Sunday, September 22, 2024
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मध्य प्रदेश का टाइगर स्टेट का दर्जा खतरे में, शिकार और बेमौत मारे गए शेरो से मुश्किल में टाइगर रिजर्व सेंचुरी 

भोपाल: मध्य प्रदेश को शेरों का प्रदेश भी कहा जाता है। बालाघाट में कान्हा नेशनल पार्क और रीवा में सफ़ेद शेर विश्व प्रसिद्ध है। दुनिया में शेरो की चर्चा चलते ही मध्यप्रदेश को प्राप्त टाइगर स्टेट का स्टेटस सुर्खियों में रहता है। लेकिन अब यह दर्जा छिन सकता है। दरअसल प्रदेश में शेरो की घटती संख्या से यह खिताब खतरे में है। भारत के ‘बाघों के प्रदेश का दर्जा बनाए रखने की अब मध्यप्रदेश को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश में 2022 की गणना के अनुसार 34 बाघों की मौत हुई है। देश में बाघों की आबादी के मामले में कर्नाटक दूसरे स्थान पर है और गणना के अनुसार यहां 15 बाघों की मौत हुई है। बाघों की मौत की आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। देश की बाघ गणना के लिए सर्वेक्षण वर्ष में बाघों की मौत की सूचना दी गई है। हालांकि इसके परिणाम 2023 में घोषित किए जाएंगे। 

वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक यह एक रहस्य है कि क्यों मध्य प्रदेश में बाघों की मौत कर्नाटक की तुलना में अधिक दर्ज की गई है, हालांकि दोनों राज्यों में 2018 की गणना के अनुसार बाघों की संख्या लगभग समान थी। उनके मुताबिक वर्ष 2018 की गणना के अनुसार कर्नाटक में 524 बाघ थे, जिसकी भारत के ‘बाघ प्रदेश’ के दर्जे के लिए मध्य प्रदेश (526) के साथ प्रतिस्पर्धा है। 

राष्ट्रीय बाघ गणना हर चार साल में एक बार की जाती है। हाल में अखिल भारतीय बाघ आकलन (एआईटीई) 2022 में किया गया था। इसकी रिपोर्ट इस साल जल्द जारी होने की उम्मीद है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की वेबसाइट पर अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश ने 2022 में 34 बाघों को गंवा दिया, जबकि बाघ प्रदेश की स्थिति के लिए इसके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कर्नाटक राज्य में 15 बाघों की मौत हुई है। हालांकि रिपोर्ट में इन मौतों के कारणों का उल्लेख नहीं किया गया था। बाघ संरक्षण को मजबूत करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत गठित एनटीसीए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।  एनटीसीए वेबसाइट के अनुसार, 2022 के दौरान मध्य प्रदेश में दर्ज 34 बाघों में से सबसे अधिक बाघों की मौत बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य में इुई, जहां 12 महीने की अवधि में नौ बाघों की मौत हुई, इसके बाद पेंच (पांच) और कान्हा (चार) का स्थान रहा।

एनटीसीए की वेबसाइट के अनुसार, पिछले वर्ष भारत में कुल 117 बाघों की मौत हुई थी.इन दो राज्यों में बाघों की मौत के आंकड़ों में अत्यधिक अंतर के बारे में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जे. एस. चौहान के मुताबिक हमारे यहां बाघों की संख्या अधिक है, यह हमारे लिए एक रहस्य है कि वहां कर्नाटक बाघों की कम मौत की सूचना क्यों दी गई जबकि दोनों राज्यों में बाघों की संख्या लगभग समान है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) चौहान का कहना है कि बाघों की औसत उम्र 12 से 18 साल होती है। उन्होंने बताया कि अगर अधिकतम उम्र के मानदंड को ध्यान में रखा जाए तो सालाना लगभग 40 मौतों को प्राकृतिक माना जाना चाहिए क्योंकि राज्य में 2018 में किए गए अंतिम अनुमान में 526 बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश में उस वर्ष देश में दर्ज 127 बाघों में से 42 बाघों की मौत हुई थी.उन्होंने कहा, मैं अन्य राज्यों के बारे में नहीं जानता, लेकिन मध्य प्रदेश में हर बाघ की मौत की सूचना दर्ज की जाती है।

 

हम बाघ की मौत के हर मामले की जांच करते हैं और कुछ संदिग्ध पाए जाने पर कानूनी कदम उठाते हैं। बाघों के जन्म दर के बारे में उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में सालाना लगभग 250 शावक पैदा होते हैं, जहां छह बाघ अभयारण्य – कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, पन्ना और संजय-डुबरी हैं। चौहान ने कहा कि कभी-कभी बाघ प्राकृतिक रूप से जंगलों और गुफाओं के अंदर मर जाते हैं जिनकी पहचान नहीं हो पाती है। मध्य प्रदेश में बाघों की मौत की अत्यधिक संख्या के बारे में कई लोगो का मानना है कि अवैध शिकार और रख – रखाव में लापरवाही के चलते बाघों की संख्या कम हुई है। कई वन्यजीव कार्यकर्ता मानते है कि राज्य में पिछले एक दशक से बाघों की प्राकृतिक और अप्राकृतिक मौत के मामले सबसे अधिक संदिग्ध रहे हैं। 

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