छत्तीसगढ़ कैडर के IAS अफसरों की लूटपाट से परेशान केंद्र सरकार ने फंड का भुगतान लिया अपने हाथो, ‘प्रसाद’ योजना से शुरुआत, केंद्रीय योजनाओं में भ्रष्टाचार की CBI जांच से पहले फंड कंट्रोल का झटका

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दिल्ली : केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ में लोकहित की योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार और गुणवत्ता विहीन कार्यो को लेकर बड़ा झटका दिया है। केंद्र सरकार अब फंड कंट्रोल नीति लागू कर केंद्रीय आर्थिक मदद को नौकरशाहों और नेताओं की तिजोरी में जाने से रोकने की मुहिम में जुट गया है। यह रकम अब डिजिटल माध्यमों से सही व्यक्ति के हाथों में पहुंचेगी। इससे कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार थमेगा जबकि सरकारी रकम के बेहतर इस्तेमाल से जनता को लाभ होगा।

राज्य में IT – ED के छापों में नौकरशाहों के ठिकानों से करोड़ो की काली कमाई सामने आने के बाद भारत सरकार सतर्क हो गई है। सूत्र बताते है कि केंद्र सरकार अखिल भारतीय सेवाओं के छत्तीसगढ़ में तैनात अफसरों की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच CBI के हवाले करने पर विचार कर रही है। 

केंद्र ने एक ताजा फैसले में छत्तीसगढ़ की धार्मिक योजना के 45 करोड़ रूपए के भुगतान के तौर – तरीके पर डिजिटल अटैक किया है।  धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने वाली प्रसाद योजना में छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ का चयन किया गया था। इसके लिए लगभग 45 करोड़ रुपए का फंड जारी कर विकास कार्यों की रूपरेखा तैयार की गई थी।

लेकिन अब केंद्र ने फंड का कंट्रोल राज्य सरकार के बजाय अपने हाथ में ले लिया है। राज्य सरकार इस योजना की सिर्फ वर्क प्रोग्रेस रिपोर्ट देगी। लेकिन ठेकेदार को केंद्र सरकार अपनी एजेंसी के माध्यम से भुगतान करेगी।

भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के तहत वर्ष 2014-2015 में पीआरएएसएडी (प्रसाद) योजना शुरू की गई थी। इसके तहत  ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्द्धन अभियान’ चलाया गया था। इससे राज्यों में धार्मिक पर्यटन अनुभव को समृद्ध करने के लिए पूरे भारत में तीर्थ स्थलों को विकसित करने और पहचान करने में मदद मिली थी।

ऐसी ही कई लोक कल्याणकारी प्रदेश में संचालित हो रही है। इनमे से एक जल – जीवन मिशन भी है। इसके तहत करीब 22 हजार करोड़ रूपए खर्च कर लोगो के घर – घर तक वर्ष  2024 तक जल पहुंचाने का लक्ष्य है। यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।

इसके शुरुआती दौर में ही कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार हावी हो गया था। नतीजतन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को करीब 10 हजार करोड़ के टेंडर – निविदा रद्द करना पड़ा था।

 हालांकि उनके निर्देशों के बावजूद PHE में पदस्थ अफसर भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी में शामिल रहे। इस मामले में विभागीय मंत्री की कार्यप्रणाली ने भी आग में घी का काम किया। फिलहाल, दर्जनों ऐसी योजनाएं है जो भ्रष्टाचार के चलते दम तोड़ रही है। ऐसे में आर्थिक भुगतान के तौर तरीको पर डिजीटल अटैक कारगर साबित हो रहा है।