जवाब दे एमएचए और केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय – भारत सरकार |
रायपुर / न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने करीब डेढ़ माह पहले यह तथ्यपरख खबर प्रकाशित की थी कि छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष 1988 के आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता वर्दी की आढ में सुनियोजित ढंग से मनी लॉन्ड्रिंग सेंटर संचालित कर रहे है | उनका यह सेंटर ब्लैकमनी को वाइट मनी में तब्दील करने की सरकारी सेवा प्रदान करता है | यह सब कुछ एमजीएम अस्पताल के जरिए क्रियान्वित हो रहा है | न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ की इस खबर पर अब EOW की मुहर लग गई है | EOW ने जांच में पाया है कि एमजीएम ट्रस्ट 97 बैंक खातों का परिचालन करता था | देश में इतने अधिक बैंक खाते शायद ही किसी ट्रस्ट के द्वारा संचालित किए जाते होंगे | अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ के अलावा पडोसी राज्यों के कई व्यापारियों और उद्द्योगपतियों ने इस मनी लॉन्ड्रिंग सेंटर का जमकर फायदा उठाया है |
आरोपी मुकेश गुप्ता के खिलाफ चल रहे आपराधिक प्रकरणों में से एक मामले में रायपुर स्थित एमजीएम ट्रस्ट के 97 बैंक खाते उजागर हुए है | EOW के अफसर इन बैंक खातों को देखकर हैरत में है | बताया जाता है कि आयकर विभाग और भारत सरकार की आँखों में धूल झोकने के लिए इस वर्दीधारी आरोपी मुकेश गुप्ता ने पुलिस तंत्र का जमकर का दुरुपोग किया है | किसी पेशेवर अपराधी की तर्ज पर इस आरोपी ने एक के बाद एक कई बैंक अकाउंट खोले और राज्य की जनता से उस अकाउंट में लाखो रुपए जमा करवाए थे | रकम की अफरा -तफरी करने के बाद एमजीएम ट्रस्ट ने कई बैंक एकाउंट बंद कर दिए थे | गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को की गई एक शिकायत के बाद छत्तीसगढ़ सरकार हरकत में आई है | वो भी तब जब एमजीएम ट्रस्ट के काले कारनामो की पड़ताल के निर्देश पीएमओ से जारी किए गए थे | पीएमओ ने छत्तीसगढ़ शासन को एमजीएम ट्रस्ट की पूरी पड़ताल और कार्रवाई के निर्देश दिए है | एमजीएम ट्रस्ट की यह जाँच छत्तीसगढ़ गृह मंत्रालय की अनुमति के बाद EOW ने की है | जांच अभी जारी है , प्राथमिक स्तर पर ही बड़े पैमाने पर आर्थिक गोलमाल सामने आया है |
बताया जा रहा है कि पीड़ितों ,उद्द्योगपतियों , व्यापारियों ,सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों के अलावा कई पेशेवर अपराधियों ने भी सस्पेंड डीजीपी मुकेश गुप्ता को चेक के जरिए रिश्वत दी थी | रिश्वतखोरी की यह रकम दान के रूप में एमजीएम ट्रस्ट के खातों में जमा होती थी | एमजीएम ट्रस्ट रायपुर के विधानसभा मार्ग पर ” आँखों के अस्पताल ” का संचालन करता है | इस अस्पताल की देखभाल आरोपी मुकेश गुप्ता के अलावा उसके अधीनस्थ रहे कई पुलिसकर्मी करते है | हालांकि इस आरोपी के निलंबित होने के बाद उन पुलिस कर्मियों ने एमजीएम ट्रस्ट से अपनी दूरिया बना ली है | आरोपी मुकेश गुप्ता के निर्देश पर राज्यभर से होने वाली अवैध उगाही एमजीएम ट्रस्ट के खातों में जमा होती थी | वर्ष 2002 से लेकर वर्ष 2018 तक एमजीएम ट्रस्ट में करोडो की रकम जमा हुई | यह रकम दान-दाताओ ने फर्जी तौर पर जमा की और आयकर विभाग से उन्होंने धरा 80 -ए के तहत टैक्स में छूट भी प्राप्त की थी |
यह भी तथ्य उजागर हुआ है कि दान दाताओ की लंबी फेहरिस्त में ऐसे आरोपी भी थे जो काले कारोबार से जुड़े रहे | बताया जाता है कि ज्यादातर दान-दाता ऐसे है जिनके खिलाफ राज्य के किसी ना किसी थाने में गंभीर आपराधिक प्रकरण विचाराधीन रहे | यहां तक कि कई के खिलाफ विभिन्न थानों में कोई ना कोई FIR भी दर्ज रही | बताया जाता है कि शिकायतों के निपटारे के एवज में ऐसे आरोपियों से वर्दीधारी आरोपी मुकेश गुप्ता ने एमजीएम ट्रस्ट के खातों में चेक के जरिए रकम जमा करवाई थी |
EOW अब यह पता करने में जुटा है कि इतनी बड़ी संख्या में विभिन्न बैंको में खाते खोलने का मकसद आखिर क्या है | जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि ब्लैकमनी को एक खाते से दूसरे खाते में ट्रांसफर कर एक -एक कर कुछ खाते बंद कर दिए गए | यह भी तथ्य सामने आया है कि एमजीएम ट्रस्ट ने रायपुर के अलावा बिलासपुर में भी एमजीएम अस्पताल के नाम से एक और मनी लॉन्ड्रिंग सेंटर खोला है | दोनों ही स्थानों में ” आँखो के अस्पताल ” की आढ में काले धन को सफ़ेद करने का कारखाना संचालित हो रहा था | भारत सरकार के आयकर विभाग और इंफोर्स्मेंट डायरेक्टर के अलावा एमएचए और कार्मिक मंत्रालय की आँखों में धूल झोंकने के लिए एमजीएम ट्रस्ट ने कभी भी अपनी ऑडिट रिपोर्ट ना तो सार्वजनिक की और ना ही जिला प्रशासन को सौपी | नियमानुसार इस तरह के ट्रस्ट को कानूनन अपनी सालाना ऑडिट रिपोर्ट पंजीयन कार्यालय और जिला कलेक्टर को सौपना होता है |
जवाव दे एमएचए और केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय
भारतीय पुलिस सेवा के वर्ष 1988 बैच के अधिकारी आरोपी मुकेश गुप्ता को भारत सरकार की ओर से ऐसी कोई अनुमति प्राप्त है कि वो अपनी सेवा अवधि में कोई ट्रस्ट का गठन कर उसका संचालन कर सकते है | राज्य के गृह मंत्रालय से जानकारी लेने पर पता पड़ा कि ऐसी कोई अनुमति आरोपी मुकेश गुप्ता को नहीं दी गई है कि वो किसी ट्रस्ट का गठन कर राज्य के लोगो से उगाही कर सके | सामान्य प्रशासन विभाग के एक अफसर के मुताबिक कार्मिक मंत्रालय को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी | नियमानुसार किसी भी आईपीएस अधिकारी को कार्मिक मंत्रालय ट्रस्ट संचालन की अनुमति नहीं प्रदान करता | लेकिन इस आरोपी ने कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने पिता जे.डी. गुप्ता के नाम से एमजीएम ट्रस्ट का गठन किया और वर्दी का धौंस दिखा कर न केवल जमकर उगाही की बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग सेंटर तक खोल दिया |
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र ,झारखण्ड , पश्चिम बंगाल , दिल्ली और देश के कई राज्यों के कारोबारियों ने “एमजीएम ट्रस्ट ” में करोडो की काली रकम जमा कर उसे ” वाइट मनी ” में तब्दील किया | इस रकम को हेरफेर करने के लिए लगभग डेढ़ दर्जन चार्टेड अकाउंट की टीम अपनी सेवाए देती रही | यह भी बताया जा रहा है कि मनीलॉड्रिंग सेंटर के संचालन में संजय चौधरी नामक शख्स की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है | संजय चौधरी सयुंक्त मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा के दामाद बताए जाते है | लगभग तीन साल पहले आयकर विभाग ने संजय चौधरी और उसके करीबियों के कई ठिकानों में दबिश भी दी थी | बताया जाता है कि एमजीएम ट्रस्ट का काला कारोबार संजय चौधरी और आरोपी मुकेश गुप्ता ही क्रियान्वित करते थे |
यह भी जानकारी लगी है कि आरोपी मुकेश गुप्ता ने अपने परिजनों के नाम से भी छत्तीसगढ़ के अलावा देश के कई राज्यों में भी बड़ी रकम निवेश की है | यह रकम एमजीएम ट्रस्ट के जरिए यहाँ से वहाँ हुई | एक जानकारी के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी एमजीएम ट्रस्ट को दो करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता दी थी | यह सहायता किस लिए दी गई थी यह भी सवालों के घेरे में है | बताया जाता है कि यह आर्थिक सहायता सिर्फ सरकारी दिखावा थी | कुछ माह बाद इस रकम का भी एक बड़ा हिस्सा “नकदी ” में एक नेता जी के झोली में चला गया था | फ़िलहाल भारत सरकार और ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों को इस ओर ध्यान देना होगा कि एमजीएम ट्रस्ट जैसे संस्थान खुल्लेआम आखिर किस तरह से मनी लॉन्ड्रिंग सेंटर संचालित कर रहे है | क्या एमएचए ने आरोपी मुकेश गुप्ता को इसके लिए कोई वैधानिक अनुमति दी है |