सुप्रीम कोर्ट की नजर में नेताओं की जुबानी जंग और बोल वचन जायज, एक फैसले में कहा ‘बोलने की आजादी पर नहीं लगा सकते रोक, मंत्रियों की बेतुकी बयानबाजी पर सुप्रीम फ़रमान चर्चा में

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दिल्ली : नेताओं और मंत्रियो की जुबानी जंग, बगैर सिर – पैर की बयानबाजी और बिगड़े बोल पर रोक लगाने वाली एक याचिका में कोर्ट ने मंत्रियों की बेतुकी बयानबाजी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोलने की आजादी पर रोक नहीं लगा सकते हैं। इसके साथ ही आपराधिक मुकदमो पर मंत्रियों और बड़े पद पर बैठे लोगों की बेतुकी बयानबाजी पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुना दिया है। अदालत की संविधान बेंच ने कहा कि मंत्री का बयान सरकार का बयान नहीं कहा जा सकता। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बोलने की आजादी हर किसी नागरिक को हासिल है। उस पर संविधान के परे जाकर रोक नहीं लगाई जा सकती। बेंच ने कहा कि अगर मंत्री के बयान से केस पर असर पड़ा हो तो कानून का सहारा लिया जा सकता है।  

पिछले साल हुई सुनवाई में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और बी वी नागरत्ना की बेंच ने कई नेताओं के बयानों को देखा सुना था। आज जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम ने 4 जजों की ओर से फैसला पढ़ा गया, जबकि जस्टिस नागरत्ना ने बाकी जजों से कुछ बिंदुओं पर असहमति जताते हुए अलग से फैसला पढ़ा।  

कोर्ट ने कहा कि, नहीं लगा सकते अतिरिक्त पाबंदी। बताते है कि, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले में 6 सवाल उठाए थे। फैसले में उनका एक-एक कर जवाब दिया गया। बेंच ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में लिखी गई पाबंदियों से अलग बोलने की स्वतंत्रता पर कोई और पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और 21 जीवन का अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का हनन होने पर सरकार के अलावा निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट दरवाजा खटखटाया जा सकता है. 4 जजों ने यह भी माना है कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को सुरक्षा दे। 

कोर्ट ने साफ़तौर पर कहा कि ‘मंत्री का निजी बयान सरकार का बयान नहीं हो सकता। मंत्रियों के बयान के मसले पर फैसले में बेंच ने कहा है कि मंत्री के बयान को सरकार का बयान नहीं कह सकते। सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत मंत्री के निजी बयान पर लागू नहीं हो सकता, लेकिन अगर किसी नागरिक के खिलाफ मंत्री के बयान से मुकदमे पर असर पड़ा हो या प्रशासन ने कार्रवाई की हो तो कानून का सहारा लिया जा सकता है। 

बेंच की सदस्य जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत के इस फैसले से सहमति जताई कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संविधान से परे नियंत्रण नहीं लगाया जा सकता, लेकिन उनका मानना था कि निजी व्यक्तियों के खिलाफ अनुच्छेद 19 या 21 के हनन का मुकदमा नहीं हो सकता। उन्होंने संसद से अनुरोध किया कि वह बड़े पद पर बैठे लोगों की बेवजह बयानबाजी के मसले पर विचार कर नियम बनाए जाये।  उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक पार्टियों को अपने सदस्यों के लिए आचरण कोड बनाना चाहिए।  

दरअसल समाजवादी नेता आजम खान के उत्तर प्रदेश में दिए गए एक बयान के बाद विवाद शुरू हुआ था। मामला इतना बढ़ा कि याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई। बताते है कि 30 जुलाई, 2016 को यूपी के बुलंदशहर में नेशनल हाईवे पर मां-बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार मामले में यूपी के तत्कालीन मंत्री आजम खान का बेतुका बयान सामने आया था। आजम खान ने पीड़ित पक्ष के आरोप को राजनीतिक साजिश बताया था। इसकी कड़ी आलोचना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जाहिर की थी। हालांकि उन्होंने पीड़िता से अपने बयानों पर माफी मांगी थी, लेकिन मंत्रियों के बयानों पर रोक का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहा।