नई दिल्ली: Same Sex : सुप्रीम कोर्ट में आज भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली 20 याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संवैधानिक पीठ लगातार तीन दिन से इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही है. कल करीब 4 घंटे तक याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई दलीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि क्या शादी जैसी सामाजिक संस्था में दो अलग जेंडर वाले पार्टनर्स का होना जरूरी है?
तीसरे दिन की सुनवाई खत्म करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे बहस करने के लिए 13 वकीलों के नाम गिनाए और कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से उनके वकीलों को बहस हर हाल में सोमवार तक खत्म करनी होगी. इसके लिए वे आपस में चर्चा करके समय का बंटवारा कर लें. सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता शीर्ष अदालत में केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे हैं. जबकि याचिकाकर्ताओं की पैरवी वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी समेत अन्य कई वकील कर रहे हैं.
एक महीने पहले दुनिया को यह क्यों बताना चाहिए कि हम शादी करने जा रहे: सिंघवी
याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के समक्ष अपनी दलील में कहा, ‘यह केवल मेरा (याचिकाकर्ताओं का) फैसला होगा. यह मेरे दिल का फैसला होगा. मैं किसके साथ और कितने समय तक रहूंगा, यह मेरा अधिकार है. मुझे एक महीने पहले दुनिया को यह क्यों बताना चाहिए कि हम शादी करने जा रहे हैं? स्पेशल मैरिज एक्ट का यह प्रावधान असंवैधानिक है, क्योंकि शादी की औपचारिकताओं से पहले आप मेरी निजता का उल्लंघन कर रहे हैं. मुझे यह कह रहे हैं कि मैं अपने इरादे जाहिर करके विरोध को न्योता दूं.’
वकील केवी विश्वनाथन ने कहा- शादी को वंश वृद्धि के नजरिए से देखना पूरी तरह गलत
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक अन्य वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच के सामने अपनी दलील में कहा, ‘शादी को वंश वृद्धि के नजरिए से देखना पूरी तरह गलत है. वे कहते हैं कि आप लोग (समान लिंग वाले जोड़े) वंश वृद्धि नहीं कर सकते. क्या यह शादी को कानूनी दर्जा नहीं दिए जाने के पीछे वाजिब वजह हो सकती है? क्या बूढ़े लोग शादी नहीं करते हैं? क्या जो लोग बच्चे नहीं पैदा कर सकते हैं, उन्हें शादी की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए?’
केंद्र सरकार ने इस मामले में सुनवाई के पहले दिन 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के सामने दलील दी थी कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग एलीट अर्बन क्लास की सोच है. इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील राजू रामचंद्रन ने कहा था- ‘वर्ष 1956 में जस्टिस विवियन बोस ने ऐतिहासिक फैसला दिया था और कहा था कि संविधान आम आदमी के लिए है, गरीब के लिए है, व्यापारी के लिए है, कसाई के लिए है, ब्रेड बनाने वाले के लिए और मोमबत्ती बनाने वाले के लिए भी है. जिन लोगों के लिए मैं आज कोर्ट में मौजूद हूं, उनके लिए आज मुझे यहां इसका जिक्र करना महत्वपूर्ण लग रहा है.’
क्या शादी के लिए अलग-अलग जेंडर के पार्टनर का साथ होना जरूरी है: चीफ जस्टिस
उन्होंने आगे कहा था, ‘एक याचिकाकर्ता काजल हैं, जो पंजाब के एक शहर की रहने वाली दलित महिला हैं. दूसरी याचिकाकर्ता भावना हैं, जो हरियाणा के बहादुरगढ़ की रहने वाली हैं और OBC समुदाय से आती हैं. भावना चंडीगढ़ में अकाउंटेंट हैं और काजल एक बेकरी में असिस्टेंट हैं. इन याचिकाकर्ताओं की मौजूदगी इस धारणा को खारिज करती है कि सेम सेक्स मैरिज की वैधता की सोच शहरी एलीट क्लास की है.’ चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने पर कहा, ‘अब हमें शादी को लेकर बदलती धारणाओं को दोबारा परिभाषित करना होगा, क्योंकि सवाल यह है कि क्या शादी के लिए दो ऐसे पार्टनर का साथ होना जरूरी है, जो अलग-अलग जेंडर के हों? यहां कानून यह मानने लायक हो गया है कि शादी के लिए दो अलग-अलग जेंडर हो सकते हैं, लेकिन यह शादी की परिभाषा के लिए जरूरी नहीं है.’