News Today CG: अम्मा बनी माँ, अंडे का फंडा या अंडे में किसका डंडा..? सवालों के घेरे में मुख्यमंत्री कार्यालय,राजनीति का नया ND तिवारी चर्चा में…

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छत्तीसगढ़ में राजनीति और नौकरशाही के मिश्रण से तैयार एक जोड़ा,मतलब दो नग पाण्डुलिपि चर्चा में है,इसका मालिकाना हक़ रजिस्ट्रेशन और वैधानिक लाइसेंस का मामला गंभीर सामाजिक अपराध के दायरे में है। 

रायपुर/दिल्ली : अंडे का फंडा अब तक देश दुनिया में नहीं सुलझ पाया है, लेकिन इस कड़ी में अब एक नया अध्याय जुड़ गया है। इसे लेकर माथा पच्ची का दौर भी शुरू हो गया है, दरअसल सवाल उठने लगा है कि ऐसे में आखिर अंडे पर किसका डंडा ? मामला सरोगेसी से जुड़ा हुआ है, इसकी खामियों का फायदा उठा कर मौज मस्ती करने वाले प्रभावशील लोगो की खोजबीन शुरू हो गई है। भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट भी सरोगेसी के मामलो को लेकर बेहद गंभीर बताया जाता है। 

सरोगेसी और इसके अवैध कारोबार को रोकने की जवाबदारी राज्य सरकारों को सौपते हुए, केंद्र ने बतौर नोडल अधिकारी मुख्यमंत्रियों को सरोगेसी के दुष्प्रभावो से आम जनता को वाकिफ कराने की जवाबदारी सौपी है। उपरोक्त दावा करते हुए अदालती सूत्र बताते है कि छत्तीसगढ़, झारखण्ड और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के कई नेता अपने कार्यालयों में काम करने वाली महिलाओ को प्रेम संबंधो तो कभी भावनात्मक रूप से बरगला कर सरोगेसी के जरिये माँ बनाने के मामलो में पीछे नहीं है।

बताते है कि ऐसे नेता कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री ND तिवारी की राह पर चल पड़े है। उनके कारनामो से सरोगेसी के कायदे कानूनों की धज्जियाँ उड़ रही है। भारत सरकार को भी अदालत में हलफनामा दाखिल करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 

छत्तीसगढ़ में भी एक सरोगेसी चर्चा का विषय बनी हुई है। हालांकि DNA टेस्ट के बाद ही अंडे पर डंडा मारने वाला शख्स देश-दुनिया के सामने बे नकाब होगा, लेकिन चूजों को देखकर उनकी प्रजाति की गणना का अनुमान लगाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इसके चलते छत्तीसगढ़ सरकार के वो कर्मी परेशान हो रहे है, जिनकी ड्यूटी जातिगत सामाजिक गणना में लगाई गई है।

 राज्य में एक नग बाल बच्चो को लेकर सवाल उठ रहा है कि आखिर ये किसके है ? ये दोनों पाण्डुलिपियाँ भिलाई स्थित सूर्या विहार में पाई गई है। बताते है कि अधिकारियो के सामने अब एक नई पहेली आन पड़ी है, दो नंन्हे शावकों की तर्ज पर नजर आने वाले इंसानी बच्चे आखिर किसके अंडे से पैदा हुए है। उनके जैविक माता-पिता कौन है ? अपने जैविक माता-पिता के आंचल से दूर ये बच्चे किसी अज्ञात हाथो में बताये जाते है। 

सूत्र दावा कर रहे है कि असल पालकों से महरूम ये बच्चे सरोगेसी के जरिये रायपुर पहुंचे थे। यहां दस्तक देते ही अज्ञात हाथो में सौंप दिए गए। बच्चो के जैविक माँ-बाप का कोई अता पता नहीं है,सरकारी रिकॉर्ड में भी उनका कोई हवाला दर्ज नहीं किया गया है। बताते है कि एक जोड़ा अर्थात दो नग बच्चो पर एक अम्मा दावा कर रही है।

जेल में कैद बगैर प्रसव पीड़ा वाली माँ ने अपनी जमानत अर्जी में एक जोड़ा बच्चो का हवाला देकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है,उसके जैविक और बेजा कब्जे वाले माता पिता के बीच रस्साकशी जोरो पर है। यही नहीं सामाजिक सर्वे करने वाली टीम भी इन बच्चो के माता-पिता और अभिभावकों को लेकर बरते गए भेदभाव नई समस्या से जूझ रही है। इन बच्चो की जाति,धर्म और अन्य संवैधानिक तथ्यों खासतौर पर यूनिक आईडी आधार कार्ड में जैविक माता पिता का नाम दर्ज होगा या फिर अभिभावक का,इसे लेकर कानूनी विसंगतियां खड़ी हो गई है। 

सरोगेसी का मामला राज्य की हाई प्रोफाइल उस महिला से जुड़ा हुआ है,जिसे लोग सुपर मुख्यमंत्री और राज्य की मालकिन के नाम से जानते पहचानते है। जानकारी के मुताबिक सरोगेसी का दुरूपयोग रोकने की व्यक्तिगत और कानूनन जिम्मेदारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की है। लेकिन उनकी नाक के नीचे ही मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ एक महिला सरकारी कर्मचारी को कौन माँ बना गया,चर्चा का विषय बना हुआ है।

बताते है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में उपसचिव के पद पर तैनात एक महिला इन दिनों जेल में कैद है। प्रवर्तन निदेशालय ने उसे कोल खनन परिवहन घोटाले में धर दबोचा था। अपनी रिहाई के लिए हाथ पांव मार रही,इस प्रभावशील अफसर ने अदालत में दावा किया है कि उसे बच्चो की देखभाल के लिए जमानत पर रिहा किया जाए। लेकिन किसी भी सरकारी अभिलेखों में इस महिला के प्रसव संबंधी ना तो कोई दस्तावेज है,और ना ही खुद के बच्चे होने का कोई प्रमाण। ऐसे में अदालत में किए जा रहे उसके दावे कितने कारगर साबित होंगे इस पर लोगो की निगाहे लगी हुई है,फैसले की घड़ी करीब बताई जा रही है।   

इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आरक्षण के दांव से उन्हीं का पासा फंसता नजर आ रहा है। सूत्र बताते है कि जातिगत गणना करने वाले कर्मी इन दिनों भारी दबाव में है। उन्हें दबाव पूर्वक एक जोड़ा,दो नग पांडुलिपियों के मालिकाना हक़ को लेकर कानूनी खानापूर्ति कराने के निर्देश है।

पीड़ित कर्मी “जैविक बच्चा घोटाला” से बचने के लिए हाथ-पांव मार रहे है। उन्हें नजर आया कि, भिलाई के सूर्या विहार स्थित एक घर में भारी भरकम सरकारी सुरक्षा व्यस्था के बीच एक नग पांडुलिपियों की तीमारदारी जोरो पर है,खाकी वर्दी के साये में लगभग 2 साल पुरानी पांडुलिपियों का रख रखाव किया जा रहा है,एक जोड़ा नन्हे शावको का यहां कुलाचे भर रहा है,किसी नामचीन खानदान के एक साथ दो चश्मो-चिराग अपनी रौशनी फैला रहे है।

हालाँकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर ये बच्चे किस प्रजाति के है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यादो को मूर्त रूप देने के लिए चिराग परियोजना को भी जोर शोर लागू कर रहे है,लेकिन इस योजना के हितग्राहियो में बच्चो के माँ बाप से जुडी कोई भी वैधानिक अनुमति प्राप्त नहीं की गई है।

मामला छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री कार्यालय का है,अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि मामला निजता का नहीं बल्कि अनुचित कदाचार का है। दरअसल,ऐसे मामलों की वैधानिक स्वीकृति देने में भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों सतर्क है। लिव-इन पार्टनर और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी का लाभ देना ठीक नहीं कहा जा रहा है।

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि लिव-इन पार्टनर और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी कानून के तहत सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. ऐसे कपल को सरोगेसी की इजाजत देना, इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा। एक महिला की याचिका पर कोर्ट ने 23 जनवरी को केंद्र को नोटिस जारी करने को कहा था।इसके दाखिल जवाब से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मुश्किले बढ़ गई है।  

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लिव-इन पार्टनर, समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी कानून के तहत सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में सरकार ने कहा कि ऐसे कपल को सरोगेसी की इजाजत देना इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा। यही नहीं किराए की कोख से जन्मे बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर भी आशंका बनी रहेगी।

केंद्र ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्यों ने 19 जनवरी को अपनी बैठक में राय दी थी कि अधिनियम (एस) के तहत परिभाषित “युगल” की परिभाषा सही है. इस अधिनियम के तहत समलैंगिक जोड़ों को सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

केंद्र ने अपने अतिरिक्त हलफनामे में कहा कि यह भी ध्यान देने योग्य है कि एकल माता-पिता को तीसरे पक्ष से ओसाइट्स और शुक्राणु के लिए एक दाता की आवश्यकता होती है जो बाद में कानूनी जटिलताओं और हिरासत के मुद्दों को जन्म दे सकती है। इसके अलावा, लिव-इन पार्टनर कानून से बंधे नहीं हैं और सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चे की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ जाएगी।

केंद्र ने अपने अतिरिक्त हलफनामे में कहा कि संसदीय समिति ने अपनी 129वीं रिपोर्ट में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी) अधिनियम, 2021 के दायरे में लिव-इन जोड़ों और समलैंगिक जोड़ों को शामिल करने के मुद्दे पर विचार किया और इस विचार का कि भले ही लिव-इन कपल्स और सेम-सेक्स कपल्स के बीच संबंधों को कोर्ट ने डि क्रिमिन लाइज कर दिया है, हालांकि, उन्हें वैध नहीं किया गया है।

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न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों और लिव-इन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है, हालांकि समलैंगिक/लिव-इन जोड़ों के संबंध में न तो कोई विशेष प्रावधान पेश किए गए हैं और न ही उन्हें कोई अतिरिक्त अधिकार दिया गया है, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया।

केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया की संसदीय  समिति ने अपने 102वीं  रिपोर्ट में सेरोगेसी अधनियम के दायरे में लिव-इन जोड़ो और समलैंगिक जोड़ो को शामिल करने के मुद्दे पर भी विचार किया और उनका मानना था कि इन धाराओं को शामिल करना समाज ऐसी सुविधाओं के दुरुपयोग की गुंजाइश खोलेगा और सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे का बेहतर भविष्य सुनिश्चित करना मुश्किल होगा। केंद्र की प्रतिक्रिया सरोगेसी अधिनियम, 2021 और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2021 की शक्तियों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर आई है।

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याचिकाओं में से एक अरुण मुथुवेल ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मोहिनी प्रिया के माध्यम से दायर की थी। याचिकाओं में से एक 200 चिकित्सा चिकित्सकों द्वारा दायर की गई थी जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने एआरटी अधिनियम, 2021 के कई प्रतिबंधात्मक और अवैज्ञानिक प्रावधानों को चुनौती दी है और उन्होंने अन्य अवैज्ञानिक प्रतिबंधों के साथ आईवीएफ में अंडाणु दाताओं को मौद्रिक मुआवजे के प्रावधान की कमी के बारे में चिंता जताई है और एक अंडाणु दाता कितनी संख्या में दान कर सकता है जो न केवल अवैज्ञानिक है बल्कि अंडाणु दाताओं के दान करने के अधिकार का उल्लंघन है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसकी प्रजनन स्वायत्तता का हिस्सा है।

इन याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने किया है, जिन्होंने पहले तर्क दिया था कि एकल महिलाओं, एकल पुरुषों, समान-सेक्स जोड़ों और लिव-इन जोड़ों जैसे व्यक्तियों की कुछ श्रेणियों को अधिनियम द्वारा पूरी तरह से बाहर रखा गया है और संवैधानिक मुद्दों पर विचार किया जाना है। न्यायालय, जिससे न्यायालय सहमत हुआ।

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इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने उस प्रावधान को भी चुनौती दी है जिसमें चिकित्सकों को आईपीसी के दायरे में लाया गया है और अपराधों को संज्ञेय बनाया गया है, जिसका देश भर के आईवीएफ चिकित्सकों पर एक भयानक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे उन्हें अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करने से रोका जा रहा है। अभियोजन के डर से। असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल, 2021 देश में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी सेवाओं के रेगुलेशन का प्रावधान करता है।

सूत्र दावा कर रहे है कि निकली है बात तो दूर तलक जाएगी,एक राजनीतिक दल को बगैर देर किए उत्तर प्रदेश के यादगार मुख्यमंत्री ND तिवारी की सौगात फिर मिल सकती है।

गौरतलब बात है कि देश के सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने बिलासपुर हाई कोर्ट में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपसचिव सौम्या चौरसिया की जमानत याचिका ख़ारिज करने के लिए जबरदस्त पैरवी की थी। इसी प्रकरण में बचाव पक्ष की याचिका में किया गया एक दावा सुर्खियां बटोर रहा है। बताते है कि यही वह तुरुप का इक्का है,जो राजा को मोह फ़ांस में बांधे रखा है।    

फिलहाल तो लोगो की निगाहे उन दो नन्हे मुन्ने नौनिहालों पर टिकी हुई है, जिन्होंने सरकारी संरक्षण में अपनी आँखे खोली थी। बताते है कि अंडे का फंडा राज्य में सुलझा ही नहीं था कि नौकरशाही एक नई उलझन में है, अंदेशा है कि जल्द ही IT-ED और CBI की तर्ज पर अनुवांशिकी शोध के चर्चित वैज्ञानिको का भी रायपुर में जमावड़ा लग सकता है। 

उम्मीद की जा रही है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस बारे में अपना मुँह खोलेंगे,हकीकत बयां करेंगे,न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के तर्क और बयान लेने के भरसक प्रयास किए,लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। यदपि हकीकत से जनता को रूबरू कराने के बजाए राजनीति के नवदम्पत्ति ने न्यूज़ टुडे नेटवर्क के वरिष्ठ पत्रकार सुनील नामदेव के खिलाफ ही 4 फर्जी मुक़दमे दर्ज कर जेल में ठूंस दिया था।

बताते है कि नवदम्पत्ति जोड़े के आलिंगन में खलल पैदा करने के चलते सौम्या चौरसिया ने पुलिस हिरासत में वरिष्ठ पत्रकार को “सेनेटाइजर” भी पिलाया था। इसकी दास्तान भी अदालत के रिकार्ड में है। मातृत्व सुख प्राप्त कराने की सरकारी योजना में व्यस्ता के चलते मुख्यमंत्री बघेल अपने दायित्वो के निर्वहन में फिस्सडी साबित हुए।

उधर,सत्ता और नए नवेले पति के मद में मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा वरिष्ठ पत्रकार के घर पर बुलडोजर चलाने की अनुमति दे दी गई। वो भी तब जब छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट बिलासपुर में हाथ जोड़कर माफ़ी मांग कर नवा रायपुर के NRDA ने पत्रकार के आसियाने को जारी समस्त नोटिस ही वापस ले लिए थे। कहते है कि प्यार अंधा होता है,लेकिन छत्तीसगढ़ में प्यार के साथ शासन-प्रशासन भी अंधा बहरा और गूंगा हो गया है। स’आभार-सुनील नामदेव की वाल ऑफ फेसबुक