दिल्ली / रायपुर : देश में नक्सलवाद के खात्मे की सबसे बड़ी कीमत छत्तीसगढ़ की जनता को चुकानी पड़ी है,बावजूद इसके एक बड़ी आबादी को इसका दंश आज भी भोगना पड़ रहा है। इसके पीछे छत्तीसगढ़ शासन की वामपंथी सोच को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है,इससे कही अधिक खतरनाक उन IPS अधिकारियो की कार्यप्रणाली बताई जाती है,जो नक्सली उन्मूलन फंड का अपने निजी हितो में इस्तेमाल कर रहे है। यही नहीं नक्सलवाद के खात्मे के नाम पर ख़रीदे जा रहे घटिया उपकरणों के चलते सुरक्षा बलो को पुलिस आधुनिकीकरण योजना का अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सीक्रेट सर्विस फंड हो,या फिर पुलिस आधुनिकीकरण एवं नक्सली मोर्चो पर खर्च होने वाली मदो का इस्तेमाल,तीनो ही मामलों में छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय की संदिग्ध भूमिका के चलते सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि उसके पडोसी राज्यों में भी नक्सली वारदाते थमने का नाम नहीं ले रही है।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर राज्य और केंद्र सरकार सालाना अरबो की रकम खर्च कर रही है,सरकारी धन का सर्वाधिक दुरूपयोग भी इसी राज्य से सामने आ रहा है। राज्य में चंद माह बाद विधान सभा चुनाव होने वाले है,इसकी नक्सली आहट भी सुनाई देने लगी है। बस्तर में निर्दोष नागरिको के साथ-साथ सुरक्षा बलों के जवानो की लगातार शहादतों के थमने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे है,कई इलाको में बीजेपी कार्यकर्ताओ को मौत के घाट उतारा जा रहा है,पत्रकारों को झूठे मामलों में फंसा कर जेलों में ठूंसा जा रहा है|
छत्तीसगढ़ पुलिस के खुफिया विभाग के जवान ED के दफ्तर में जासूसी करते धरे जा रहे है,IPS अधिकारी गैरकानूनी रूप से फोन टेपिंग कर ऐसे आदेशों को भी अदालत में प्रस्तुत कर निजता के अधिकारों का उल्लंघन कर रहे है,बावजूद इसके प्रदेश की बिगड़ती कानूनन व्यवस्था को पटरी पर लाने के बजाए पुलिस मुख्यालय अपने मूल कार्यो से ही परहेज बरत रहा है।
छत्तीसगढ़ में शहादत की सरकार है या फिर सरकार की शहादत हो रही है,यह तो सत्ताधारी दल के नेता बखूबी जानते है। लेकिन हकीकत यह है कि दोनों ही सूरत-ए-हाल में जनाजा तो लोकतंत्र का ही निकल रहा है। नक्सल प्रभावित इलाको की एक बड़ी आबादी रोजाना जोखिम भरी जिंदगी गुजर बसर कर रही है,इन इलाको में पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान आए दिन अपना लहू बहा रहे है,फिर भी नक्सलवाद की जड़ें काटे नहीं कट रही है,हालात जम्मू-कश्मीर से भी ख़राब दौर से गुजर रहे है,इसके बावजूद भी पुलिस तंत्र की सुध लेने वाला कोई नहीं।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की दुखती रग पर हाथ रखते ही राज्य के कई जिम्मेदार IPS अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन को लेकर राजनेताओ के आगे फड़फड़ाते नजर आ रहे है, उनकी कार्यप्रणाली बताती है कि ऐसे अधिकारियो ने गैर जिम्मेदार नेताओ के सामने अपने घुटने टेक दिए है। ऐसे ही अधिकारियो में अव्वल नाम प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा का सामने आया है,बताते है कि पुलिस मुख्यालय के बजाए सत्ता के आगे आत्म समर्पण कर देने से नक्सली मोर्चो पर जान माल का बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। पुलिस महानिदेशक की ओर से कोई ठोस ऐसे प्रयास नहीं किए जा रहे है,जिसके चलते नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
बताते है कि नक्सल प्रभावित इलाको में सीक्रेट सर्विस फंड का कोई लाभ ना तो पुलिस को मिल पा रहा है,और ना ही मुखबिरों को,यही हाल मैदानी इलाको का है। सालाना करोडो रूपए मुखबिरी फंड के आखिर कहां इस्तेमाल हो रहे है ? यह खोज का विषय बन गया है। नक्सलवाद से दो-दो हाथ कर रहे जिम्मेदार अधिकारी तस्दीक करते है कि मुखबिर तंत्र मजबूत करने के लिए अपनी जेबे उन्हें ढीली करनी पड़ रही है। पूर्ववर्ती बीजेपी शासन काल में सीक्रेट सर्विस “फंड ऊंट के मुँह में जीरा” की तर्ज पर मिलता था,लेकिन अब उसके भी लाले पड़ गए है,तस्दीक की जा रही है कि बीते 4 सालो में सीक्रेट सर्विस फंड का बजट में प्रावधान तो किया गया,लेकिन सरकार की तिजोरी से यह पूरी रकम वर्ष 2001 बैच के IPS आनंद छाबड़ा की अलमारियों में चली गई।
सूत्र बताते है कि साहब ने यह रकम नक्सली मोर्चो में खर्च करने के बजाए कांग्रेस पार्टी की मजबूती के लिए राजनैतिक गलियारों में खर्च कर दी गई। कई वरिष्ठ IPS अधिकारी मुखबिरी फंड के दुरुपयोग की तस्दीक कर रहे है,उनका मानना है कि इसका सदुपयोग किया गया होता तो आज हालात पूरी तरह शांतिपूर्ण होते। नक्सल मोर्चो पर डटे कई अधिकारी सूचना तंत्र के विकसित ना होने का ठीकरा पुलिस मुख्यालय पर फोड़ रहे है। उनके मुताबिक सिर्फ खानापूर्ति कर प्रतिमाह करोडो की रकम ऐसे कार्यो में खर्च की जा रही है,जिसका ना तो नक्सली उन्मूलन अभियान से कोई नाता है,और ना ही आपराधिक गतिविधियों से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता है, लहू बहा रहे अफसर SS फंड का इंटरनल ऑडिट कराए जाने की मांग पर जोर दे रहे है।
नाम ना छापने की शर्त पर नक्सली मोर्चो पर डटे कई वरिष्ठ अधिकारी इस बात की तस्दीक कर रहे है कि अब नक्सलवाद के खात्मे की सरकारी मंशा कमजोर पड़ चुकी है,नक्सल विरोधी अभियान की राह अब नक्सली नहीं बल्कि पुलिस मुख्यालय ही कठिन बना रहा है।
छत्तीसगढ़ सरकार के सलाहकारो की वामपंथी सोच और पुलिस मुख्यालय की कार्यप्रणाली को समझने के लिए नक्सली वारदातों के आंकडे और बीते 4 सालो में पुलिस महकमे के अंदरूनी हालातो को भी समझना बेहद जरुरी बताया जा रहा है।पुलिस मुख्यालय के विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सत्ता में आने के बाद पुलिस सेटअप और खरीदी प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल हो रहा है,सुरक्षा उपकरणों की खरीदी में कंपनियों को फायदा पहुँचाने के लिए दागी PSU को ढाल बना लिया गया है।
बगैर टेंडर निविदा के करोडो की खरीदी की जा रही है,वही घटिया सामग्री की आपूर्ति नक्सली मोर्चो पर कहर बनकर टूट रही है। उनके मुताबिक भारत सरकार की लेफ्टविंग एड को छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय हवा में उड़ा रहा है। नतीजतन नक्सलवाद का खात्मा सपना बन कर रह गया है,जबकि नक्सली उन्मूलन फंड से कई IPS अधिकारियो की अनुपातहीन संपत्ति में ब्लैक मनी का योगदान नए आयाम तय कर रहा है।
बीते साढ़े 4 सालो में छत्तीसगढ़ में नक्सली वारदातों पर रोकथाम की जिम्मेदारी बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कंधो पर है,बीजेपी सरकार की रवानगी के बाद जनता को विश्वास जगा था कि नक्सली मोर्चो पर कांग्रेस सरकार अपना जौहर दिखाएगी,लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भूपेश बघेल ने तख्ता पलट कर दिया। अब नक्सली अग्रिम मोर्चो पर है,जबकि पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान घटिया उपकरण और कमजोर मुखबिरी तंत्र से जूझ रहा है।
वर्ष 2018 से 2021 तक बिल्कुल सामान्य परिस्थियों में कुल 1589 ग्रामीणों ने मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया था। इनमे से बामुश्किल आधा सैकड़ा ही ऐसे ग्रामीण थे,जिन्होंने नक्सलवाद का दामन थामा था। बताते है कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने साधारण ग्रामीणों को नक्सलियों का संघम सदस्य करार देकर पहले उन्हें नक्सली घोषित किया,फिर उनके आत्मसमर्पण की राह तय की।
छत्तीसगढ़ सरकार के कागजी घोड़ो पर यकीन करे तो 2018 से पहले लगभग हर साल सुरक्षाबल और नक्सलियों में लगभग 200 मुठभेड़ हुआ करती थी, जो 2021 में घटकर 81 और 2022 में 41 के निचले क्रम पर है। राज्य में कांग्रेस पार्टी दावा कर रही है कि चार वर्षों के भीतर प्रदेश में 80 फीसदी नक्सली वारदातें कम हुई हैं। पार्टी का यह दावा SCRB की रिपोर्ट ही नहीं बस्तर के ताजा हालातो को मुँह चिढ़ाने के लिए काफी है।
छत्तीसगढ़ में ऐसी कई नक्सली वारदातों को पुलिस मुखबिरी तंत्र को मजबूत करके रोका जा सकता था,जिसमे पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानो को भारी जान माल का नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में नक्सली वारदातों का खूनी इतिहास है,इसमें पुलिस मुख्यालय की भूमिका नक्सली संगठनो की सेन्ट्रल बॉडी से कम नजर नहीं आ रही है।
बस्तर में कई आम नागरिकों की मौत के मामले जांच के दायरे में है,जनप्रतिनिधियों की भी जान जा रही है,लेकिन पुलिस मुख्यालय की कर्त्तव्यनिष्ठा खाकी वर्दी और पीड़ित जनता के प्रति नहीं बल्कि सत्ता लोलुप राजनेताओ की चौखट पर जमीनों तले रौंदी जा रही है,जानकार बताते है कि जब तक पुलिस मुख्यालय ही कायदे कानूनों की धज्जियाँ उड़ाने में आगे नजर आएगा तो,नक्सली मोर्चो पर पुलिस की नाकामी भी सरकार की शहादत को कंधा देते नजर आएगी।
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार के लहू तंत्र पर गौर करें तो कांग्रेस सरकार के तमाम दावे हवा हवाई साबित होते है। नक्सल उन्मूलन अभियानों में भारी भरकम खर्च और पुलिस मुख्यालय की कार्यप्रणाली राज्य सभा और लोक सभा में पेश साल दर साल के आंकड़े से सामने आ रही है,उसके मुताबिक साल 2019 में जनवरी से 15 नवंबर तक की स्थिति में 231 बार नक्सलियों ने हमला किया था। इन हमलों में सुरक्षा बल के जवानों समेत 76 आम लोग व जनप्रतिनिधियों की मौत हुई थी। जबकि सुरक्षा बल के जवानों ने इन हमलों में 72 नक्सलियों को मारने के बाद उनका शव भी बरामद कर लिया था। साल 2018 में नक्सली हमलों की 392 घटनाएं राज्य में हुईं थी. इनमें 153 लोगों की मौत हुई थी. जबकि 125 नक्सली भी मारे गए थे. जबकि इस साल 231 बार नक्सलियों ने हमले किए और 72 नक्सलियों को मार गिराया गया था।
पुलिस और नक्सली मामलों पर करीब से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय के निक्कमेपन की दास्तान को हालिया वारदातों से नहीं बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के कार्यकाल के आखिरी वर्षो से भी जोड़कर देख रहे है। उनका मानना है कि चालाक IPS अधिकारी सत्ता के शीर्ष के चुनावी तिकड़मों को ध्यान में रखकर सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने पर जोर दे रहे है,उन्हें ना तो नक्सली मोर्चो की कोई चिंता है,और ना ही मैदानी इलाको में कानून व्यवस्था की। नतीजतन पुलिस मुख्यालय की बेरुखी से मार्च-2017 में सुकमा 12 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे। इसी महीने के ख़त्म होते ही अप्रैल माह में फिर से सुकमा में ही सीआरपीएफ के 24 जवान शहीद हो गए थे।
मुख्यमंत्री बघेल के तमाम दावों के बावजूद मार्च 2020 में सुकमा में 17 जवान शहीद हो गए थे। यह सिलसिला साल दर साल जारी रहा। अप्रैल 2021 में जवानों के बस पर हमले में 5 जवान शहीद हो गए थे। इसी कड़ी में अप्रैल महीने में ही बीजापुर हमले में 22 जवान शहीद हुए थे। 26 अप्रैल 2023 को नक्सली हमले में हुई 10 जवानों की शहादत के बाद सरकारों के इन दावों पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।
जानकारों के मुताबिक जनप्रतिनिधियों की भी रक्षा कर पाने में नाकाम अखिल भारतीय सेवाओं के जिम्मेदार IPS अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में घोर लापरवाही बरत रहे है। इससे भारत सरकार की छवि भी तार तार हो रही है, नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में भी हालिया नक्सली हमले से ठीक एक दिन पहले बीजापुर के गंगालूर में विधायक विक्रम मंडावी के काफिले को नक्सलियों ने निशाना बनाया था। हालांकि घटना में किसी प्रकार की हानि नहीं हुई थी। बताते है कि बीजापुर विधायक के काफिले में पीछे आ रही नेलसनार जिला पंचायत सदस्य पार्वती कश्यप की गाड़ी के पहिए पर गोली लगी थी।
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक इसी वर्ष फरवरी माह में नक्सलियों ने सिलसिलेवार तरीके से तीन भाजपा नेताओं की हत्या की थी। 5 फरवरी को बीजापुर भाजपा मंडल अध्यक्ष नीलकंठ कक्केम, 10 फरवरी को नारायणपुर बीजेपी उपाध्यक्ष सागर साहू और 11 फरवरी को इंद्रावती नदी के पार दंतेवाड़ा-नारायणपुर जिले की सरहद पर बीजेपी नेता रामधर अलामी की हत्या की गई थी।
2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान,10 अप्रैल 2019 को दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी के काफिले को निशाना बनाया गया था। नक्सलियों ने एंबुश लगाकर IED ब्लास्ट किया था। इसमें विधायक भीमा मंडावी समेत 5 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। 11 नवंबर को दो हमले- नक्सलियों ने कांकेर के कोयलीबेड़ा इलाके में बीएसएफ की एरिया डोमिनेशन टीम को निशाना बनाते हुए किए थे। इसमें बीएसएफ का एक जवान शहीद हो गया था। कुल मिलाकर कहें तो छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय की बेरुखी के चलते प्रदेश की धरती नक्सल नरसंहारों से लाल होती रहती है।