
रायपुर: आख़िरकार छत्तीसगढ़ सरकार ने उन 29 आबकारी अधिकारियों को निलंबित कर दिया है, जिन्होंने शराब घोटाले को अंजाम देने के लिए अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग किया था। इन अधिकारियों के ख़िलाफ़ पिछले हफ्ते ही ACB-EOW ने अदालत में चार्जशीट सौंपी थी।
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छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में ED ने 2200 करोड़ के वारे-न्यारे के पुख़्ता सबूत अदालत में पेश किए थे, जबकि ख़बर आ रही है कि ACB-EOW ने अपनी चार्जशीट में सरकारी तिजोरी पर 3200 करोड़ पर हाथ साफ़ करने के सबूत अदालत के समक्ष रखे हैं। सूत्र यह भी तस्दीक करते हैं कि आबकारी अधिकारियों ने घोटाले को अंजाम देने के एवज में बटोरे कमीशन की 100 करोड़ से ज़्यादा की रक़म पर हाथ साफ़ किया था।
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प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक करते हैं कि छत्तीसगढ़ में ACB-EOW मुख्यमंत्री के थाने के नाम से जाना-पहचाना जाता है। यह विभाग सीधे तौर पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर कार्य करता है, जबकि मुख्य सचिव ACB-EOW के पदेन चीफ़ होते हैं। जानकारों के मुताबिक प्रदेश के ACB-EOW की कार्रवाई सत्ता प्रमुख के दिशा-निर्देशों के तहत ही क्रियान्वित होती है। वे बताते हैं कि शराब घोटाले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच के लिए ACB-EOW को फ्री हैंड दिया जाना चाहिए, अन्यथा घोटालों के विभिन्न मामलों में भी आरोपियों को अनुचित संरक्षण का लाभ प्राप्त होता रहेगा।

हुज़ूर, कार्रवाई करते-करते आख़िर क्यों इतनी देर कर दी — छत्तीसगढ़ में घोटालों के इतिहास में 3200 करोड़ का शराब घोटाला खूब सुर्खियाँ बटोर रहा है। इस मामले में आरोपी अधिकारियों के ख़िलाफ़ बगैर गिरफ़्तारी चालान पेश करने के मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। घोटालेबाज़ों पर जारी सरकारी कृपा को राज्य सरकार की मंशा से जोड़ कर देखा जा रहा है। घोटालेबाज़ अधिकारियों के प्रति राज्य सरकार का रवैया शुरुआती दौर से ही नरम आंका जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि बड़े पैमाने पर अंजाम दिए गए शराब घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल को लगभग क्लीन चीट दे दी गई है। आबकारी घोटाले में शामिल अधिकारियों ने पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की भूमिका और दिशा-निर्देशों को लेकर अपने बयानों में कोई तथ्य दर्ज नहीं कराया है। कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने एक बयान जारी कर शराब घोटाले को काल्पनिक करार दिया है।
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जानकार तस्दीक करते हैं कि घोटालेबाज़ अधिकारियों के प्रति राज्य सरकार के नरम रुख के चलते पारदर्शितापूर्ण जांच अभी भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। राज्य सरकार द्वारा जारी जांच पर सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश की बीजेपी सरकार ने दागी अधिकारियों के निलंबन का फैसला उस वक़्त लिया जब पार्टी के ही कई नेता सरकार की ही मंशा पर सवाल उठाने लगे थे। वरिष्ठ बीजेपी नेता नरेश चंद्र गुप्ता ने आबकारी विभाग के भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों पर ACB-EOW के द्वारा चालान पेश करने के दौरान अपनी ही सरकार के प्रति कड़े तेवर दिखाए थे। उन्होंने साफ़ किया था कि शराब घोटाले की तह तक जाने और तमाम आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई के लिए बीजेपी ने सदन से लेकर सड़कों तक अपनी आवाज़ बुलंद की थी। उन्होंने दोहराया था कि शराब घोटाले की जांच भी सीबीआई के हवाले की जानी चाहिए, अन्यथा घोटाले का मास्टरमाइंड पूर्व मुख्यमंत्री अपने गुनाहों से बच निकलेगा। वरिष्ठ बीजेपी नेता ने इस मामले को लेकर ट्वीट भी किया था।

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ACB-EOW के चालान पेश करने के हफ्ते भर बाद अब जाकर जारी हुआ निलंबन आदेश चर्चा में है। आमतौर पर सरकारी सेवकों के लिए लागू सिविल सेवा आचरण संहिता में साफ़ किया गया है कि किसी भी सरकारी सेवक के ख़िलाफ़ चार्जशीट जारी होते ही उसका निलंबन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

इस घोटाले में आरोपी अधिकारियों के ख़िलाफ़ चालान पेश होने के हफ्ते भर उपरांत जारी निलंबन आदेश विभागीय लापरवाही और आरोपियों को संरक्षण देने का पर्याप्त आधार माना जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा निलंबन आदेश लेटलतीफ़ी से जारी किए जाने के मामले को अब राजनीतिक दबाव से भी जोड़ कर देखा जाने लगा है। फिलहाल यह मामला न केवल राजनीतिक बल्कि प्रशासनिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।