1 हज़ार करोड़ के समाज कल्याण विभाग घोटाले से बचाने के लिए पूर्व चीफ सेक्रेटरी के साथ  500 करोड़ की डील, पूर्व मुख्यमंत्री भूपे और डील, जानिए, विवेक ढांड के काले कारनामों से आखिर क्यों मुँह फेर रहे राजनैतिक दिग्गज….. 

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दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ के पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लंबित 1 हज़ार करोड़ का समाज कल्याण घोटाला एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। इस बार घोटाले की तह में अंजाम दी गई, एक बड़ी डील सामने आ रही है। सुप्रीम कोर्ट से मामले को रफा-दफा करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपे और पूर्व चीफ सेक्रेटरी ढांड के बीच 500 करोड़ की डील हुई थी। राजनैतिक और अदालती गलियारों से मिली जानकारी के मुताबिक डील के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल ने सरकारी विधिक सलाहकारों को ढांड के प्रति नरम रूख अपनाने और घोटाले से जुड़े दस्तावेजों को रफा-दफा करने के निर्देश दिए थे। सूत्र तस्दीक करते है कि समाज कल्याण घोटाले की सीबीआई से जांच के बिलासपुर हाईकोर्ट के फरमान को चुनौती देने वाली याचिका में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से कमजोर पैरवी और कई बोगस तथ्य पेश किये गए थे। ऐसे तथ्यों के साथ बघेल सरकार ने ढांड को बचाने के लिए कई गैर-जरुरी और असंगत दस्तावेज पेश किये थे। भूपे से उपकृत होने वाले विधिक सलाहकारों ने कोर्ट में समाज कल्याण विभाग में किसी भी घोटाले से इंकार किया था।

यह भी बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ शासन के कमजोर पक्ष के चलते मामला अदालत में लटक गया था। लेकिन बीजेपी सरकार के गठन होने से पूर्व ढांड ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के एकतरफा पक्ष को सुप्रीम कोर्ट में जोर-शोर से रखकर क़ानूनी राहत प्राप्त कर ली है। छत्तीसगढ़ शासन की हीला-हवाली का यह मामला इन दिनों अदालती और कांग्रेसी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया जाता है कि कांग्रेस राज में राज्य शासन का पक्ष अदालत के समक्ष देख सुन कर और पूरी तरह से वाकिफ होने के बाद यह डील पूरी हुई थी। बताते है कि पैरवी ख़त्म होने के 2 घंटे के भीतर ही दिल्ली की एक होटल में 500 करोड़ का आदान-प्रदान किया गया था।

सूत्रों के मुताबिक यह रकम भूपे के खासम-खास कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल के हाथों में सौंपी गई थी। हालांकि बीजेपी सरकार के शपथ ग्रहण होते ही रामगोपाल प्रदेश से नौ दो ग्यारह बताये जाते है। उनकी तलाश कांग्रेसी नेताओं के अलावा ED, सीबीआई और राज्य के EOW को भी है। इस शख्स ने एक हज़ार करोड़ के समाज कल्याण विभाग घोटाले को कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के साथ मिलकर रफा-दफा कर दिया है।

इस घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश हाईकोर्ट बिलासपुर ने की थी। सुप्रीम कोर्ट में लंबित इस प्रकरण को तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल के साथ लंबी डील के बाद रफा-दफा किये जाने की प्रामाणिक जानकारियां सामने आ रही है। अदालती गलियारों से मिली जानकारी के मुताबिक प्रत्येक पेशी में लाखों का भुगतान प्राप्त कर उपकृत होने वाले कांग्रेस सरकार के विधिक सलाहकारों ने सुप्रीम कोर्ट में कई जरुरी दस्तावेजों और असंगत साक्ष्यों को पेश कर समाज कल्याण विभाग में किसी भी घोटाले से साफ इंकार किया है। दिलचस्प बात यह है कि बगैर कोई विधिक जांच किये पूर्व मुख्यमंत्री भूपे की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तमाम दस्तावेज पेश किये थे।

यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में ऐसे दस्तावेज पेश करने के लिए विधि विभाग में तय प्रक्रिया भी पूरी नहीं कराई गई थी। सूत्रों के मुताबिक डील को अंजाम देने के लिए कई क़ानूनी खामियों को जानबूझ कर ढांड के हितों में कारगर बनाया गया था। भूपे सरकार ने डील के बाद रेरा चेयरमैन ढांड को सक्रिय करते हुए नवाचार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था. बताते हैं कि कुछ जिम्मेदार चुनिंदा कानून के जानकारों ने घोटाले के तथ्यों और कई प्रामाणिक दस्तावेजों को अदालत में पेश करने में कोई रूचि नहीं दिखाई थी। जबकी डील के बाद तत्कालीन अधिकारियों ने आरोपी ढांड के निर्देश पर अदालत की आँखों में धूल झोंकना शुरू कर दिया था।

हाईकोर्ट के निर्देश पर जिन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच करने के निर्देश दिए गए थे, उन्ही में से एक एडिशनल डायरेक्टर पंकज वर्मा को अदालती कार्यवाही के लिए इस केस का ओएसडी बना दिया गया था, कानूनी कार्यवाही प्रभावित होने लगी थी। ओएसडी के नाते पंकज वर्मा ने ढांड के पक्ष में हलफनामा देते हुए कोर्ट को गुमराह किया करते थे। छत्तीसगढ़ में गरीबों और जरुरतमंदों के लिए केंद्र और राज्य सरकार सालाना अरबों खर्च करती है। बताते है कि ढांड की अजीबों-गरीब कार्यप्रणाली के चलते सरकारी तिजोरी को दिन-रात लूटा गया था। एक मुख्य अधिकारी की गाड़ी के लिए वाहन के व्यय के नाम पर 31 लाख रुपए सरकारी खाते से निकाल लिया गया था।

इस अफसर के करीबी संजीव रेड्डी नामक एक गुमनाम डॉक्टर के नाम एकमुश्त 24 लाख का भुगतान किया गया था। डॉ. संजीव रेड्डी कौन है, जांच में अफसरों ने चुप्पी साध ली थी। गौरतलब है कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने हाईकोर्ट में 500 पन्नों की रिट सौंपी थी। उन्होंने इस रिट में लगभग 200 करोड़ रुपए की गड़बड़ी स्वीकार की थी। जांच रिपोर्ट में उन्होंने हाईकोर्ट को बताया था कि जिस संस्थान में 21 लोगों को अधिकारी, कर्मचारी स्टाफ बताया गया था। वहां वास्तव में कार्य स्थल पर एक मात्र कर्मचारी कार्यरत पाया गया था। 

रिपोर्ट में सामने आया था कि सरकार को चूना लगाने के लिए विभाग के अफसरों ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी थी। विभिन्न केंद्रों में हर साल एक ही मशीन को बार-बार खरीदा गया था, इसके एवज में 30 से 35 लाख का सालाना भुगतान किया जाता रहा। तत्कालीन मुख्य सचिव ढांड के निर्देश पर विभिन्न केंद्रों में कौन सी मशीनें खरीदी गई और उसका कहाँ उपयोग किया गया ? इसका उल्लेख प्रतिवेदन में नहीं किया गया था। छत्तीसगढ़ में समाज कल्याण विभाग में हुए 1000 करोड़ के घोटाले में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह को फर्स्ट पार्टी बनाकर शेष अन्य 12 लोगों के खिलाफ एक याचिका बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता ने भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, सरकारी दस्तावेजों में कूटरचना और आपराधिक षड्यंत्र को लेकर ढांड समेत अन्य नौकरशाहों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे। सुनवाई के दौरान घोटाले से जुड़े दस्तावेजों का अवलोकन भी अदालत ने किया था। हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने 7 दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करने का फैसला सुनाया था। बताया जाता है कि अदालती फैसले के फ़ौरन बाद हरकत में आये रेरा चेयरमैन ने अपने ही दफ्तर में कुछ बिल्डरों को बुलावा भेजा था। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और रेरा चेयरमैन के बीच हुई एक महत्वपूर्ण बैठक बड़ी डील में बदल गई थी। 

कानून के जानकारों के मुताबिक बिलासपुर हाई कोर्ट में जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव की कोर्ट में याचिकाकर्ता ने रिट लगाई थी। केस की गंभीरता को देखते जस्टिस श्रीवास्तव ने उसे तत्कालीन चीफ जस्टिस अजय त्रिपाठी को भेज दिया था। चीफ जस्टिस और जस्टिस प्रशांत मिश्रा के डबल बेंच ने इस रिट याचिका को पीआईएल में बदलकर तत्कालीन मुख्य सचिव से जांच प्रतिवेदन माँगा था। लेकिन, याचिकाकर्ता ने सीएस की बजाए विभागीय सचिव से जांच कराने पर आपत्ति जाहिर की थी। इसके बाद सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सख्त होते हुए सीएस से जांच करके रिपोर्ट सौंपे जाने के लिए निर्देशित किया था। प्रशासनिक मामलों के जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद प्रकरण की जांच करने के लिए तत्कालीन जीएडी सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह को जांच अधिकारी बनाया गया था। राज्य श्रोत निःशक्त जन संस्थान दिव्यांगों के कल्याण के लिए बनाया गया एक फर्जी एनजीओ था। दस्तावेज बताते हैं कि, यह काग़ज़ी था, जिसे केंद्र सरकार से सीधे अनुदान मिला करता था।

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल और पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड के बीच ‘गुरु और चेला’ जैसे संबंध बताये जाते है। कहा जाता है कि जब पूर्व मुख्यमंत्री बघेल रायपुर के एक कॉलेज में अध्ययनरत थे, तब ढांड उस कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में पदस्थ थे। राजनीति के जानकार यह भी तस्दीक कर रहे है कि गुरु और चेला के संबंध सिर्फ सार्वजनिक जीवन में दिखावा मात्र है, असलियत में दोनों की कार्यप्रणाली ‘बाप बड़ा ना भईया, सबसे बड़ा रुपइया’ की तर्ज पर मेल खाती है। यह भी बताया जाता है कि बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद नान घोटाले के मुख्य आरोपी अनिल टुटेजा को कांग्रेस सरकार का सुपर सीएम बनवाने में ढांड की महत्वपूर्ण भूमिका थी। ढांड के निर्देश पर ही आरोपी होने के बावजूद अनिल टुटेजा के एक पत्र को अग्रेशित कर तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल ने बीजेपी के खिलाफ हमला बोला था।

टुटेजा के इस पत्र के आधार पर भूपे सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को EOW के जरिये घेरने का असफल प्रयास किया था। राज्य में बीजेपी सरकार के गठन के बाद पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही को लेकर नौकरशाही में चर्चा शुरू हो गई है। लेकिन रायपुर से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के गलियारे में छाई सुस्ती से ढांड के हौसले बुलंद बताये जा रहे है। बताया जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के विधिक सलाहकारों ने सुप्रीम कोर्ट में समाज कल्याण विभाग घोटाले की जांच उलझा दी है।

ऐसे में बिलासपुर हाईकोर्ट की मंशानुरूप प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट में नए सिरे से चुनौती दिए जाने को लेकर माथापच्ची का दौर जारी है। यह देखना गौरतलब होगा कि राज्य के मुख्य सचिव, रेरा चेयरमैन और नवाचार आयोग के चेयरमैन जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रह चुके ढांड के तमाम घोटालों की जांच को लेकर मौजूदा बीजेपी सरकार क्या रुख अपनाती है ?

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