कर रहे हैं। उनकी दलील है कि रजिस्ट्रार का काम इन विवादों को सुलझाना नहीं है, वह छत्तीसगढ़ सरकार के लिए रेवेन्यू जेनरेट करने वाला विभाग है, अधिकारी बताते हैं कि उसका काम बस डीड को रजिस्टर्ड करना है।
उधर पुलिस थाने के चक्कर काटकर थक हार चुके लोग तस्दीक कर रहे हैं कि कलेक्टर के दफ्तर में भी कोई सुनवाई नहीं है, पुलिस का काम वहां तभी होगा जब विवाद के चलते हाथापाई या हिंसा की नौबत आएगी। लेकिन दल बल वालों के लिए ऐसा जवाब देने में पुलिस अधिकारी कन्नी काट रहे हैं, बल्कि वो सिविल मामलों को यथोचित आपराधिक करार देकर मूल जमीन मालिकों के लिए ही नई मुसीबत खड़ा कर रहे हैं।
प्रदेश में आपराधिक तत्वों की बाढ़ के बीच जनता के जान माल की रक्षा के बजाय पुलिस का कार्य जमीन जायदात विवाद निपटारा और बघेलखण्ड के हक़ में अपनी मुहर बन गया है। अब लोकसेवक की नहीं बल्कि पुलिस मुख्यालय और छत्तीसगढ़ शासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। भूपेश बघेल सरकार में शासकीय दफ्तरों में सिर्फ शिकायतें स्वीकारने का काम होता है, निराकरण के लिए तो कोर्ट ही जाना होगा। इसी संकल्प के साथ पीड़ितों को साल दर साल सरकार की रवानगी की राह तकनी पड़ रही है।
कानून के जानकार बताते हैं कि पीड़ित शिकायतों को थाने और प्रशासन में सौंपने के बाद उसकी प्रमाणिक प्रतिलिपि जरूर अपने हाथ में रखें। इसके बाद सीधे कोर्ट का रुख करें। वैधानिक जिम्मेदारी वाले भारसाधक अधिकारी के साथ-साथ उस जिले के एसपी और कलेक्टर को भी पक्षकार बनाते हुए अदालत में केस दायर करें। जानकार बताते हैं कि अदालत आपके आवेदन पर सुनवाई करेगी, सभी पक्षों को अदालत जरुरी समझने पर हाथों हाथ बुला भी सकती है।
इसमें रजिस्ट्रार को भी पक्षकार बनाया जाता है। सभी पक्षों की बातों को सुनने के बाद अगर कोर्ट को लगता है कि केस में सरकारी सेवक की लापरवाही या गैरकानूनी संरक्षण अतिक्रमणकारियों को प्राप्त हुआ है तो अदालत इसके लिए जिम्मेदार अफसरों को दंडित भी कर सकती है।
यही नहीं ऐसे दागी अफसरों के खिलाफ अदालत के फैसले से छत्तीसगढ़ शासन और भारत सरकार दोनों को अवगत कराएं। ताकि ऐसे लोक सेवकों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सके। फिलहाल तो राज्य में शासन मौन, प्रशासन मौन, आम जनता की सुनेगा कौन ?