प्रेस – मीडिया की आजादी को लेकर बुरी फंसी छत्तीसगढ़ सरकार की अदालत में 9 जनवरी को ”अग्नि परीक्षा” कोर्ट सख़्त, देखे ऑर्डरशीट

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बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ पत्रकार सुनील नामदेव को न्यूज़ कवरेज से रोके जाने मामले में हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी। अदालत ने मामले की गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए सरकार को सख़्त निर्देश दिए है। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के उत्पीड़न की घटनाओं के आम होने के बाद पत्रकारों को अपना मूल कार्य छोड़ इन दिनों कोर्ट -कचहरी के चक्कर काटने पड़ रहे है। प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा जिला बाकी हो, जहाँ पत्रकारों को छत्तीसगढ़ पुलिस और उसकी अन्य सरकारी एजेंसियों ने प्रताड़ित ना किया हो।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा चुनाव में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने का एलान किया था। ताकि प्रेस – मीडिया की आजादी को बरक़रार रखा जाए। लेकिन उनकी अगुवाई वाली सरकार में अरबो का भ्रष्टाचार होने लगा। मुख्यमंत्री के करीबी ही सत्ता के घिनौने खेल में शामिल हो गए। इसमें मुख्यमंत्री कार्यालय की भूमिका को केंद्रीय जाँच एजेंसियों ने भी उजागर किया है।

उधर सरकारी संरक्षण में पनपते भ्रष्टाचार की खबरों से भयभीत मुख्यमंत्री और उनकी टोली ने पत्रकारों को ही ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री बघेल ने सरकार गठन के 4 सालो में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने के बजाय पत्रकारों का दमन शुरू कर दिया। प्रदेश में पत्रकार प्रजाति लुप्त होने की कगार में है, जबकि जनसम्पर्क विभाग से मिल रही सरकारी रेवड़ी के चलते प्रेस – मीडिया कर्मियों का एक बड़ा वर्ग सरकार के दावे वाले लोककल्याण के गुणगान में जुटा है।  

 छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की करीबी डिप्टी कलेक्टर और मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ उपसचिव सौम्या चौरसिया के काले कारनामो की खबरे प्रदेश के प्रेस – मीडिया जगत से नदारद है। यहाँ सरकारी भ्रष्टाचार की खबरों के प्रकाशन और प्रसारण पर अघोषित रोक लगी है। सरकारी योजनाओं में व्यापक भ्रष्टाचार के चलते खबरनवीसों को रोजाना एक से बढ़कर एक खबरे हाथ लग रही है। इन खबरों की सच्चाई से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की हकीकत से आम जनता भी रूबरू हो रही है।

पत्रकारों की खबरों की विश्वसनीयता और तथ्यपरक रिपोर्टिंग से जहाँ मुख्यमंत्री बघेल और उनकी टोली की नींद हराम है, वही पत्रकारों के सिर पर गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही है। उन्हें झूठे मामलो में फंसाकर जेलों में ठूंसा जा रहा है। प्रदेश भर में सैकड़ो पत्रकार खौंफ के वातावरण में है। वे क़ानूनी उलझनों के बीच अपने मोर्चे पर डटे है। पीड़ित पत्रकारों का ज्यादातर वक्त पुलिस थानों और कोर्ट कचहरी में चप्पल घिसने में व्यतीत हो रहा है। 

उधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी टोली सौम्या चौरसिया की रिपोर्टिंग से रोकने के लिए पत्रकारों को बंधक बना रही है। उन्हें सरकारी परिसरों, कलेक्टर कार्यालय परिसर और अदालत परिसर में नजरबंद किया जा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार सुनील नामदेव को न्यूज़ कवरेज से रोकने के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस की तैनाती सुर्ख़ियों में है। उनके हाथों में माइक ID थामते ही पुलिस अधिकारियों की गैर कानूनी घेराबंदी शुरू हो जाती है। उन्हें 3 एडिशनल SP, 6 DSP, दर्जन भर इंस्पेक्टर और सैकड़ो पुलिस कर्मी घेर लेते है। उन्हें तब तक नजरबन्द रखा जाता है, जब तक की मुख्यमंत्री बघेल की करीबी उपसचिव सौम्या चौरसिया और उसके गिरोह के सदस्य अदालत परिसर में मौजूद रहते है। उनके जेल जाते ही छत्तीसगढ़ पुलिस पत्रकार नामदेव को रिहा कर देती है। 

छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ पत्रकार सुनील नामदेव की पुलिसिया घेराबंदी के वीडियो भी वायरल हो रहे है। प्रदेश की आम जनता अदालत परिसर में ही क़ानूनी की उड़ती धज्जियाँ देखकर हैरत में है। संविधान की रक्षा की कसम खाकर छत्तीसगढ़ कैडर में शामिल अखिल भारतीय सेवाओं के कुछ अफसरों के निर्देश पर कायदे – कानूनों को छत्तीसगढ़ शासन ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। नतीजतन वरिष्ठ पत्रकार को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। 

कानून के जानकार और अधिवक्ता सुमित सिंह के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार ने हाईकोर्ट में पत्रकार नामदेव को बंधक बनाने और नजरबन्द किये जाने की घटना से ही इंकार किया है। उनके मुताबिक राज्य शासन की और से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता को इस मामले में हलफनामा पेश करने के निर्देश दिए गए है। जबकि याचिका में पक्षकार बनाए गए जिम्मेदार अधिकारियों को दो हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए गए है। सुमित सिंह ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए 9 जनवरी को अदालत में पुनः इस मामले की सुनवाई होगी।