UP NEWS : कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद पर HC का बड़ा आदेश, मथुरा कोर्ट में नए सिरे से होगी सुनवाई

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प्रयागराज: UP NEWS : यूपी के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में ‘श्रीकृष्ण विराजमान’ और ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ विवाद के मामले में फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका पर हस्तक्षेप न करते हुए, सिविल कोर्ट मथुरा को विचाराधीन वाद तय करने का निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल कोर्ट मथुरा ने ”सिविल कटरा केशव देव की 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण जन्मभूमि भगवान और श्री कृष्ण विराजमान के नाम करने तथा अवैध‌ निर्माण हटाने और 20 जुलाई 1973 को रद्द करने की मांग में दाखिल वाद पंजीकृत ना कर गलती की है.” इसकी अर्जी दर्ज कर उसकी ग्राह्यता पर फैसला सुनाना कानून के खिलाफ है.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जिला जज मथुरा ने सिविल जज के फैसले के खिलाफ अपील को रिवीजन में तब्दील कर कोई गलती नहीं की. कोर्ट को ऐसा करने का कानूनी अधिकार है. कोर्ट ने कहा सिविल वाद की पोषणीयता विवाद, सिविल कोर्ट ही तय कर सकती है. अब सिविल वाद पंजीकृत हो चुका है. विपक्षियों को लिखित कथन दाखिल करने के लिए सम्मन जारी हो चुका है. अनुच्छेद 227 में इस मुद्दे को तय करने का हाईकोर्ट को अधिकार नहीं है. और न ही जिला जज पुनरीक्षण में तय कर सकते थे.

1973 में कुछ पक्षों के बीच हुए समझौते को रद्द करने की मांग
गौरतलब है कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान व कई अन्य लोगों ने सिविल जज सीनियर डिवीजन मथुरा के समक्ष 25 सितंबर 2020 को दावा दाखिल किया. कटरा केशव देव कृष्ण जन्मभूमि की जमीन से निर्माण हटाकर कब्जा सौंपने तथा 1973 में कुछ पक्षों के बीच हुए समझौते व डिक्री को रद करने की मांग की. सिविल जज ने वाद पंजीकृत नहीं किया और कहा, वादी संख्या 3 लगायत 8 मथुरा निवासी नहीं है. इस केस की ग्राह्यता पर सुनवाई की तारीख तय की, बाद में इसे वाद पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया और कहा-वाद सुना गया तो सामाजिक व न्यायिक सिस्टम प्रभावित होगा. इसके खिलाफ जिला जज के समक्ष भगवान श्रीकृष्ण विराजमान व अन्य की तरफ से अपील दाखिल की गई. विपक्षियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया.

सिविल जज का आदेश
याची विपक्षियों ने आपत्ति की कि सिविल जज का आदेश सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 में पारित नहीं है. इसलिए इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती. जिला जज ने आपत्ति स्वीकार करते हुए अपील को पुनरीक्षण अर्जी में तब्दील कर दिया. और फिर कई वाद बिंदु बनाए गए और अंततः सिविल जज का आदेश रद्द कर, पक्षों को सुनकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया. जिसपर सिविल जज ने वाद पंजीकृत कर सम्मन जारी किया. इन्हीं आदेशों को हाईकोर्ट में याचिका में चुनौती दी गई थी. याची की तरफ से हाईकोर्ट में आपत्ति की गई कि जमीन की मालियत 42 लाख 26 हजार 230.40 रुपये है.

जमीन की कीमत 20 लाख
जिला जज 25 लाख कीमत के वाद की पुनरीक्षण सुन सकते हैं. जिला जज को सुनवाई का अधिकार नहीं था. हाईकोर्ट में पुनरीक्षण दाखिल की जानी चाहिए थी. मंदिर की तरफ से कहा गया कि वाद में जमीन की कीमत 20 लाख है. याची को 42 लाख कीमत कहां से पता चली, स्पष्ट नहीं है. इसलिए जिला जज का आदेश सही है. सिविल वाद की सुनवाई होनी चाहिए. सुनवाई पर लगी रोक हटाई जाए. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनकर फैसला 17 अप्रैल को ही सुरक्षित कर लिया था और फैसला सुनाते हुए सिविल वाद की सुनवाई करने का आदेश दिया है.