पटना : इतिहास बताता हैं कि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था | भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर चलते हुए सारनाथ जाने के क्रम में सम्राट अशोक सासाराम की इसी पहाड़ी के पास रुके थे | जानकार बताते है कि इसे चंदन पहाड़ी कहा जाता है | यहाँ पर करीब 23 सौ साल पूर्व सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख स्थापित किया था | लेकिन आज यहां नया निर्माण हो गया है |

इस शिलालेख को चूने से रंग कर यहां मजार बना दी गई है | कुछ लोगों ने गेट में ताला भी लगा दिया है | परिसर को हरे रंग की चादर से ढक दिया गया है | इतिहासकार बताते हैं कि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था. देश और दुनिया में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने लगे तो इसी दौरान सारनाथ की ओर जाने के क्रम में सम्राट अशोक इसी पहाड़ी के पास रुके थे|

बताया जाता है कि सुरक्षा और लापरवाही के चलते इस इलाके में कई ऐतिहासिक स्मारक खतरे में है | उन पर चन्दन पहाड़ी की तर्ज पर बेजा कब्ज़ा हो रहा है | जानकार बताते है कि बुद्ध धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर सम्राट अशोक ने यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा था | इस तरह के कई लघु शिलालेख सासाराम के अलावा उत्तर प्रदेश के कैमूर और महाराष्ट्र के कुछ जिले में भी है | इसमें बौद्ध धर्म के प्रचार के संबंध में शिलालेख अंकित किया गया है |

रोहतास और कैमूर के इलाके के पहाड़ियों पर लगातार शोध कार्य करने वाले इतिहासकार डॉ. श्यामसुंदर तिवारी कहते हैं कि सासाराम के इस शिलालेख में सम्राट अशोक ने अपनी यात्रा से संबंधित जानकारी लिखी है. धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह लेख लिखा गया था. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने वर्ष 1917 में ब्रिटिश राज में ही इसे संरक्षित किया गया था लेकिन फिर कालांतर में इसकी देख-रेख नहीं हुई |

यहां हो रहे कब्जे को लेकर चंद-तन पीर मजार कमेटी के चेयरमैन जीएम अंसारी ने बताया कि जब जब चुनाव का समय आता है इस मुद्दे को कुछ लोग हवा देते हैं | यही नहीं जब कोई नया जिलाधिकारी आता है तो कुछ लोग इस मुद्दे को लेकर सामने आ जाते हैं | पहले भी कई जिलाधिकारी के समक्ष वे खुद इस मुद्दे की जानकारी दे चुके हैं | उन्होंने कहा कि कोई अतिक्रमण नहीं किया गया है | उनका दावा है कि वर्ष 1932 के कागजात उनके पास हैं | जिसके आधार पर वहां इबादत की जा रही है |

उनका कहना है कि शिलालेख को लेकर कहीं कोई बात नहीं है | सासाराम के मंडल पदाधिकारी मनोज कुमार के मुताबिक “उन्हें भी इसके बारे में सूचना मिली है,वो यहां दो साल से हैं, एक बार पत्राचार हुआ है,उनके मुताबिक एएसआई द्वारा कभी कोऑर्डिनेशन नहीं मांगा गया कि वहां शिलालेख है. जिलाधिकारी ने भी इसे गंभीरता से लिया है |

इसको लेकर बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि सासाराम की चंदन पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक के शिलालेख पर कब्जा कर मजार बना लिया गया है. स्थानीय नेताओं के साथ वो प्रदर्शन करेंगे और सरकार से मांग करेंगे कि जल्द से जल्द शिलालेखों को मुक्त करवाया जाए नहीं तो वो अनिश्चितकालीन प्रदर्शन करेंगे | बहरहाल सवाल यह है कि भारतीय पुरातत्व को संरक्षित करने वाली आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा वर्ष 1917 में ही संरक्षित इस शिलालेख के अस्तित्व को क्यों नहीं बचाया जा रहा है?